टाँका लगाना (Soldering), झालना, या राँजना, धातु के दो टुकड़ों को जोड़ने की एक विधि है। अनेक मिश्रधातुएँ, जो जोड़ लगाने में काम आती हैं, "टाँका" या "झाल" कहलाती हैं। टाँका देने की क्रिया केवल यांत्रिक ही नहीं हैं, क्योंकि जोड़ी जानेवाली धातुओं से झाल मिल जाती है और परिणामस्वरूप कोई नई मिश्रधातु बन जाती है।

एक प्रतिरोधक को टाँका लगाकर पीसीबी पर स्थापित किया गया है।
सोल्डर
सोल्डर किए हुए ताँबे के पाइप

परिस्थितियों के अनुसार टाँके की रचना भिन्न-भिन्न होती है। उसे जोड़ी जानेवाली धातुओं की अपेक्षा अधिक गलनीय अवश्य होना चाहिए।

टाँके दो प्रकार के होते हैं :

  • (1) पक्का टाँका या पक्की रँजाई और
  • (2) कच्चा टाँका या कच्ची रँजाई।

पक्का टाँका वह है जो धातु के गरम (लाल) होने पर ही गलता है, अत: यह उन्हीं धातुओं को जोड़ने में काम आता है, जो इतना ताप सह सकें। यह दो प्रकार का होता है:

  • जस्ता टाँका या पीतल टाँका, जो विभिन्न अनुपातों में ताँबा और जस्ता मिलाकर बनाया जाता है। यह लोहा, ताँबा, पीतल और गनमेटल जोड़ने के लिये प्रयुक्त होता है।
  • चाँदी का टाँका विभिन्न अनुपातों में चाँदी और ताँबा या पीतल मिलाकर बनाया जाता है। जहाँ बारीकी और सफाई की आवश्यकता होती है, यही प्रयुक्त होता है। यह भी लोहा, इस्पात, पीतल और गनमेटल जोड़ने के काम आता है।

कच्चा टाँका वह है जो बहुत कम ताप पर गलता है और प्राय: सभी धातुएँ जोड़ने के काम आता है। विभिन्न अनुपातों में राँगा और सीसा मिलाकर कच्चा टाँका बनाया जाता है। कुछ बिस्मथ मिला देने से गलनांक और भी कम हो जाता है।

जोड़ी जानेवाली धातुओं का संपर्क में आनेवाला भाग बहुधा मैल या आक्साइड के आवरण से ढका होता है। अत: टाँका लगाते समय प्राय: कुछ रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करना पड़ता है, जिनके बिना टाँका लगाना असंभव होता है। ये द्रावक (फ्लक्स) कहलाते हैं। पक्के टाँके में सुहागा काम आता है। कच्चे टाँके में विभिन्न धातुओं के लिये प्राय: सुहागा, नौसादर, यशद क्लोराइड, रेजिन, या चरबी का प्रयोग किया जाता है।

इन्हें भी देखें

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