हिन्दी विद्यापीठ, हरिद्वार

हिन्दी विद्यापीठ, हरिद्वार हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं अनुसंधान का एक अन्तरराष्ट्रीय संस्थान है। इसकी नींव सन् 1930 में महात्मा गाँधी के मार्गदर्शन मे स्वर्गिय श्री सुरजन सिंह के द्वारा रखी गई तथा मुख्य उद्देश्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना तय किया गया। हिन्दी विद्यापीठ का मुख्य उदेश्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना है। इसके कार्य हैं - एक अखिल भारतीय एवं वैश्विक भाषा के रूप में हिंदी का विकास और प्रचार (संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार) बहुस्तर पर हिंदी भाषा शिक्षण, भाषा एवं साहित्यपरक शोध, तुलनात्मक भाषा विज्ञान, शिक्षकों का शिक्षण, विभिन्न स्तर का पाठ्यक्रम निर्माण एवं विभिन्न स्तर की परीक्षाओं का आयोजन करना।

इस विद्यापीठ को उच्च शिक्षा के एक अंतरराष्ट्रीय मंच के रूप में विकसित किया जा रहा है। हिंदी भाषा में भारतीय मूल्यों व परंपराओं के संवर्द्धन के साथ-साथ आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने तथा इसे इसी रूप में दुनिया के सामने स्थापित करने का अभियान विद्यापीठ द्वारा चलाया जा रहा है। विद्यापीठ की कार्य-संस्कृति, प्रशासन व कार्य-व्यवहार में गांधी जी के विचार मार्गदर्शन का कार्य करते हैं।

उद्देश्य

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  • क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का सम्यक विकास।
  • हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने का सुसंगत प्रयास।
  • महात्मा गांधी के मानवतावादी मूल्यों; यथा - शांति, अहिंसा, सत्य, धर्मनिरपेक्षता, आदि का उन्नयन, स्थापन एवम्‌ प्रसार।
  • हिंदी को जनसंचार, व्यापार, प्रबंधन, विज्ञान एवम्‌ तकनीकी शिक्षा, तथा प्रशासनिक कामकाज की भाषा के रूप में दक्ष बनाना ताकि इसे रोजगार से जोड़ा जा सके।
  • हिंदी के माध्यम से अंतर-अनुशासनिक ज्ञान-प्रणाली को बढ़ावा देना।
  • एक अंतरराष्ट्रीय शोध केंद्र के रूप में विद्यापीठ का विकास।
  • अंतरराष्ट्रीय विमर्श के एक केंद्र के रूप में विद्यापीठका विकास।
  • राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय भाषाओं के मध्य व्यापक एवम्‌ बहुल संपर्क व समन्वय पर जोर।
  • भारतीय एवम्‌ वैश्विक भाषाओं के अन्त:सम्पर्क से समन्वय की संस्कृति का पल्लवन एवं विकास।
  • हिंदी को भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों एवं संदेशों की संवाहक भाषा के रूप में प्रतिष्ठा।
  • ज्ञान, शांति एवं मैत्री की परिकल्पना को मूर्त रूप देने का गंभीर प्रयास।

बाहरी कड़ियाँ

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