ये अकबर के समय में संडीले के अमीन थे। ये जो कुछ पास में आता प्राय: साधुओं की सेवा में लगा दिया करते थे। कहते हैं कि एक बार संडीले तहसील की मालगुजारी के कई लाख रूपये सरकारी खजाने में आए थे। इन्होंने सब का सब साधुओं को खिलापिला दिया और शाही खजाने में कंकड़-पत्थरों से भरे संदूक भेज दिए जिनके भीतर कागज के चिट यह लिख कर रख दिए: तेरह लाख सँडीले आए, सब साधुन मिलि गटके I सूरदास मदनमोहन आधी रातहिं सटके II और आधी रात को उठकर कहीं भाग गए। बादशाह ने इनका अपराध क्षमा करके इन्हें फिर बुलाया, पर ये विरक्त होकर वृंदावन में रहने लगे। इनकी कविता इतनी सरस होती थी कि इनके बनाए बहुत से पद सूरसागर में मिल गए। इनकी कोई पुस्तक प्रसिद्ध नहीं। इनका रचनाकाल सन् 1533 ई. और 1543 ई. के बीच अनुमान किया जाता है।