स्वीकारपत्र
स्वीकारपत्र आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित एक लघु पुस्तिका है। यह मूलतः राजकीय मुद्रा पत्र पर लिखित एक वसीयतनामे की तरह है जिसमें उन्होंने अपने देह त्यागने के बाद अपना काम आगे बढ़ाने के लिए परोपकारिणी सभा का वर्णन किया है।
लेखक | स्वामी दयानंद सरस्वती |
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अनुवादक | कोई नहीं, मूल पुस्तक हिन्दी में है |
रचनाकार | अज्ञात |
कवर कलाकार | अज्ञात |
भाषा | हिन्दी |
शृंखला | शृंखला नहीं |
विषय | मृत्योपरांत निजा कार्यों का प्रतिपादन |
शैली | धार्मिक, सामाजिक |
प्रकाशक | परोपकारिणी सभा व अन्य |
प्रकाशन स्थान | भारत |
मीडिया प्रकार | मुद्रित पुस्तक |
पृष्ठ | ४ |
आई.एस.बी.एन | अज्ञात Parameter error in {{isbn}}: Invalid ISBN. |
ओ.सी.एल.सी | अज्ञात |
इससे पहले | शृंखला नहीं |
इसके बाद | शृंखला नहीं |
सामग्री व प्रारूप
संपादित करेंइस पत्रक में 13 साक्षियों[1] के आरंभ में ही हस्ताक्षर है। इसके बाद परोपकारिणी सभा के 23 प्रस्तावित पदाधिकारियों व सभासदों के नाम हैं। इनमें प्रमुख हैं महादेव गोविंद रानडे[2] तथा लाहौर, दानापुर, बम्बई, पूना, फ़र्रूख़ाबाद व कानपुर के आर्यसमाजों के तत्कालीन पदाधिकारी। तत्कालीन उदयपुर नरेश सज्जनसिंह जी परोपकारिणी सभा के प्रधान नियुक्त किए गए।
यह पुस्तिका स्वामी दयानंद के देहावसान के कुछ समय पूर्व ही प्रकाशित हुई थी। इसमें उन्होने परोपकारिणी सभा के कार्यकलापों के अलावा यह भी लिखा है कि उनका अंतिम संस्कार वेदोक्त रीति से कैसे किया जाए।
उल्लेखनीय है कि परोपकारिणी सभा के नियमों में यह भी उल्लेख है कि यदि सभा में कोई झगड़ा हो तो आपस में सुलह करें किंतु कचहरी न जाएँ[3] तो कचहरी न जाएँ, किंतु यदि न सुलझे तो तत्कालीन राजा से सलाह ली जाए। मुख्यतः अंग्रेज़ों की बनाई कचहरी द्वारा हस्तक्षेप से बचने के लिए ऐसा किया गया होगा। अंतिम नियम में यह भी लिखा है कि यदि आवश्यकता पड़े तो सभासद् इन नियमों में बाद में परिवर्तन भी ला सकते हैं।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ स्वीकारपत्र Archived 2015-06-03 at the वेबैक मशीन पृष्ठ १
- ↑ स्वीकारपत्र[मृत कड़ियाँ] पृष्ठ २
- ↑ स्वीकारपत्र[मृत कड़ियाँ] पृष्ठ ४