हीनयान
हीनयान अथवा 'स्थविरवाद' रूढिवादी बौद्ध परम्परा है।
परिचय
संपादित करेंप्रथम बौद्ध धर्म की दो ही शाखाएं थीं, हीनयान निम्न वर्ग और महायान उच्च वर्ग,हीनयान महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को ज्यों का त्यों ही अपनाते थे। हीनयान एक व्यक्त वादी धर्म था इसका शाब्दिक अर्थ है निम्न मार्ग। यह मार्ग केवल भिुक्षुओं के ही संभव था। हीनयान संप्रदाय के लोग परिवर्तन अथवा सुधार के विरोधी थे। यह बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों का ज्यों त्यों बनाए रखना चाहते थे। हीनयान संप्रदाय के सभी ग्रंथ पाली भाषा मे लिखे गए हैं। हीनयान बुद्धजी की पूजा भगवान के रूप मे न करके बुद्धजी को केवल महापुरुष मानते थे। हीनयान की साधना अत्यंत कठोर थी तथा वे भिक्षुु जीवन के हिमायती थे। हीनयान संप्रदाय श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों मे फैला हुआ है। बाद मे यह संप्रदाय दो भागों मे विभाजित हो गया- वैभाष्क एवं सौतांत्रिक! वैभाषिक मत की उत्पत्ति कश्मीर मे हुई थी तथा सौतांत्रिक तंत्र मंत्र से संबंधित था। सौतांत्रिक संप्रदाय का सिद्धांत मंजूश्रीमूलकल्प एवं गुहा सामाज नामक ग्रंथ मे मिलता है।
हीनयान साहित्य के तीन भाग है।
संपादित करेंत्रिपिटक, मिलिन्दप्रश्न, वंशसाहित्य
त्रिपिटक के तीन भाग है 1. सुतपिटक 2. विनयपीटक 3. अभिधम्यपीटक
सुतपिटक पांच निकायों में विभाजित है
- दीघनिकाय 2. मजझिमनिकाय 3. संयुक्तनिकाय 4. अंगुत्तरनिकाय 5. खुद्दकनिकाय
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- हीनयान और महायान (वेबदुनिया)
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