हनुमान सिंह (१८२२ - ) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिनको 'छत्तीसगढ का मंगल पाण्डे' कहा जाता है। 18 जनवरी 1858 को उन्होने सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर दी थी जो रायपुर के तृतीय रेजीमेंट का फौजी अफसर था।

रायपुर में उस समय फौजी छावनी थी जिसे 'तृतीय रेगुलर रेजीमेंट' का नाम दिया गया था। ठाकुर हनुमान सिंह इसी फौज में मैग्जीन लश्कर के पद पर नियुक्त थे। सन् 1857 में उनकी आयु 35 वर्ष की थी। विदेशी हुकूमत के प्रति घृणा और गुस्सा था। रायपुर में तृतीय रेजीमेंट का फौजी अफसर था सार्जेंट मेजर सिडवेल। दिनांक 18 जनवरी 1858 को रात्रि 7:30 बजे हनुमान सिंह अपने साथ दो सैनिकों को लेकर सिडवेल के बंगले में घुस गये और तलवार से सिडवेल पर घातक प्रहार किये। सिडवेल वहीं ढेर हो गया।

हनुमान सिंह के साथ तोपखाने के सिपाही और कुछ अन्य सिपाही भी आये। उन्हीं को लेकर वह आयुधशाला की ओर बढ़े और उसकी रक्षा में नियुक्त हवलदार से चाबी छीन ली। बन्दूको में कारतूस भरे। दुर्भाग्यवश फौज के सभी सिपाही उसके आवाहन पर आगे नहीं आये। इसी बीच सिडवेल की हत्या का समाचार पूरी छावनी में फैल चुका था। लेफ्टिनेन्ट रैवट और लेफ्टिनेन्ट सी.एच.एच. लूसी स्थिति पर काबू पाने के लिये प्रयत्न करने लगे। हनुमान सिंह और उसके साथियों को चारों ओर से घेर लिया गया।

हनुमान सिंह और उसके साथ छः घंटों तक अंग्रेजों से लोहा लेते रहे। किन्तु धीरे-धीरे उनके कारतूस समाप्त हो गये। अवसर पाकर हनुमान सिंह फरार होने में सफल हो गये। किन्तु उनके 17 साथियों को अंग्रजों ने गिरफ्तार कर लिया।

इसके बाद हनुमान सिंह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। 22 जनवरी 1858 को उनके साथी क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई, जिनके नाम हैं: शिवनारायण, पन्नालाल, मतादीन, ठाकुर सिंह, बली दुबे, लल्लासिंह, बुद्धू सिंह, परमानन्द, शोभाराम, गाजी खान, अब्दुल हयात, मल्लू, दुर्गा प्रसाद, नजर मोहम्मद, देवीदान, जय गोविन्द।

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