हज्ज का एक दृश्य

हज्ज का महत्व संपादित करें

इस्लाम के पाँच स्तम्भों में से हज्ज एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है और हर ऐसे पुरुष एंव स्त्री पर अनिवार्य है जो मक्का जाने की शक्ति रखते हों। कुरआन में उल्लेख है कि: “अल्लाह के घर का हज्ज करना उन व्यक्तियों पर अल्लाह का हक़ है जिन को वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ प्राप्त हो और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।”सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य <ref> टैग; (संभवतः कई) अमान्य नाम

हज्ज का इस्लाम में अनिवार्य होना संपादित करें

  1. व्यक्त का मुस्लिम होना।
  2. समझ-बूझ रखना (पागल पर हज्ज अनिवार्य नहीं)।
  3. बालिग़ होना।
  4. सफ़र खर्च और सवारी की व्यवस्था रखना।
  5. महिलाओं के लिए एक अलग शर्त यह है कि उनके साथ उनका कोई निकट सम्बंधि पुरुष मौजूद हो।सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य <ref> टैग;

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हज्ज के पीछे का इतिहास संपादित करें

इस्लामी मान्यता के अनुसार पैग़म्बर इब्राहीम और पैग़म्बर इस्माईल ने एक अल्लाह की उपासना हेतु काबा की स्थापना की थी, हज्ज उन्हीं की याद को ताज़ा रखते हुए केवल एकेश्वर वाद का एलान है। यह एक विश्वव्यापी सामूहिक प्राथन का प्रदर्शन है। संसार भर के लोगों की स्थिति को पता लगाने का साधन है। इसमें समूचे संसार के लोग अपने देश और रष्ट्रीय वस्त्र से दूर होकर एक विशेष वेशभूषा में आ जाते हैं जिसमें पारस्परिक भाईचारा, दया-भाव और शान्ति का प्रदर्शन होता है।सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य <ref> टैग; (संभवतः कई) अमान्य नाम

हज्ज करनेवालों के लिये मार्गदर्शक निर्देश संपादित करें

  1. अल्लाह के प्रति आज्ञाकारी निष्ठा और हलाल कमाई का ख़र्च।
  2. यात्रा से पूर्व पश्चाताप।
  3. कुरआन और हदीस के अनुसार हज्ज के पूरे कार्य।
  4. जमाअत से पाँचों समय की नमाज़ें पढ़ें।
  5. महिलायें ग़ैर मर्दो के समक्ष बे-पर्दा न हों।सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य <ref> टैग;

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सन्दर्भ संपादित करें