स्वामी गोपाल दास (Swami Gopaldas Churu ) (1882-1939) चूरु राजस्थान में जन जागृति के अग्रदूत स्वामी गोपालदास यूं तो एक मंदिर के महंत थे लेकिन उन्होंने समाज सेवा, दलित तथा बालिका शिक्षा के लिए समय के उस कालखंड में जो महान कार्य किया वैसा उदाहरण राजस्थान में दूसरा नहीं मिलता है। महात्मा गांधी के अफ्रीका से भारत आने से पहले ही उन्होंने अछूतोद्धार तथा महिला शिक्षा के लिए न सिर्फ अलख जगाई अपितु बेटियों की शिक्षा के लिए सर्वहितकारिणी पुत्री पाठशाला तथा दलित शिक्षा के लिए बाल्मीकि बस्ती में कबीर पाठशाला खोली। जिले के भैंरुसर गाँव में बींजा राम के घर पैदा हुये। आपने चूरु में अनेक समाज सुधार के काम किये। चूरू में जन जागृति के जन्मदाता स्वामी गोपालदास ने ईस्वी सन 1907 में सर्व हितकारिणी सभा की स्थापना कर आजादी की अलख जगाई। स्वामी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन के साथ साथ समाज सुधार का कार्य भी प्रारंभ किया। स्वामी जी ने समाज की दो सबसे दुखती रगों पर हाथ रखा। उन्होंने 1912 में बेटियों की शिक्षा के लिए सर्व हितकारिणी पुत्री पाठशाला तथा दलित शिक्षा के लिए कबीर पाठशाला खोली। समाज ने पत्थर फेंक कर स्वागत किया लेकिन स्वामी अडिग रहे। यहाँ गायों के संरक्षण के कई काम किये। पर्यावरण सुधारने के लिये पेड़ लगाये और चारागाह विकास के काम जनभागीदारी से कराये। सन 1917-18 भयंकर प्लेग महामारी के समय इनकी समाज सेवा का दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है। यहाँ के प्रसिद्ध कवि पंडित अमोलक चन्द ने ये पंक्तियां लिखी हैं:

"चूरु शहर में शोर भयो, जद जोर करयो पलेग महामारी।
लाश पड़ी घर के अन्दर ढक छोड़ चले बंद किवाड़ी।।
आवत है गोपाल अश्व चढ देखत जहाँ बीमार पड्यो है।
देत दवा वो दया करके नाथ, अनाथ को नाथ खड्यो है।।"
कबीर पाठशाला व पुत्री पाठशाला की स्थापना की  !
26 जनवरी 1930 गोपालदास व चन्दनमल बहड ने चुरू के धर्मस्तुप (लालघंटाघर) पर तिरंगा फहराया!
ईन्होने "प्लेग" बीमारीयो का ईलाज भी कीया?
1932 के "बीकानेर षंडयंत्र केस" मे ईन्हे पकड़ कर जेल मे डाल दिया था और चार वर्ष की कठोर यातनामय सजा दी गई। बीकानेर प्रजामंडल मे जनजागृति का श्रैय स्वामी जी को जाता है, ये एक महान नेतृत्व कर्ता थे

09 जनवरी 1939 को लक्ष्मण झूला उत्तर प्रदेश में स्वामी ने अंतिम सांस ली। स्वतंत्रता उपरांत 1956 में जयनारायण व्यास ने स्वामी गोपालदास जी की प्रतिमा का अनावरण किया।