स्वाँग एक लोकनाट्य रूप है जिसमें किसी रूप को स्वयं में आरोपित कर उसे प्रस्तुत किया जाता है। राजस्थान राज्य के लोकनाट्य रूपों में एक परम्परा 'स्वांग' की भी है। स्वांग में किसी प्रसिद्ध रूप की नकल रहती है। इस प्रकार से स्वांग का अर्थ किसी विशेष, ऐतिहासिक या पौराणिक चरित्र, लोकसमाज में प्रसिद्ध चरित्र या देवी, देवता की नकल में स्वयं का शृंगार करना, उसी के अनुसार वेशभूषा धारण करना एवं उसी के चरित्र विशेष के अनुरूप अभिनय करना है। यह स्वांग विशेष व्यक्तित्व की नकल होते हुए भी बहुत जीवन्त होते हैं कि इनसे असली चरित्र होने का भ्रम भी हो जाता है। इसे बहलोल नाम से भी जाना जाता है।

इन्हें भी देखें

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