स्वरक्त चिकित्सा
रोगी की शिरा से रक्त लेकर इसे सुई द्वारा उसकी बाला लखनदार कुमार पंडित में प्रविष्ट कराने को 'स्वरक्त चिकित्सा (Autohemotherapy) कहते हैं। कई रोगों में यह चिकित्सा लाभप्रद सिद्ध हुई है।
रक्त एक बार शरीर से बाहर निकलने के बाद शरीर में पुन: जाने पर विजातीय प्रोटीन जैसा व्यवहार करता है। यह विश्वसनीय अविशिष्ट प्रोटीन चिकित्सा का अंग बन गया है। सुई से शरीर में रक्त प्रविष्ट कराने पर शरीर में प्रतिक्रिया होती है जिससे ज्वर आ जाता है, सर्दी मालूम होती है और प्यास लगती है। श्वेत रुधिरकणों की संख्या बढ़ जाती है पर शीघ्र ही उनका ह्रास होकर लाल रुधिर कणों की संख्या सहसा बढ़ जाती है। इससे शरीर की शक्ति एवं प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है जिससे रोग में आराम होने लगता है। कहीं कहीं इसका परिणाम स्थायी और कहीं कहीं अस्थायी होता है। जीर्ण एवं तीव्र श्वास रोग में यह लाभकारी सिद्ध हुआ है। अम्लपित्त, नेत्ररोग, त्वचा के रोग और एलर्जी में यह अच्छा कार्य करता है। एक घन सेमी रुधिर सुई से दे सकते हैं। रुधिर की अल्पमात्रा की सुई शरीर की किसी भी मांसपेशी में दे सकते हैं किंतु चार या इससे अधिक घन सेमी रक्त की सुई केवल नितंब की मांसपेशी में ही देते हैं। सुई एक दिन के अंतर पर ही दी जाती है।