स्वभावोक्ति अलंकार
काव्य में किसी वस्तु व्यक्ति या स्थिति के स्वाभाविक वर्णन से इस अलंकार की सृष्टि होती है। इस अर्थालंकार में सादगी में चमत्कार रहता है। जैसे-
चितवनी भोरे भाय की गोरे मुख मुसकानी।
लगनी लटकी आलीर गरे चित खटकती नित आनी।। (बिहारी)
नायक नायिका की सखी से कहता है कि उस नायिका के भोलेपन की चितवन गोरे मुख की हँसी और वह लटक लटक कर सखी के गले लिपटना ये चेष्टाएँ नित्य मेरे चित्त में खटका करती रहती हैं। यहाँ नायिका के चित्रित आँगिक व्यापारों में सभी स्वाभाविक हैं। इसमें वस्तु दृष्य अथवा चेस्टाओं का स्वाभाविक अंकन हुआ है।