हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह

सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह


दक्षिणी दिल्ली में स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया (1236-1325) का मकबरा सूफी काल की एक पवित्र दरगाह है। हजरत निज़ामुद्दीन चिश्ती घराने के चौथे संत थे। इस सूफी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की, कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर दिल्ली सल्तनत की सेना ने हमला रोक दिया था, इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हजरत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा।

निजामुद्दीन
निजामुद्दीन औलिया दरगाह
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताइसलाम
चर्च या संगठनात्मक स्थितिदरगाह
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिबोआली गेट रोड, लोधी के सामने, नई दिल्ली
ज़िलानई दिल्ली
देशभारत
हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह is located in नई दिल्ली
हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह
नई दिल्ली के मानचित्र पर अवस्थिति
हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह is located in भारत
हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह
हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह (भारत)
राज्यक्षेत्रDelhi NCR
भौगोलिक निर्देशांक28°35′29″N 77°14′31″E / 28.59136°N 77.24195°E / 28.59136; 77.24195निर्देशांक: 28°35′29″N 77°14′31″E / 28.59136°N 77.24195°E / 28.59136; 77.24195
वास्तु विवरण
वास्तुकारसुन्नी-अल्-जमात्
प्रकारदरगाह
शैलीModern
स्थापित1325
अभिमुखWest
वेबसाइट
www.nizamuddinaulia.org
दिल्ली का हजरत निज़ामुद्दीन रैलवे स्टेशन, पृष्ठभूमि में हुमायुं का मकबरा दिखाई देता हुआ।

दरगाह में संगमरमर पत्थर से बना एक छोटा वर्गाकार कक्ष है, इसके संगमरमरी गुंबद पर काले रंग की लकीरें हैं। मकबरा चारों ओर से मदर ऑफ पर्ल केनॉपी और मेहराबों से घिरा है, जो झिलमिलाती चादरों से ढकी रहती हैं। यह इस्लामिक वास्तुकला का एक विशुद्ध उदाहरण है। दरगाह में प्रवेश करते समय सिर और कंधे ढके रखना अनिवार्य है। धार्मिक गीत और संगीत इबादत की सूफी परंपरा का अटूट हिस्सा हैं। दरगाह में जाने के लिए सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच का समय सर्वश्रेष्ठ है, विशेषकर वीरवार को, मुस्लिम अवकाशों और त्यौहार के दिनों में यहां भीड़ रहती है। इन अवसरों पर कव्वाल अपने गायन से श्रद्धालुओं को धार्मिक उन्माद से भर देते हैं। यह दरगाह निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन के नजदीक मथुरा रोड से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यहां दुकानों पर फूल, लोहबान, टोपियां आदि मिल जाती हैं।

अमीर खुसरो, हज़रत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे, जिनका प्रथम उर्दू शायर तथा उत्तर भारत में प्रचलित शास्त्रीय संगीत की एक विधा ख्याल के ज्ानक के रूप में सम्मान किया जाता है। खुसरो का लाल पत्थर से बना मकबरा उनके गुरु के मकबरे के सामने ही स्थित है। इसलिए हजरत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की बरसी पर दरगाह में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उर्स (मेले) आयोजित किए जाते हैं। अमीर खुसरो, जहांआरा बेगम और इनायत खां के मकबरे भी निकट ही बने हैं।[1]

  1. "Nizamuddin Auliya Dargah, history and structures". मूल से 9 जून 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 अप्रैल 2009.

बाहरी कड़ियाँ

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