सैनी [1]एक प्राचीन भारतीय " शूरसैनी जाति " का नाम है। उत्तर भारत में सैनी जाति के लोग सैनी नाम से ही जाने जाते हैं , यह अपने आप को गर्व से सैनी ही कहते हैं और उत्तर भारत के शूरसैनी अपने आप को असली सैनी मानते हैं । शूरसैनी जाति के लोग अपने आप को कभी भी अन्य जातियों से नहीं जोड़ते हैं , यह अपने आप को केवल सैनी ही कहते हैं ।[2]

सैनी किन राज्यों में पाए जाते हैं

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1 > जम्मू , पंजाब, हरियाणा ,उत्तराखंड , हिमाचल और दिल्ली :- सैनी जाति के लोगों को पुरु शूरसैनी और शूरसैनी के नाम से जाना जाता है ।

2 > उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश :- सैनी जाति के लोगों को भागीरथी माली और गोले के नाम से जाना जाता है । यह लोग पहले " फूल माली " के नाम से भी जाने जाते थे

शूरसैनी का इतिहास

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सैनी शब्द की उत्पत्ति “महाराजा शूर सैनी” के नाम से हुई है, वह एक पराक्रमी शूर वीर योद्धा थे और महाराजा शूर सैनी " सम्राट शूरसेन " क पुत्र थे । कभी वर्तमान के मथुरा नगर पर सम्राट शूरसेन का शासन हुआ करता था , मथुरा प्राचीन भारत के 16 महाजनपदो में से एक था और शूर शब्द का शाब्दिक अर्थ वीर बहादुर या योद्धा होता है ।[1][2]

महाराजा शूर सैनी का जन्म महाभारत काल में हुआ था, वह एक शूरवीर क्षत्रिय थें , प्राचीन ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार मथुरा " शूरसेन महाजनपद " की राजधानी थी और सम्राट शूरसैन वासुदेव के पिता और भगवान कृष्ण के दादा थे । इस पौराणिक मान्यता के अनुसार यही वह वंश है , जिसमें शूरसैनी राजा कृष्ण का जन्म हुआ था और महाराजा शूर सैनी के वंशज ही सैनी कहलाए।

सम्राट शूरसेन हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित मथुरा का एक शूरसैनी शासक थे । उनका विवाह मारिशा नाम की एक नागा या नागिन महिला से हुआ था । भीम के लिए वासुकी के वरदान का कारण थी । उन्हें वह राजा कहा जाता है जिनके नाम पर शूरसैनी साम्राज्य के सैनी संप्रदाय का नाम रखा गया था ।

सम्राट शूरसेन के 15 बच्चे थे, शूरसेन समुद्रविजय (स्वयं नेमिनाथ के पिता ), वासुदेव (स्वयं वासुदेव - कृष्ण के पिता ) , महाराजा शूर सैनी ( शूरसैनीवंश के जनक ) और कुंती ( कर्ण और पांडवों की मां ) के पिता थे । उनका महाभारत और पुराणों दोनों में बड़े पैमाने पर उल्लेख किया गया है ।

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गोले / भागीरथी माली का इतिहास

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भारत के बड़े इतिहासकार मानते हैं कि भागीरथी माली और गोले प्राचीन जाति हैं । इन दोनों जातियों के लोग मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं , भागीरथी और गोले जाति के लोगों को सगरवंशी भी कहा जाता था और इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि इन दोनों जातियों का संबंध राजा सागर और राजा भगीरथ से है ‌। जो कि सगरवंशी है, मां गंगा को धरती पर लाने वाले राजा भगीरथ के वंशजों को भागीरथी माली कहा जाता है । यह दोनों जातियां ठाकुर क्षत्रिय जाति की दो उपजातियां हैं ।[4] [5]

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भागीरथी माली 1985 से पहले अपने आप को माली कहते थे , इनके गांव और कस्बों को " मालीवाडा " के नाम से भी जाना जाता था । उत्तर प्रदेश सरकार ने भागीरथी और गोले जाति के लोगों को अलग-अलग श्रेणी में रखती थी , पर जब यह लोग अपने आप को माली कहने लगे तो इन्हें माली जाति की श्रेणी में ही रखा गया था, बाद में यह लोग अपने आप को सैनी जाति से जोड़ने लगे और आज यह लोग अपने आप को सैनी जाति का हिस्सा मानते हैं ।

वर्तमान में भागीरथी और गोले अपने आप को सूर्यवंशी बोलते हैं और यह मौर्य , कुशवाहा ,शाक्य और माली जाति से अपना संबंध बताते हैं । भागीरथी और गोले अपने आप को मौर्यवंशी भी मानने लगे हैं, भागीरथी और गोले अपने आप को बुद्ध धर्म से जोड़कर देखते हैं।

भागीरथी और गोले मूल रूप से छोटे किसान हुआ करते थे , जो फल फ्रूट और सब्जी की खेती किया करते थे और आज भी यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सब्जी बेचने का कार्य करते हैं ।


भागीरथी और गोले वक्त वक्त पर अपना सरनेम बदलते रहे हैं । पहले माली , फिर सैनी और अब मौर्य कुशवाहा शाक्य आदि... इन्हें भारत सरकार ने बैकवर्ड समाज ( OBC ) की श्रेणी में रखा है ।

  1. "SAINI CASTE HISTORY". www.sainicaste.com. अभिगमन तिथि 2024-05-28.
  2. "SAINI CASTE HISTORY". sites.google.com. अभिगमन तिथि 2024-05-30.
  3. "Shoorsaini - SikhiWiki, free Sikh encyclopedia". www.sikhiwiki.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-05-28.
  4. Project, Joshua. "Mali Bhagirathi in India". joshuaproject.net (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-05-28.
  5. Bhartiya, Ranjeet (2023-01-08). "गोले सैनी हिस्ट्री, History of gole saini". Jankari Today (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-05-28.

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