हिन्दवी स्वराज
हिंदवी स्वराज्य का शाब्दिक अर्थ 'हिन्दुओं का अपना राज्य'। 'हिन्दवी स्वराज्य' एक सामाजिक एवं राजनयिक शब्द है जिसकी मूल विचारधारा भारतवर्ष को विधर्मी विदेशी सैन्य व राजनैतिक प्रभाव से मुक्त करना था जो भारतवर्ष में हिन्दूत्व के विनाश पर तुले थे। इस शब्द के प्रणेता छत्रपति शिवाजी महाराज हैं। शिवाजी महाराज ने रायरेश्वर (भगवान शिव) के मंदिर में अपनी उंगली काट कर अपने खून से शिवलिंग पर रक्ताभिषेक कर 'हिन्दवी स्वराज्य की शपथ' ली थी। उन्होंने (श्रीं) ईश्वर की इच्छा से स्थापित हिन्दूओं के राज्य की संकल्पना को जन्म दिया। इसी विचार को नारा बना कर उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष को एकत्रित करने के लिये अफ़ग़ानों, मुग़लों, पुर्तगालियों और अन्य विधर्मी विदेशी मूल के शासकों के विरुद्ध सफल अभियान चलाया। उनकी मुख्य लक्ष्य भारत को विदेशी आक्रमणकारियो के प्रभाव से मुक्त करना था क्योंकि वे भारतीय जनता (विशेषतः हिन्दुओं) पर अत्याचार करते थे, उनके धर्माक्षेत्रों को नष्ट किया करते थे और उनको आतंकित करके धर्मपरिवर्तन किया करते थे। स्वतंत्रता संग्राम के समय इसी विचारधारा को बालगंगाधर टिळक जी ने ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ पुनर्जीवित किया था।"पूर्णतः भारतीय स्वराज" अर्थात हिंदवी स्वराज्य।