स्पिन गेंदबाजी

(स्पिन गेंदबाज से अनुप्रेषित)

स्पिन गेंदबाजी क्रिकेट के खेल में गेंदबाजी के लिए प्रयोग की जाने वाली एक तकनीक है। इस तकनीक के माहिरों को स्पिन गेंदबाज या स्पिनर कहा जाता है।

स्पिन गेंदबाजी का मुख्य उद्देश्य गेंद को तेज़ घुमाव (रोटेशन) के साथ फेंकना होता है, ताकि पिच पर टप्पा खाने के बाद गेंद दिशा परिवर्तन करे और बल्लेबाज़ को उसे खेलने में कठिनाई हो। [1] इस विधा में गेंद की गति महत्वपूर्ण नहीं है, तथा तेज़ गेंदबाजी के मुकाबले में यह काफी कम होती है। आम तौर पर स्पिन गेंद की गति 70- 90 कि॰मी॰ प्र. घ.(45 -55 मील प्र. घ.) रहती है।

 
एक ऑफ स्पिन गेंदबाजी.
 
एक लेग स्पिन गेंदबाजी.

गेंदबाज के हाथ के इस्तेमाल को देखते हुए स्पिन गेंदबाजी को चार अलग अलग श्रेणियों में बांटा गया है। हालाँकि अंगुली और कलाई के इस्तेमाल वाली दो मूल बायोमेकेनिकल विधाओं में कोई भी समानता नहीं है।

  • ऑफ स्पिन - दायें हाथ से अंगुली द्वारा स्पिन की कला. (उदाहरण जिम लेकर)
  • लेग स्पिन - दायें हाथ से कलाई द्वारा स्पिन. (उदहारण शेन वार्न)
  • बायें हाथ की परंपरागत स्पिन - बायें हाथ से अंगुली द्वारा स्पिन. (उदाहरण डेनियल विटोरी)
  • बायें हाथ की अपरम्परागत स्पिन - बायें हाथ से कलाई द्वारा स्पिन (उदाहरण ब्रेड हॉग)

हर तकनीक में स्पिनर कलाई या अंगुली का प्रयोग करके एक क्षैतिज पंक्ति के इर्द-गिर्द गेंद को घुमाता है। यह पंक्ति पिच के लम्बाई से एक कोण पर होती है। इस विधा में मैगनस प्रभाव के कारण गेंद टप्पा खाने से पहले भी हवा में दिशा परिवर्तन कर सकती है। इस तरह के दिशा-परिवर्तन को ड्रिफ्ट कहा जाता है। स्पिन तथा ड्रिफ्ट का मेल गेंद की चाल को अति क्लिष्ट बना देता है और वो टप्पा खाने के बाद दिशा परिवर्तन भी करती है।

एक स्पिन गेंदबाज के द्वारा प्राप्त स्पिन, दिशा-परिवर्तन व घुमाव से अनुभवहीन बल्लेबाजों को काफी उलझन हो सकती है।

स्पिन गेंदबाजों को आम तौर पर एक पुरानी गेंद के साथ गेंदबाजी करने का कार्य दिया जाता है। नई गेंद तेज़ गेंदबाजी के लिए तथा पुरानी घिसी हुई गेंद स्पिन गेंदबाजी के लिए अनुकूल होती है। पुरानी घिसी हुई गेंद पिच को बेहतर पकड़ कर अधिक स्पिन प्राप्त करती है।[1] पिच के सूखने व दरारें पड़ने से मैच के के बाद के हिस्से में स्पिनर अधिक प्रभावशाली हो जाते हैं। इस समय स्पिनर को पिच अधिक मदद करती है और गेंद बेहतर स्पिन होती है।

अनुरूपताएं

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उंगली स्पिन और कलाई स्पिन गेंदबाज, दोनों स्पिन के विभिन्न कोणों का उपयोग करके बल्लेबाज को भ्रमित और आउट करते हैं। इन भिन्न विधाओं में आपस में कई प्रत्यक्ष समकक्ष है, लेकिन हर विधा में नाम अलग हो सकता है।

अनुरूप अवधारणायें और शब्दावली[2]
विवरण अंगुली स्पिन कलाई स्पिन
एक प्रकार की गेंद (डिलीवरी) जहाँ वह पहले नीचे की तरफ आकर फिर उछलती है। टॉप स्पिनर टॉप स्पिनर
इस डिलीवरी में गेंद सामान्य से विपरीत दिशा में जाती है ('रांग अन') दूसरा गुगली (उर्फ बोजी)
एक डिलीवरी जहाँ गेंद बल्लेबाजों से दूर स्पिन करती है तथा उसकी सीम अनियमित होती है। बैक स्पिनर (उर्फ तीसरा) स्लाइडर (उर्फ ज़ूटर)
एक डिलीवरी जहाँ गेंद बल्लेबाजों से दूर स्पिन करती है तथा उस की सीम नियमित रहती है जिससे स्विंग उत्पन्न होती है। आर्म बॉल स्लाइडर - (कम ही इस्तेमाल होती है)
एक डिलीवरी जहाँ गेंद अँगुलियों में भींच कर विपरीत दिशा में स्पिन करायी जाती है। कोई वास्तविक समकक्ष नहीं फ्लिपर
एक डिलीवरी जहाँ गेंद अपने क्षैतिज अक्ष पर घुमाव व दिशा-परिवर्तन प्राप्त करे, परन्तु दिशा परिवर्तन नहीं अंडर कटर कोई वास्तविक समकक्ष नहीं

पिच का प्रभाव

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हाल के वर्षों में स्पिन गेंदबाजी की कला में भारतीय उपमहाद्वीप के गेंदबाजों का वर्चस्व रहा है। इसके लिए प्राथमिक कारण यह है कि उप महाद्वीप में पिच स्पिन गेंदबाजों को अधिक मदद प्रदान करती है। पिच जितना शीघ्र टूटे, स्पिनर उतना जल्दी प्रभावी होता है। आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के पिच आमतौर पर बहुत सख्त और उछाल वाले हैं जहाँ तेज गेंदबाज को अधिक मदद मिलती है। वे टेस्ट मैच की पूरी अवधि के दौरान ज्यादा नहीं टूटते. लेकिन उप महाद्वीप में पिचें उतनी सख्त नहीं हैं। उनमें आम तौर पर बंधे रखने के लिए अधिक घास नहीं होती है। इसलिए यहाँ पिचें जल्दी टूट जाती हैं तथा स्पिन के लिए अनुकूल होती जाती हैं। स्पिन की सभी कलाओं में लेग स्पिन सबसे कठिन कला है, परन्तु विकेट लेने की सफलता भी इसी में सर्वाधिक है।[3]

इन्हें भी देखें

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  • क्रिकेट शब्दावली
  • सीम गेंदबाजी
  • स्विंग गेंदबाजी
  1. नाइट, पीपी.122-123.
  2. ब्रायन विल्किंस "दी बॉलर्स आर्ट"
  3. बॉब वूल्मर "दी आर्ट एंड सांइस ऑफ क्रिकेट"

संदर्भग्रन्थ

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  • बार्कलेज वर्ल्ड ऑफ क्रिकेट, तीसरा संस्करण (आदि. ई डब्ल्यू स्वांटन), विल्लो बुक्स, 1986.
  • जूलियन नाइट, क्रिकेट फॉर ड्मीज़, जॉन विले एंड संस, 2006

बाहरी कड़ियाँ

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