स्थानापन्न मातृत्व

(स्थानापन्न मात्रत्व से अनुप्रेषित)

'स्थानापन्न मातृत्व या 'सरोगसी एक ऐसा कार्य है जिसमे नारी अपनी गर्भावस्था किसी और अनुर्वर दम्पति के लिए लेती है। वर्तमान युग में इस प्रतिक्रिया के प्रयोग ने भाव रूप से काफी प्रसिद्धी पायी है। सम्भावित सरोगट माताओ; अन्तरराष्ट्रीय माँग और चिकित्सा की सुलभ उपलब्धियों ने ही इस क्षेत्र को स्वीकार्य और प्रसिद्ध बनाया है। सरोगसी प्रक्रिया मीडिया में भी काफी हिट प्राप्त किया है। अनगिनत एजन्सियाँ तथा क्लिनिको ने इस प्रक्रिया को प्रजनन करने के लिए खोला है। इस प्रकार स्तानापन्न मात्रत्व काफी ईर्ष्या पाया है। कभी कभी, सरोगसी को जीवन बिताने का तरीका माना गया है। यद्यपि, आम तौर पर, सरोगसी एक जीवन मार्ग भी बन गया है।

विश्व के विभिन्न देशों में स्थानापन्न मातृत्व की वैधानिक स्थिति: ██ Both gainful and altruistic forms are legal ██ कोई विधान नहीं ██ Only altruistic is legal ██ Allowed between relatives up to second degree of consanguinity ██ प्रतिबन्धित ██ विधानहीन/अनिश्चितता की स्थिति

वैश्विक दृश्य संपादित करें

सरोगट मातृत्व का अभ्यास एक लम्बा इतिहास रहा है और इसे कई संस्कृतियों में स्वीकार किया गया है। "ओल्ड टेस्टामेन्ट्स"नाम के पुस्तक में इभ्रहिम, सारा और हागर के बीच की कहानी तथा रेछल और नौकर की कहानी, यह स्थापित करती है कि स्थानापन्न मातृत्व यहूदी समाज में स्वीकृत था। हालांकी, यूरोपीय संस्कृतियों में सरोगसी निःसंदेह अभ्यास किया गया है परन्तु अतीत में इसे सामाजिक और कानूनी नियमों के तहत औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था। परम्परागत समाजों में सरोगट माँ, अपने बच्चे को 'दान' के रूप में देती है परन्तु पाश्चातिक समाजो में सरोगट माँ अपने बच्चे को 'दूर' कर देती है। कई समाजो में सरोगसी, दोस्ती और सज्जनता के रूप में भी देखने को मिलता है। औस्ट्रेलिया में सरोगसी प्रक्रिया, पिछ्ले शताब्दी तक अनौपचारिक रूप से उपस्थित थे। औस्ट्रेलिया के पहले सरोगसी का मामला १९८८ में हुआ था। इस प्रक्रिया द्वारा पैदा होने वाली पहली ई वी एफ बच्ची एलिस किर्कमान, मेल्बोर्न में २३ मई १९८८ को हुआ था। हाल ही मे, मार्च १९९६ में औस्ट्रेलिया के 'पहला कानूनी व्यवस्था' का सूचना मिली थी। उस समय, एक नारी ने अपनी भाई तथा भाभी के आनुवंशिक भ्रूण को अपने गर्भ पात्र में उपजने दिया। इस मामला को, औस्ट्रेलियन कापिटल टेरिटोरी कानून के तहत में आगे बढने दिया गया। इस बच्चे के पैदा होने के साथ साथ, मीडिया की दिलचस्पी और सरोगसी से संबंधित प्रश्नों का तूफान आ गया था।

भारतीय दृष्य संपादित करें

भारतीय समाज सेरोगेसी को अस्वीकार करता है । क्योंकि इसमें किसी और का बच्चा किसी और कि गर्भ में पलता है । भारतीय समाज के अनुसार स्त्री तथा पुरुष तभी संभोग कर सकते है जब वे पति पत्नी हो । पति के अलावा स्त्रियां किसी अन्य व्यक्ति का वीर्य नही ले सकती तथा किसी और से गर्भवती नही हो सकती । भारतीय समाज के अनुसार यदि किसी दंपति को संतान की प्राप्ति नही हो रही हो तो उन्हें बच्चा गोद ले लेना चाहिए ।

कानूनी प्रापेक्ष्य संपादित करें

reproductive-technology-bill/article5380425.ece ए आर टी रेगुमलेश्ण ड्राफ्ट बिल] के रूप में है, फिल्हाल यह अब तक पास नहीं हुआ हैं। इस बिल द्वारा स्थानापन्न मात्रत्व के सारे प्रमाण पत्रों को कानूनी नियमों के अनुसार स्वीक्रत किया गया है। ईंडियन काँट्राक्ट एक्ट द्वारा सरोगसी प्रक्रिया के स्ंविदाओं को दूसरे स्ंविदाओं के बराबर माना जा सकता है। अकेले जनक या माता-पिता और सरोगेट माँ सारे निर्गमनों तथा समस्याओं पर एक अनुब्ंधन बनाते हुए इस प्रक्रिया को कानून के मध्यम से प्रवर्तनीय बनाया है। सरोगेट माँ की उम्र २१-३५ वर्ष होनी चाहिए और वह एक ही दम्पति के लिए ३ से ज़्यादा बार गुज़रने के लिए अनुमति नहीं दी जएगी। यदि सरोगेट विवाहित हो तो पति के सहमती अनिवार्य है ताकी भविष्य में वैवाहिक विवादों को टाल सकें। सरोगेट को यौन सन्चारित रोगों के लिए जाँच की जाना चाहिए और पिछ्ले ६ महिनों में रक्त आधान प्राप्त करना चाहिए क्योंकी यह गर्भावस्था के समय में माँ और बच्चे पर प्रतीकूल असर पड सकता है। सरोगेट माँ की चिकित्सा का बीमा, गर्भावस्था तथा बच्चे की जन्म से सम्भन्धित और अन्य उचित खर्च सहित खर्चों, माता-पिता द्वारा वहन की जाना चाहिए। सरोगेट माँ के लिए एक जीवन बीमा कवर को शामिल करना चाहिए। सरोगेट माँ को बच्चों पर किसी भी अभिभाविक अधिकार नहीं होना चाहिए और बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र पर सरोगेट माँ की नाम नहीं होना चाहिए ताकी भविष्य में जन्म अधिकार में कोई कानूनी कलह न हो। माता-पिता कानून के अनुसार बच्चे (सामान्य हो या नहीं) की कस्टाडी को स्वीकार करने के लिए बाध्य है। अत्यंत गुप्त हमेशा बनाए रखा जाना चाहिए और दाता के निजता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।

धार्मिक परिपेक्ष्य संपादित करें

ईसाई धर्म संपादित करें

ईसाई धर्म सरोगेट माँ के बारे में उनकी राय में एकमत सहमती नहीं है। कैथलिक जिरह एक बच्चे की हक नहीं बल्कि एक उपहार माना जाता है और 'एक मांस' सिद्दन्त के अनुसार सरोगसी अस्वीकार्य है। प्रोटेस्टेन्ट स्ंप्रदायों में सरोगसी संबंधित सवालों कम कटौती तथा शुल्क है। प्रोटेस्टेंट चर्च इसे उदार दृष्टि से देखा जाता है।

यहूदी धर्म संपादित करें

रूढीवादी रब्बियाँ सरोगसी प्रक्रिया, मात्रत्व अनादर तथा अपमानजनक माना गया है। यह सरोगेट माँ तथा माता-पिता के बीच का अन्तर्निर्हित असन्तुलन तथा आर्थिक मत्भेद को प्रकाशित करता है। परन्तु लोगों के बंजरपन की पीडा को दूर करने के लिए कभी कभी स्वीकार भी करते हैं।

इस्लाम धर्म संपादित करें

इस्लाम विद्धानों शरिया कानून के नज़रैये से सरोगसी प्रक्रिया को अस्वीकार करते हुए कहता है कि पैदा होनेवाले बच्चे को न्यायपूर्व वन्श नहीं मिल सकता है क्योकी तीसरे व्यक्ति के कुल भी जुडे है। फिल्हाल इस प्रक्रिया को विकास संबंधित मुसल्मानो ने अनुकूल किया है।

हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म एवं सिख धारा संपादित करें

हिन्दू धर्म विशेष परिस्थितियों में बंजरपन और कृत्रिम गर्भदान को अनुभूति देती है और इसमें पित के शुक्राणुओं का उपयोग करते हैं ताकि बच्चे को अपने वन्श का पता हो। बौद्ध् धर्म इस प्रक्रिया को स्वीकार नहीं किया है क्योकि बौद्ध् धर्म में माना जाता है कि यदि संतानोत्पत्ति न हो तो अनाथ बच्चे को गोद लेना चाहिए। से नहीं माना गया है।[1][2][3][4]

संदर्भ संपादित करें

  1. Regulators eye India's surrogacy sector. Archived 2010-04-06 at the वेबैक मशीन By Shilpa Kannan. India Business Report, BBC World. Retrieved on 23 Mars, 2009
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फ़रवरी 2014.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फ़रवरी 2014.
  4. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 23 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फ़रवरी 2014.