सोलो-स्वान विकास मॉडल

assumption of solo's model

सोलो-स्वान विकास मॉडल (Solow–Swan model) नवक्लासिकी अर्थशास्त्र के एअंकत4अन्तर्गत दीर्घकालिक आर्थिक विकास का एक मॉडल है।

आर्थिक विकास का सोलो मॉडल संपादित करें

नवपरम्परावादी मॉडलों में सोलो के मॉडल का नाम विशेष प्रमुखता रखता है। उन्होंने आर्थिक वृद्धि के अपने मॉडल की रचना हैरोड-डोमर के मॉडल के विकल्प के रूप में की। लेकिन अपने मॉडल में हैरोड-डोमर मॉडल की प्रमुख विशेषताओं जैसे कि समरूप पूँजी, समानुपातिक बचत फलन व श्रम शक्ति की वृद्धि दर की प्रक्रिया की व्याख्या करने में ‘‘नवक्लासिकी उत्पादन फलन’’ के नाम से जाना जाता है। इस उत्पादन फलन में सोलो उत्पादन को पूँजी और श्रम की आगतों के साथ जोड़ता है जो एक दूसरे के साथ स्थानापन्न की जा सकती है।

सोलो मॉडल की मान्यताएँ संपादित करें

सोलो ने निम्नलिखित मान्यताओं पर अपने मॉडल का निर्माण किया हैः

1. केवल एक संयुक्त वस्तु का उत्पादन होता है।

2. पूँजी मूल्य-ह्रास की गुंजाइश छोड़ने के बाद उत्पादन को शुद्ध उत्पादन समझा जाता है।

3. उत्पादन के केवल दो साधनों श्रम तथा पूँजी का प्रयोग किया जाता है।

4. पैमाने के स्थिर प्रतिफल होते हैं। दूसरे शब्दों में, उत्पादन फलन प्रथम कोटि का समरूप होता है।

5. उत्पादन के दोनों साधनों श्रम तथा पूँजी को उनकी सीमान्त वस्तु उत्पादकताओं के अनुसार भुगतान किया जाता है।

6. कीमतें तथा मजदूरी लोचशील होती हैं।

7. श्रम-शक्ति की वृद्धि दर बर्हिजनित निर्धारित होती है।

8. पूँजी का उपलब्ध स्टॉक भी पूर्ण नियुक्त रहता है।

9. पूँजी संचय संयुक्त वस्तु के संचय के रूप में होता है।

10. तकनीकी प्रगति तटस्थ होती है। 11.अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के कारण पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।