भिन्न
भिन्न (Fraction) एक संख्या है जो पूर्ण के किसी भाग को दर्शाती है। भिन्न दो पूर्ण संख्याओं का भागफल है। भिन्न का एक उदाहरण है जिसमें 3 अंश कहलाता है और 5 हर कहलाता है।
भिन्नों के विभिन्न रूप
संपादित करेंभिन्नों के कई रूप हैं:
(1) उचित भिन्नों के अंश का परम मान उनके हर के परम मान से कम होता है, जैस 3/4, 2/3, 5/7
(2) विषम भिन्नों के अंश का परम मान उनके हर के परम मान से अधिक होता है, जैस 5/4, 8/3, 5/3
(3) मिश्रित भिन्नों के दो भाग हैं: एक भाग पूर्ण संख्या होता है और एक भाग उचित भिन्न होता है, जैसे
(4) तुल्य भिन्नों की राशियाँ समान होती हैं, जैसे और ।
क/ख में यदि क < ख तो भिन्न 'उचित भिन्न' कहलाता है और यदि क > ख, तो भिन्न 'अनुचित भिन्न' कहलाता है। उदाहरण के लिये २/३ एक उचित भिन्न है, जबकि ५/२ एक अनुचित भिन्न।
साधारण भाषा में भिन्न को दो प्रकार से समझ सकते हैं :
- (1) यदि किसी राशि को ख बराबर भागों में बाटें और उनमें से क भाग ले लें, तो इन क भागों का पूरी राशि का क/ख भाग कहते हैं, या
- (2) इस प्रकार की यदि क राशियाँ ले और उनके ख बराबर भाग करें, तो प्रत्येक को एक राशि के क/ख भाग कहते हैं। दो संख्याओं क और ख के अनुपात को भी क/ख भिन्न से व्यक्त किया जाता है। यदि भिन्न क/ख में क या ख को किसी भिन्न से बदल दें तो इस प्रकार बनी भिन्न को मिश्र भिन्न कहते हैं, जबकि मूल भिन्न को सरल भिन्न कहते हैं, जैसे, 3/5 सरल भिन्न है, परंतु (३/४) / (५/७) मिश्र भिन्न के उदाहरण हैं। मिश्र भिन्न को और भी व्यापक बनाया जा सकता है। अंश और हर के बजाय एक भिन्न के बहुत से भिन्नों का योग, अंतर गुणनफल, भागफल हो सकता है। जब भिन्न का हर भिन्न हो, जिसका हर फिर भिन्न हो तथा इसी तरह चलता रहे, तो एसी भिन्न को वितत भिन्न कहते हें, जैसे
भिन्नों के नियम
संपादित करेंभिन्नों के नियम निम्नलिखित है :
- यदि अंश और हर को एक ही संख्या से गुणा या भाग दें तो भिन्न के मान में कोई अंतर नहीं पड़ता, अर्थात्
- a/b = (ak)/(bk)
अतः १/२ और ४/८ के मान समान हैं। इन्हें तुल्य भिन्न कहते हैं।
- यदि दो भिन्नों के हर समान हों तो जिस भिन्न का अंश बड़ा होता है, वह दूसरे से बड़ा होगा। अतः १२/२५ और ७/२५ में से १२/२५ बड़ा है।
- यदि दो भिन्नों के अंश समान हों तो जिस भिन्न का हर छोटा होता है वह भिन्न दूसरे भिन्न से बड़ा होगा। अतः ३/५ और ३/११ में ३/५ बड़ा है।
दशमलव भिन्न
संपादित करेंदशमलव अंकन पद्धति में भिन्न लिखने का दूसरा ढंग है, जो बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। इस पद्धति में इकाई के दसवें, सौवें, हजारवें भाग को एक बिंदु के दाई ओर लिखकर प्रकट करते हैं। इस बिंदु को 'दशमलव बिंदु' और भिन्न को 'दशमलव भिन्न' कहते हैं, जैसे-
- 5.764 = 5 + 7/10 + 6/100 + 4/1000
दशमलव भिन्न को जोड़ने या घटाने के नियम वे ही हैं जो साधारण संख्याओं के लिये हैं। गुणा का नियम यह है कि संख्या को साधारण संख्याओं की तरह गुणा कर गुणनफल में दशमलव बिंदु उतने अंकों के पहले लगाते हैं जो गुणक और गुण्य के दशमलव के बाद के स्थानों का जोड़ होता है, जैसे 4.567 x 3.0024 = 13.7119608 पहले 4,567 और 30,024 का गुणा करें और दाईं ओर से 3+4 स्थान गिनकर दशमलव लगाएँ।
वर्गमूल निकालते समय इसका प्रयोग अपरोक्ष रूप से बहुत पहले (ईसा से लगभग 1,500 वर्ष पूर्व) होता रहा है, जैसे 5 वर्गमूल निकालने तक के लिये 50,000 का वर्गमूल निकालकर फल को 100 से भाग देते हैं।
बहुत छोटी या बहुत बड़ी संख्याओं का निरूपण
संपादित करेंआजकल छोटी और अत्यधिक बड़ी संख्याओं का प्रयोग होता है। इनको सरलता से घात पद्धति से व्यक्त करते हैं तथा इन्हें इस प्रकार लिखते हैं: 0.000003 = 3 x 10-6 या 3,40,000 = 3.4 x 5 इस प्रकार लिखने से बड़ी बड़ी संख्याएँ सूक्ष्म रूप में लिखी जा सकती हैं और मस्तिष्क में संख्या के संनिकट परिणाम का आभास तुरंत हो जाता है।
इतिहास
संपादित करेंअलग-अलग देशों में भिन्नों को लिखने के अलग अलग ढंग थे। भारत में अति प्राचीन काल से भिन्न का ज्ञान था। ऋग्वेद में अर्ध (1/2) और त्रिपाद (3/4) आया हुआ है।[1]
भिन्न का उपयोग तथा उसे लिखने का आधुनिक ढंग भारत की देन है। इसे भिन्नराशि कहते थे। 'भिन्नराशि' का उपयोग आर्यभट और भास्कराचार्य के ग्रन्थों में मिलता है। [2] ब्रह्मगुप्त (628 ई॰ और भास्कराचार्य (1150 ई॰) ने भिन्न को लिखने के लिये उसके अंश को ऊपर तथा हर को नीचे लिखा। वस्तुतः संस्कृत साहित्य में सर्वत्र ही भिन्नात्मक संख्याओं को पूर्णांक से योग या पूर्णांक से घटाते हुए लिखा जाता था। पूर्णांक को एक पंक्ति में लिखा जाता था, अंश को पूर्णांक के नीचे दूसरी पंक्ति में, तथा हर को अंश के नीचे तीसरी पांक्ति में लिखा जाता था। यदि भिन्न के अंश के साथ एक छोटा सा गोला ( ० ) या ( + ) बना हो तो वह यह दर्शाता था कि यह भिन्न पूर्णांक में से घटाया जाएगा। जहाँ ये चिह्न नहीं होते थे वहाँ वह भिन्न, पूर्णांक में जुड़ता था। उदाहरण के लिये भास्कर प्रथम ने निम्नलिखित रूप से भिन्न का निरूपण किया है [3]
- ६ १ २
- १ १ १०
- ४ ५ ९
यह भिन्न, निम्नलिखित के तुल्य है-
- 6 1 2
- 1 1 −1
- 4 5 9
आधुनिक निरूपण पद्धति के अनुसार इसे इस प्रकर लिखा जायेगा : 61/4, 11/5, and 2 − 1/9 (अर्थात, 18/9).
आजकल भिन्न को लिखने में प्रयुक्त क्षैतिज रेखा का जो प्रयोग होता है, वैसा ही प्रयोग प्रथम बार अल हस्सार के ग्रन्थ में मिलता है। अल हस्सार, मध्यकाल का मोरक्को में जन्मा एक मुसलमान गणितज्ञ था।
इन्हें भी देखिए
संपादित करें- वितत भिन्न (Continued fraction)
- आंशिक भिन्न
- श्रेणी (गणित)
- प्रतिशत
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Fractions in Ancient Indian Mathematics Archived 2016-10-13 at the वेबैक मशीन (I. Śykorov ́aCharles University, Faculty of Mathematics and Physics, Prague, Czech Republic.)
- ↑ Miller, Jeff (22 December 2014). "Earliest Uses of Various Mathematical Symbols". मूल से 20 February 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 February 2016.
- ↑ Filliozat, Pierre-Sylvain (2004). "Ancient Sanskrit Mathematics: An Oral Tradition and a Written Literature". प्रकाशित Chemla, Karine; Cohen, Robert S.; Renn, Jürgen; एवं अन्य (संपा॰). History of Science, History of Text. Boston Series in the Philosophy of Science (अंग्रेज़ी में). 238. Dordrecht: Springer Netherlands. पृ॰ 152. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4020-2320-0. डीओआइ:10.1007/1-4020-2321-9_7.