हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, १९५६
(हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, १९५६ से अनुप्रेषित)
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, १९५६, हिन्दू कोड बिल के अन्तर्गत पारित कई कानूनों में से एक है। इस अधिनियम के अन्तर्गत यह बताया गया है कि जब किसी हिन्दू व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत बनाए मौत हो जाती है, तो उस व्यक्ति की सम्पत्ति को उसके उत्तराधिकारियों, परिजनों या सम्बन्धियों में कानूनी रूप से किस तरह बांटी जाएगी । अधिनियम में मृतक के वारिसों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है, और मृतक की संपत्ति में उनको मिलने वाले हिस्से के बारे में भी बताया गया है।
अधिनियम किन व्यक्तियों पर लागू होगा -
- (१) जो व्यक्ति जन्म से हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हो, या
- (२) कोई ऐसा व्यक्ति जिसने हिंदू, बौद्ध, जैन या सिक्ख धर्म अपना लिया।
- (३) कोई जायज या नाजायज बच्चा जिसके माता-पिता में से कोई एक धर्म से हिंदू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हो और जिसका पालन पोषण किसी जनजाति, समुदाय, समूह और परिवार के रूप में हुआ हो, क्योकि किसी ऐसे व्यक्ति पर जो धर्म से मुसलमान, ईसाई, पारसी या यहूदी न हो, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह हिंदू धर्म का पालन नहीं करता है।
यह अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों पर तब तक लागू होगा, जब तक केन्द्र सरकार द्वारा ऐसा करने की घोषणा न की गई हो।
यह अधिनियम निम्नलिखित स्थितियों में लागू नहीं होगा-
- यह अधिनियम ऐसी सम्पत्ति पर लागू नहीं होगा, जिस सम्पत्ति पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 लागू होता है।
- सौतेला: सौतेले वह बच्चे होते हैं जिसके माँ या बाप ने दूसरा विवाह किया है। ऐसे मामलों में, पिता के जैविक बच्चों (पिछली पत्नी से) का सम्पत्ति पर पहला अधिकार होता है। संक्षेप में कहें तो जैविक बच्चों का अधिकार सौतेले बच्चों से ज्यादा होता है।
- एक साथ मृत्यु के मामले में: अगर दो लोग मारे गए हैं, और अगर यह अनिश्चित हो जाता है कि किसने दूसरे को बचाया तो उत्तराधिकार के लिए इसका विरोध होने तक यह माना जाता है कि छोटे ने बड़े को बचाया।
- लड़कियों का भाग: किसी हिन्दू संयुक्त परिवार का मुखिया वसीयत छोड़े बिना ही मर जाता है और उसके परिवार में बेटे और बेटियां हैं। उसकी सम्पत्ति में एक मकान भी है, जिस पर किसी भी वारिस का पूरी तरह से कब्जा नहीं है। एेसे में बेटियों को हिस्सा तभी मिलेगा, जब बेटे अपना-अपना हिस्सा चुन लेंगे। हालांकि अगर बेटी अविवाहित, विधवा या पति द्वारा छोड़ दी गई है तो कोई भी उससे घर में रहने का अधिकार नहीं छीन सकता। वहीं विवाहित महिला को इस प्रावधान का अधिकार नहीं मिलता।
- पुनर्विवाहित विधवाएँ: यदि मर चुके बेटे या भाई की विधवा उस समय तक विवाह कर लेती है, जब न्यायालय उत्तराधिकार के मामले में सुनवाई करती है तो उसे संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा।
- अपराध: कोई कानूनी उत्तराधिकारी है और उसे सम्पत्ति मिलने वाली है। इसी बीच वह किसी हत्या के मामले में दोषी या शामिल पाया जाता है तो एेसे व्यक्ति को संपत्ति हासिल करने से अयोग्य माना जाएगा।
- धर्म बदलने वालों के उत्तराधिकारी: धर्म बदल चुके लोगों को पूर्वज या पिता द्वारा अधिग्रहित सम्पत्ति के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि एेसे लोगों के उत्तराधिकारियों को अपने हिंदू सम्बन्धियों की सम्पत्ति में हक नहीं मिलेगा, यदि वे उत्तराधिकार के समय हिन्दू नहीं हैं।
- अयोग्य उत्तराधिकारी का उत्तराधिकारी: अयोग्य उत्तराधिकारी के लिए यह माना जाता है कि वह वसीयत बनने से पहले ही मर चुका है। इसलिए उत्तराधिकार उसी के अनुसार जारी रहता है। पिता, जो अयोग्य वारिस है, उसे भले ही कोई संपत्ति न मिले, लेकिन उसका बेटा या श्रेणी-१ उत्तराधिकारी गैर हिंदू विभाजित परिवार में विरासत पर दावा कर सकता है।कानून
सन्दर्भ
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
- हिंदू उत्तराधिकार कानून में बदलाव[मृत कड़ियाँ] (इकनॉमिक टाइम्स)
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956
- हिंदू विधि भाग- 17 : कोई हिंदू वारिस उत्तराधिकार से कब बेदखल होता है
यह भारतीय संविधान-सम्बन्धित लेख अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है, यानि कि एक आधार है।
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