बीसवीं सदी के आरंभ में एक क्षीण और अदृश्य धारा के रूप में उभरा दलित चेतना युक्त साहित्य, सदी के अंत तक हिंदी की एक विस्तृत और क्रांतिकारी शाखा बन गया। जिसमें कविता, कहानी, आत्मकथा, संस्मरण, नाटक, आलोचना आदि सभी विधाएँ शामिल थीं।

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