सैक्स्टैंट
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सेक्सटैंट (Sextant) सबसे सरल और सुगठित यंत्र है जो प्रेक्षक की किसी भी स्थिति पर किन्हीं दो बिंदुओं द्वारा बना कोण पर्याप्त यथार्थता से नापने में काम आता है। इसका आविष्कार सन् १७३० में जान हैडले (John Hadley) और टॉमस गोडफ्रे (Thomas Godfrey) नामक वैज्ञानिकों ने अलग-अलग स्वतंत्र रूप से किया था। तब से इतनी अवधि गुजरने पर भी यह यंत्र प्रचलित ही नहीं है वरन् बड़े चाव से प्रयोग में आता है। इसका मुख्य कारण यह है कि अन्य कोणमापी यंत्रों से अधिक सुविधाजनक विशेषताएँ उपलब्ध हैं। पहली विशेषता यह है कि अन्य कोणमापी यंत्रों की भाँति इसे प्रेक्षण के समय एकदम स्थिर रखना या किसी निश्चित अवस्था में रखना अनिवार्य नहीं है। दूसरी विशेषता यह है कि प्रेक्षक स्थिति और उस पर कोण बनाने वाले बिंदु क्षैतिज ऊर्ध्वाकार या तिर्यक् समतल में हों, इस यंत्र से उस समतल में बने वास्तविक कोण की मात्रा नाप सकते हैं। इन विशेषताओं के कारण सेक्सटैंट नाविक की उसकी यात्रा की दिशा का ज्ञान कराने के लिए आज भी बड़ा उपयोग यंत्र है।
यंत्र के प्रकार
संपादित करेंदो प्रकार के सेक्सटैंट प्रयोग में आते हैं। एक, बाक्स सेक्सटैंट और दूसरा खगोलीय या नाविक सेक्सटैंट। दोनों की बनावट में कोई सैद्धांतिक भिन्नता नहीं है। इनकी बनावट का सिद्धांत यह है कि यदि किसी समतल में प्रकाश की कोई किरण आमने-सामने मुँह किए खड़े समतल दर्पणों से एक के बाद दूसरे पर परावर्तित (Reflected) होने के बाद देखी जाए तो देखी गई किरण और मूल किरण के बीच बना कोण परावर्तक दर्पणों के बीच पारस्परिक कोण से दूना होगा। सेक्सटैंट से १२०° तक का कोण एक बार में ही नापा जा सकता है। इससे बड़ा कोण होने पर दो या अधिक से अधिक तीन भाग करके नापना होगा।
बनावट
संपादित करेंबाक्स सेक्सटैंट एक छोटी, लगभग ८ सेंमी ब्यास और चार सेंमी ऊँचाई की डिबिया सा होता है। ऊपर का ढक्कन खोल देने पर ऊपर कुछ पेंच और एक बर्नियर थामी हुई भुजा दिखाई देगी जो अंशों पर उसके छोटे भागों में विभाजित चाप पर चल सकती है। दस्ते की भाँति एक पेंच भुजा से जुड़ा होता है। डिबिया के भीतर धँसी पेंच की पिंडी से एक समतल दर्पण लगा रहता है। इसे निर्देश दर्पण कहते हैं। पेंच घुमाने से दर्पण और साथ ही अंकित चाप पर भुजा में लगा बर्नियर चलता है। इससे दर्पण की कोणीय गति ज्ञात हो जाती है।
इस निर्दश दर्पण के सामने ही एक दूसरा दर्पण रहता है जिसका नीचे का आधा भाग पारदर्शी और ऊपर का परावर्तक होता है। जिन दो बिंदुओं के बीच कोण नापना होता है उनमें से एक को बक्स में लगी दूरबीन या बने छेद से क्षितिज दर्पण के पारदर्शी भाग से देखते हैं और दूसरे बिंदु का प्रतिबिंब निर्देश दर्पण से एक परावर्तन के बाद क्षितिज दर्पण में दिखाई देता है। इस समय पेंच से निर्देश दर्पण ऐसे घुमाते हैं कि क्षितिज दर्पण के पारदर्शी भाग से देखे बिंदु की किरण प्रतिबिंब की किरण पर सन्निपाती हो जाए। इस समय दोनों दर्पणों के बीच बना कोण प्रेक्षक की स्थिति पर दोनों बिंदुओं द्वारा निर्मित कोण का आधा होगा। दर्पणों के बीच का कोण बर्नियर सूचक के सामने अंकित चाप पर पढ़ा जा सकता है जिससे बिंदुओं के बीच का कोण ज्ञात हो सके। बर्नियर सूचक पर ही सही पाठ्यांक (reading) लेने के लिए एक आवर्धक लेंस लगा रहता है।
मगर चाप पर अंशांकन इस प्रकार किया जाता है कि बिंदुओं द्वारा निर्मित कोण सीधा पढ़ा जा सके। यह सुविधा प्रदान करने के लिए निर्देश दर्पण की गति की दूनी राशियाँ लिखी जाती हैं। जैसे १०° के सामने २०°, २०° के सामने ४०°, इसी प्रकार अंतिम अंशांकन ६०° के सामने १२०° लिखते हैं। इससे पढ़ी गई राशि कोण की मात्रा होगी। कोण एक मिनट तक सही पढ़ सकते हैं।
नाविक सेक्सटैंट
संपादित करेंयह धातु का ६०° का वृत्तखंड होता है जिसका चाप अंकित होता है। वक्र के केंद्र से एक भुजा चाप पर फैली होती है। इस भुजा के सिरे पर बर्नियर (क्लैंप) और एक स्पर्शी पेंच लगे रहते हैं। इसी भुजा पर ऊपर निर्देश दर्पण लगा रहता है। केंद्र पर भुजा घूम सकती है और उसके साथ निर्देश दर्पण और अंकित चाप पर बर्नियर भी। चाप को थामे एक अर्धव्यास पर निर्देश दर्पण के सामने आधा पारदर्शी और आधा परावर्तक क्षितिज काँच दृढ़ता से लगा होता है जिससे होकर देखने के लिए सामने दूरबीन होती है। स्पष्ट है कि इसकी बनावट बाक्स सेक्सटैंट के समान ही है और प्रेक्षण का ढंग भी। सूर्य के प्रेक्षण के लिए रंगीन काँच रहता है। ६०° के चाप पर अंश और उसके छोटे विभाजन यंत्र के आकार के अनुसार २०¢ या १०¢ तक बने होते हैं। बर्नियर से २०² या १०² तक पढ़ने की सुविधा रहती है।
सावधानियाँ
संपादित करेंसेक्सटैंट से सही पाठ्यांक प्राप्त करने के लिए निम्न ज्यामितीय संबंध होना चाहिए और न होने पर समायोजन (ऐडजस्ट) करके ये संबंध स्थापित कर लिए जाते हैं:
(१) सूचकांक और क्षितिज काँच चाप के समतल पर लंब हों,
(२) जब बर्नियर सूचकांक शून्य पर हो तो निर्देशक और क्षितिज दर्पण समांतर हों, तथा
(३) दृष्टिरेखा चाप के समतल के समान्तर हो।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Her Majesty's Nautical Almanac Office: https://web.archive.org/web/20090529125751/http://www.nao.rl.ac.uk/
- The History of HM Nautical Almanac Office: https://web.archive.org/web/20070630074456/http://www.nao.rl.ac.uk/nao/history/
- Instruments for Celestial Navigationपीडीऍफ (361 KiB) Chapter from the online edition of Nathaniel Bowditch's American Practical Navigator
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