हंसा मेहता
हंसा जीवराज मेहता (गुजराती- હંસા જીવરાજ મહેતા, 3 जुलाई सन् 1897 - 4 अप्रैल 1995) [1] भारत की एक सुधारवादी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी, नारीवादी और लेखिका थीं। [2][3] उनके पिता मनुभाई मेहता बड़ौदा और बीकानेर रियासतों के दीवान थे। पत्रकारिता और समाजशास्त्र में उच्च शिक्षा के लिए वे १९१९ ई॰ में इंग्लैंड चली गईं। १९४१ ई॰ से १९५८ ई॰ तक बड़ौदा विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर के रूप में हंसा मेहता ने शिक्षा जगत में अपनी छाप छोड़ी।[4]
हंसा जीवराज मेहता | |
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चित्र:HansaJivrajMehtaPic.jpg | |
जन्म |
03 जुलाई 1897 |
मौत |
4 अप्रैल 1995 | (उम्र 97 वर्ष)
जीवनसाथी | जीवराज नारायण मेहता |
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंहंसा मेहता का जन्म 3 जुलाई 1897 को बॉम्बे राज्य (वर्तमान में गुजरात) के एक नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह मनुभाई मेहता की बेटी थी (जो तत्कालीन बड़ौदा राज्य के दीवान थे) और नंदशंकर मेहता की पोती, (जो गुजराती भाषा के पहले उपन्यास करण घेलो के लेखक थे)।[6][7]
उन्होंने 1918 में दर्शनशास्त्र में स्नातक किया, जिसके बाद उन्होंने इंग्लैंड में पत्रकारिता और समाजशास्त्र का अध्ययन किया। 1918 में वे सरोजिनी नायडू से और बाद में वह 1922 में महात्मा गांधी से मिलीं।[8][9] उनकी शादी प्रख्यात चिकित्सक और प्रशासक जीवराज नारायण मेहता से हुई थी।
जीवनी
संपादित करेंराजनीति, शिक्षा और सक्रियता
संपादित करेंहंसा मेहता ने विदेशी कपड़े और शराब बेचने वाली दुकानों के बहिष्कार का आयोजन किया, और महात्मा गांधी की सलाह पर अन्य स्वतंत्रता आंदोलन गतिविधियों में भाग लिया। यहां तक कि उन्हें 1932 में अपने पति के साथ अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर जेल तक भेज दिया था। बाद में वह बॉम्बे विधान परिषद से प्रतिनिधि चुनी गईं। [10]
स्वतंत्रता के बाद, वे उन 15 महिलाओं में शामिल थीं, जो भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली घटक विधानसभा (Constituent Assembly) का हिस्सा थीं।[11] वे सलाहकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप समिति की सदस्य थीं। [12] उन्होंने भारत में महिलाओं के लिए समानता और न्याय की वकालत की। [13][14]
हंसा 1926 में बॉम्बे स्कूल कमेटी के लिए चुनी गईं और 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं। हैदराबाद में आयोजित अखिल भारतीय महिला सम्मेलन सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में, उन्होंने महिला अधिकारों का एक चार्टर प्रस्तावित किया। वे 1945 से 1960 तक भारत में विभिन्न पदों पर रहीं, जिनमे से उल्लेखनीय पद हैं - एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय की कुलपति, अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की सदस्य, इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड ऑफ़ इंडिया की अध्यक्ष और महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ़ बड़ौदा की कुलपति।[15]
संयुक्त राष्ट्र में योगदान
संपादित करेंहंसा ने 1946 में महिलाओं की स्थिति पर एकल उप-समिति में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1947-48 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में, उन्होंने " सभी पुरुषों को समान बनाया गया है" या "all men are created equal" (जो कि अमेरिका की तत्कालीन फ़र्स्ट लेडी एलिनोर रूज़वेल्ट का पसंदीदा वाक्यांश था) में "पुरुष" शब्द को बदलकर "मानव" शब्द उपयोग में लाने की क़वायद की, जिसके बाद यह "सभी मानवों को समान बनाया गया है" या ""all human beings are created equal" के रूप में पढ़ा जाने लगा। इससे वे ये साबित करना चाहती थीं कि अधिकार केवल पुरुषों के लिए नहीं बल्कि महिलाओं के लिए भी हैं, क्योंकि वे भी उतनी ही "मानव" हैं, जितने पुरुष। अंततः मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की भाषा को बदलने में वे सफल रहीं[16] और इससे लैंगिक समानता की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ा।[17] हंसा बाद में 1950 में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग की उपाध्यक्ष बनीं। वे यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड की सदस्य भी थीं।[18][19][20]
साहित्य कैरियर
संपादित करेंउन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं, जिनमें अरुणू अदभुत स्वप्न (1934), बबलाना पराक्रमो (1929), बलवर्तावली भाग 1-2 (1926, 1929) शामिल हैं। वह कुछ किताबें अनुवाद वाल्मीकि रामायण: अरण्यकाण्ड, बालकाण्डऔर सुन्दरकाण्ड। उन्होंने कई अंग्रेजी कहानियों का अनुवाद भी किया, जिसमें गुलिवर्स ट्रेवल्स भी शामिल है। उन्होंने शेक्सपियर के कुछ नाटकों को भी रूपांतरित किया था। उनके निबंध एकत्र किए गए और केतलाक लेखो (1978) के रूप में प्रकाशित हुए। [21][22]
पुरस्कार
संपादित करेंहंसा मेहता को 1959 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।[23]व राष्ट्रीय ध्वज को संविधान सभा में हंसा मेहता द्वारा ही प्रस्तुत किया गया।
यह भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Trivedi, Shraddha (2002). Gujarati Vishwakosh (Gujarati Encyclopedia). Vol. 15. Ahmedabad: Gujarati Vishwakosh Trust. पृ॰ 540. OCLC 248968453.
- ↑ Wolpert, Stanley (5 April 2001). Gandhi's Passion: The Life and Legacy of Mahatma Gandhi. Oxford University Press. पृ॰ 149. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780199923922.
- ↑ Srivastava, Gouri (2006). Women Role Models: Some Eminent Women of Contemporary India. Concept Publishing Company. पपृ॰ 14–16. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788180693366.
- ↑ Jain, Devaki (2005). Women, Development and the UN. Bloomington: Indiana University Press. पृ॰ 20.
- ↑ "Hansa Jivraj Mehta". Praful Thakkar's Thematic Gallery of Indian Autographs. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 June 2016.
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- ↑ "Hansa Jivraj Mehta: Freedom fighter, reformer; India has a lot to thank her for". The Indian Express (अंग्रेज़ी में). 2018-01-22. मूल से 27 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-08-23.
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- ↑ Chaudhari, Raghuveer; Dalal, Anila, संपा॰ (2005). "લેખિકા-પરિચય" [Introduction of Women Writers]. વીસમી સદીનું ગુજરાતી નારીલેખન [20 Century Women's Writing's in Gujarati] (गुजराती में) (1st संस्करण). New Delhi: Sahitya Akademi. पृ॰ 350. OCLC 70200087. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8126020350.
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- ↑ Ravichandran, Priyadarshini (13 March 2016). "The women who helped draft our constitution". Mint. मूल से 5 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि November 6, 2017.
- ↑ "CADIndia". cadindia.clpr.org.in. मूल से 31 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-01-16.
- ↑ "CADIndia". cadindia.clpr.org.in. मूल से 25 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-01-16.
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- ↑ http://www.un.int/india/india%20&%20un/humanrights.pdf Error in Webarchive template: खाली यूआरएल.
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- ↑ Dhanoa, Belinder (1997). Contemporary art in Baroda. Tulika. पृ॰ 267. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788185229041.
- ↑ "Human Rights Day, 10 December". www.un.org (अंग्रेज़ी में). मूल से 25 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2019-08-16.
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