सेवासिंह ठीकरीवाल

भारतीय राजनेता

सेवासिंह ठीकरीवाला (१८८६ ई.-१९३५ ई.) पंजाब के अकाली दल और रियासती प्रजामंडल के महान्‌ नेता थे। आपकी अनेक धार्मिक, शैक्षणिक एवं राजनैतिक संस्थाओं में प्रतिष्ठित स्थान मिला है। दैनिक 'कौमी दर्द' (अमृतसर), साप्ताहिक 'रियासती दुनिया' (लाहौर) एवं 'देशवर्दी' (अमृतसर) के जन्मदाता भी आप ही थे।

आपकी स्मृति में प्रति वर्ष १९ जनवरी को ठीकरीवाल में शहीदी मेला लगता है। सन्‌ १९१२ से प्रारंभ किया हुआ गुरु का लंगर निरंतर चल रहा है। स. सेवासिंह गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठीकरीवाल में है। पटियाला नगर के प्रसिद्ध माल रोड पर (फूल थिएटर के समीप) सिंहसभा के सामने इनकी आदमकर मूर्ति भी लगाई गई है।

श्री सेवासिंह ठीकरीवाला अंबाला-भटिंडा रेलमार्ग पर स्थित बरनाला (जि. संगरूर) से लगभग नौ मील दूर ठीकरीवाल ग्राम में फूलकियाँ रियासत के प्रतिष्ठित रईस श्री देवसिंह के घर उत्पन्न हुए। इनके चार भाई और एक बहन थी। मिडिल पास करते ही ये पटियाला के हजूरी विभाग में नौकर हो गए। सन्‌ १९११ में ये सिंह-सभा-लहर की ओर आकृष्ट हुए। इसका पहला दीवान ठीकरीवाल में हुआ; अमृत प्रचार तथा ग्राम सुधार का कार्य भी प्रारंभ हुआ। सन्‌ १९१२ में गुरुद्वारा ठीकरीवाल का शिलान्यास किया गया। देश विदेश से एकत्र लाखों रुपयों से यह कार्य पाँच वर्ष में पूरा हुआ। वहाँ पर पंजाबी भाषा की पढ़ाई भी शुरू हो गई।

२१ फ़रवरी १९२१ के ननकाना साहब के शहीदी साके का समाचार सुनकर आप सिख पंथ की सेवा की ओर उन्मुक्त हो गए। तभी से पटियाला में अकाली जत्था की स्थापना करके शिरोमणि अकाली दल एवं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से संबंध जोड़कर गुरुद्वारा सुधार में तल्लीन हो गए। १९२७ ई. के कुठाला शहीदी साके ने आपको रज़वाड़ाशाही समाप्त करने और रियासती प्रजामंडल की स्थापना के लिए प्रेरित किया। आप इसके पहले सभापति तो थे ही; लाहौर (सन्‌ १९२९), लुधियाना (सन्‌ १९३०), शिमला (सन्‌ १९३१) के वार्षिक अधिवेशनों के स्वागताध्यक्ष भी रहे। शिमला सम्मेलन के समय अंग्रेजी सरकार की शिकायत आपने गांधी जी से की थी; उन्हीं दिनों आपकी सारी संपत्ति भी जब्त कर ली गई थई। ऑल इंडिया कांग्रेस के सन्‌ १९२९ के, ऑल इंडिया प्रजामंडल के १९३१ के तथा रियासती प्रजामंडल के सन्‌ १९३२ के अधिवेशनों में भी आप सम्मिलित हुए। रायकोट (पंजाब) के अछूतनाशक सम्मेलन (सन्‌ १९३३) की अध्यक्षता भी आपने की थी। इन्हीं गतिविधियों के कारण आपको कई बार जेल की यात्रा करनी पड़ी; यथा-

(क) सन्‌ १९२३ में शाही किला, लाहौर में अकाली नेताओं के विद्रोह के मुकदमे में ३ वर्ष की नजरबंदी।

(ख) सन्‌ १९२६ में विद्रोही होने के अपराध में पटियाला जेल में साढे तीन वर्ष की कैद।

(ग) सन्‌ १९३० में विद्रोह के अपराधस्वरूप ५ हजार रुपया दंड और पटियाला जेल में ६ वर्ष की कैद; किंतु चार मास बाद बंधनमुक्त हो गए।

(घ) सन्‌ १९३१ में संगरूर सत्याग्रह के कारण ४ महीने नजरबंद।

(ड.) सन्‌ १९३२ में मालेर कोटला मोर्चे के कारण ३ महीने नजरबंद।

(च) मार्च, १९३३ में पटियाला राज्य की नृशंसता के विरोधस्वरूप नारे लगाने के कारण दिल्ली में दो दिन की जेल।

(छ) अगस्त, १९३३ में 'पटियाला हिदायतों की खिलाफवर्जी' के मामले में दस हजार रुपया दंड तथा आठ वर्ष का सश्रम कारावास दंड। इसी जेल यात्रा की यातनाएँ सहने करते हुए १९ जनवरी १९३५ को पटियाला केंद्रीय जेल के धमियार अहाते में निधन।

सन्‌ १९२६ तथा सन्‌ १९३३ के कैद में आपने कई सप्ताह तक अनशन किया था।

संदर्भ ग्रंथ

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  • शहीद स. सेवासिंह ठीकरीवाल: जीवनी ते इक झात (प्रकाशन स्थान-लोक संपर्क विभाग, पंजाब, चंडीगढ़)।

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