सूर्यवंश
सूर्यवंश/इक्ष्वाकुवंश/अर्कवंश/रघुवंश पुराणों के अनुसार प्राचीन भारतवर्ष के भगवान श्रीराम इसी कुल मे अवतरित हुए थे । ऐतिहासिक दृष्टि से सूर्यवंश, सत्य, चरित्र, वचनपालन, त्याग, तप व शौर्य का प्रतीक रहा है । भगवान सूर्य के परम तेजस्वी पुत्र वैवस्वत मनु से प्रारम्भ हुआ यह वंश सूर्यवंश कहलाता है । पुराणों वेदों ग्रंथो में भगवान सूर्य के पुत्र को 'अर्क तनय' नाम से सम्बोधित किया गया है । इन्हीं वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से सूर्यवंश का विस्तार हुआ था । अतः सूर्यवंश को इक्ष्वाकुवंश भी कहा जाता है । अयोध्या के सूर्यवंश (इक्ष्वाकुवंश) में रघु नामक राजा हुये थे । उन्हीं सम्राट रघु का वंश रघुवंश या रघुकुल कहलाता है । इस प्रकार यह एकमात्र ऐसा क्षत्रिय वंश है जो सूर्यवंश, इक्ष्वाकुवंश व रघुवंश इन तीनों नामों से जाना जाता है ।
स्रोतसंपादित करें
पुराणों, विशेषतः विष्णु पुराण, वाल्मीकि रचित रामायण और व्यास रचित महाभारत सभी में इस वंश का विवरण मिलता है।
कालिदास के रघुवंशम् में भी इस वंश के कुछ नाम उल्लिखीत हैं।[1][2][3]
सन्दर्भसंपादित करें
- ↑ पर्गिटर, एफ॰ई॰ (1922.). Ancient Indian Historical Tradition [प्राचीन भारतीय एतिहासिक परम्परा] (अंग्रेज़ी में). ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. पपृ॰ 90–91.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ भगवना, सत्य साई बाबा (2002). Ramakatha Rasavahini [रामकथा रसवाहिनी] (अंग्रेज़ी में). प्रसंती निलयम: श्री सत्य साइ बुक्स एण्ड पब्लिकेशन्स ट्रस्ट. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7208-132-4.
- ↑ वाल्मीकि, अर्शिया सत्तर द्वारा अनूदित (1996). The Ramayana [द रामायण] (अंग्रेज़ी में). नई दिल्ली: पेंगुइन बुक्स. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-14-029866-5.
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