सोरठा
अर्द्धसम मात्रिक छंद
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। स्रोत खोजें: "सोरठा" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
![]() | यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
सोरठा एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। उदाहरण -
- जो सुमिरत सिधि होई, गननायक करिवर बदन।
- करहु अनुग्रह सोई, बुद्धि रासि शुभ-गुन सदन॥
१. नील सरोरूह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
कराऊँ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर स्तन ।।
२. कबहुं सुधार अपार,वेग नीचे को धावै।
।।। ।ऽ। ।ऽ। ऽ। ऽऽ ऽ ऽऽ हरहराति लहराति ,सहस जोजन चलि आवै ।। ।।।ऽ। ।।ऽ। ।।। ऽ।। ।। ऽऽ
जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन। करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ-गुन सदन