स्तोत्र
संस्कृत साहित्य में किसी देवी-देवता की स्तुति में लिखे गये काव्य को स्तोत्र कहा जाता है (स्तूयते अनेन इति स्तोत्रम्)। संस्कृत साहित्य में यह स्तोत्रकाव्य के अन्तर्गत आता है।
महाकवि कालिदास के अनुसार 'स्तोत्रं कस्य न तुष्टये' अर्थात् विश्व में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो स्तुति से प्रसन्न न हो जाता हो। इसलिये विभिन्न देवताओं को प्रसन्न करने हेतु वेदों, पुराणों तथा काव्यों में सर्वत्र सूक्त तथा स्तोत्र भरे पड़े हैं। अनेक भक्तों द्वारा अपने इष्टदेव की आराधना हेतु स्तोत्र रचे गये हैं। विभिन्न स्तोत्रों का संग्रह स्तोत्ररत्नावली के नाम से उपलब्ध है।
निम्नलिखित श्लोक 'सरस्वतीस्तोत्र' से लिया गया है-
- या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
- या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
- या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
- सा मां पातु सरस्वति भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
स्तोत्रों की रचना मुख्यतः संस्कृत भाषा मे की गई है परन्तु सर्वसामान्य लोगों की सुविधा हेतु आधुनिक भाषाओं में भी स्त्रोत्र रचे गए हैं।
व्युत्पत्ति
संपादित करें'स्तोत्र' शब्द संस्कृत के 'ष्टु' धातु से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ 'प्रशंसा करना' है।
कुछ प्रमुख स्तोत्र
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- शिवमहिम्न स्तोत्र
- श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र
- श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
- महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र
- मारुति स्तोत्र
- लांगुलास्त्र स्तोत्र
- अगस्ति लक्ष्मी स्तोत्र
- द्वादश स्तोत्र
- विष्णु सहस्रनाम
- लक्ष्मीसहस्रनामस्तोत्र
- एकात्मता स्तोत्र
- नाग स्तोत्र
- अपामार्जन स्तोत्र
- ऋणमोचक मंगल स्तोत्र
- एकात्मता स्तोत्र
- जैन स्तोत्र
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
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