स्वामी आनन्दबोध सरस्वती (१९०९ - अक्टूबर १९९४) आर्यसमाज के नेता तथा संसद सदस्य थे। उनका मूल नाम 'रामगोपाल शालवाले' था।

श्री आनन्दगोपाल शालवाले का जन्म कश्मीर के अनन्तनाग में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री लाला नन्दलाल था जो मूलतः अमृतसर के निवासी थे।

सन १९२७ में अमृतसर से दिल्ली आ गए । दिल्ली आकर आप आर्य समाज के नियमित सदस्य बने । आप को पं. रामचन्द्र देहलवी की कार्यशैली बहुत पसन्द आयी तथा आप ने उन्हें अपनी प्रेरणास्रोत बना लिया । आर्य समाज के प्रति समर्पण भाव तथा मेहनत व लगन के परिणामस्वरूप आपको आर्य समाज दीवान हाल का मन्त्री बनाया गया। बाद में आप इस समाज के प्रधान बने। इन पदों को आपने लम्बे समय तक निभाया । इस आर्य समाज के पदाधिकारी रहते हुए ही आपने सामाजिक कार्यों का बड़े ही सुन्दर ढ़ंग से निर्वहन किया ।

आप की प्रतिभा का ही यह परिणाम था कि आप आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के अनेक वर्ष तक अन्तरंग सदस्य रहे । अनेक वर्ष तक आप आर्य समाज की सर्वोच्च सभा सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के उपमन्त्री, उप प्रधान तथा प्रधान रहे। उच्चकोटि के व्याख्यानकर्ता, उच्चकोटि के संगठनकर्ता तथा आर्य समाज के उच्चकोटि के कार्यकर्ता लाला रामगोपाल जी ने सदा आर्य समाज की उन्नति में ही अपनी उन्नति समझी तथा इस के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते थे । देश के उच्च अधिकारियों से आप का निकट का सम्पर्क था तथा बड़े-बड़े काम भी आप सरलता से निकलवा लेते थे ।

आप ही के प्रयास से हैदराबाद सत्याग्रह को राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम स्वीकार किया गया । आपके नेतृत्व में अनेक आन्दोलन व अनेक सम्मेलन किए गय । कालान्तर में आपने संन्यास की दीक्षा स्वामी सर्वानन्द जी से ली तथा रामगोपाल शालवाले से स्वामी आनन्द बोध हुए ।

आपने "पूजा किसकी?" , "ब्रह्मकुमारी संस्था" आदि पुस्तकें भी लिखीं । १९७८ इस्वी में आप की सेवाओं को सामने रखते हुए आप का अभिनन्दन भी किया गया तथा इस अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ भी प्रकाशित किया गया।

आप का अक्टूबर १९९४ देहान्त हो गया ।

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