हबीब जालिब
हबीब जालिब (उर्दू: حبیب جالب) एक पाकिस्तानी क्रांतिकारी कवि, वामपंथी कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ जिसने मार्शल लॉ, अधिनायकवाद और राज्य दमन का विरोध किया।[3] पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज ने उसे यह कह कर श्रद्धांजलि अर्पित की थी कि वह वास्तव में आम जनता का कवि था। [4]
Habib Jalib حبیب جالب | |
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जन्म | हबीब अहमद 24 मार्च 1928[1] होशियारपुर, पंजाब |
मौत | 12 मार्च 1993[1] लाहौर, पाकिस्तान | (उम्र 64 वर्ष)
पेशा | उर्दू कवि, राजनैतिक ऐक्टिविस्ट |
राष्ट्रीयता | ब्रिटिश राज (1928–1947) पाकिस्तानी (1947–1993) |
आंदोलन | प्रगतिवादी लेखक आन्दोलन |
खिताब | निगार पुरस्कार निशान-ए-इम्तियाज़ी[2] (23 मार्च 2009 को मरणोपरांत सम्मानित किया गया) |
बच्चे | ताहिरा हबीब जालिब |
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंहबीब जालिब का जन्म 24 मार्च 1928 को पंजाब के होशियारपुर में हुआ था। भारत के बंटवारे को हबीब जालिब नहीं मानते थे। लेकिन घर वालों की मोहब्बत में इन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा। [5]
शायरी और कविता
संपादित करें- तुमसे पहले जो इक शख्स यहां तख्तनशीं था
- उसको भी अपने खुदा होने का इतना ही यकीं था..
दीप जिस का महल्लात ही में जले
संपादित करेंहबीब जालिब की क्रांतिकारी नज़्म दस्तूर पाकिस्तान में दमन के खिलाफ आवाज़ का घोषणा पत्र बन गयी
उर्दू | हिन्दी | |
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राजनीतिक विचार
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;thinking
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ "Posthumous awards for Jalib, former Dawn editor". Dawn (newspaper). 23 March 2009. अभिगमन तिथि 27 February 2018.
- ↑ "जो भी सत्ता में आया, उसने इस शख्स़ को जेल में डाल दिया". मूल से 14 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितंबर 2018.
- ↑ [1] Archived 2020-04-05 at the वेबैक मशीन, Faiz Ahmed Faiz's quote as tribute to Habib Jalib in an article, Retrieved 9 Nov 2015
- ↑ "गरीबों के हाथ में जलती मशाल जैसी हैं इस कवि की लिखी नज़्में". मूल से 14 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितंबर 2018.