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सौ अजान और एक सुजान बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित एक कृति है। लेखक इस कृति को एक प्रबंध-कल्पना मानते हैं।यह भारतेंदु युग की एक प्रमुख रचना है।
कृति का परिचय देते हुए दुलारेलाल लिखते हैं कि- "भट्टजी की यह रचना व्यंग्यात्मक है, और इसमें मानव-जीवन की सामाजिक परिस्थितियों का सुंदर चित्रण पाया जाता है।"[1]
बालकृष्ण भट्ट की यह रचना प्रस्तावों में लिखी गई है, जिसमें कुल तेईस प्रस्ताव हैं। प्रत्येक प्रस्ताव का आरंभ एक उपदेश से होता है।
- पंडितजी
- सेठ हीराचंद
- चंद्रशेखर(चंदू)
- ↑ बालकृष्ण, भट्ट (1944). सौ अजान और एक सुजान (सातवाँ संस्करण). लखनऊ: गंगा-ग्रंथागार. पृ॰ 7.