स्वामी सारदानन्द
भारतीय संन्यासी (1865-1927)
स्वामी सारदानन्द (23 दिसम्वर,1865 -19 अगष्ट, 1927) रामकृष्ण परमहंस के संन्यासी शिष्यों में से एक थे। उनका पूर्वाश्रम का नाम शरतचन्द्र चक्रबर्ती था। रामकृष्ण मिशन की स्थापना के बाद वे इसके प्रथम संपादक बने और मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। श्रीमाँ शारदा देवी के रहने के लिए उन्होंने कोलकाता में उद्वोधन भवन का निर्माण करवाया और बांग्ला पत्रिका उद्बोधन का प्रकाशन किया। सारदानन्दने श्रीरामकृष्ण लीलाप्रसंग नामक विख्यात पुस्तक की रचना की।
स्वामी सारदानन्द | |
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स्वामी सारदानन्द | |
जन्म |
Sarat Chandra Chakraborty 23 दिसम्बर 1865 Calcutta, Bengal Presidency, British India |
मृत्यु |
19 अगस्त 1927 Calcutta, India | (उम्र 61 वर्ष)
गुरु/शिक्षक | Ramakrishna Paramahansa |
कथन | Through selfless work the mind gets purified. And when the mind becomes pure, there arise knowledge and devotion in it. |
धर्म | हिन्दू |
दर्शन | [बेदान्त]] |
रचना
संपादित करेंस्वामी सारदानन्द ने रामकृष्ण की प्रामाणिक जीवनी ग्रंथ "श्रीरामकृष्ण लीलाप्रसंग" की रचना की। पाँच खंडों में रचित यह ग्रंथ रामकृष्ण की जीवनीयोँ में सर्वश्रेष्ठ हैँ। इसके अतिरिक्त वे 'भारत में शक्तिपूजा' और 'गीतातत्व' नामक दो पुस्तक भी लिखे।
आगे अध्ययन के लिए
संपादित करें- स्वामी सारदानन्द, रामकृष्ण मठ, नागपुर
- स्वामी गंभीरानन्द . रामकृष्ण भक्तमालिका. रामकृष्ण मठ, नागपुर
सन्दर्भ
संपादित करें- स्वामी सारदानन्द, रामकृष्ण मठ, नागपुर
- स्वामी गंभीरानन्द . रामकृष्ण भक्तमालिका. रामकृष्ण मठ, नागपुर
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Swami Saradananda on BuddhistLibrary.com
- Udbodhan
- God Lived with Them by Swami Chetanananda, publisher Advaita Ashrama
- Glimpses of a Great Soul - A Portrait of Swami Saradananda, by Swami Asheshananda, published in 1982