हुक का नियम
ब्रिटिश भौतिकशास्त्री रॉबर्ट हुक ने 1676 में यांत्रिक युक्तियों को किसी बल द्वारा विकृत करने के बारे में एक सामान्य बात कही जो लम्बाई में परिवर्तन (विकृति) और लगाये गये बल के सम्बन्ध में है। इसके अनुसार,
- किसी (प्रत्यास्थ) वस्तु की लम्बाई में परिवर्तन, उस पर आरोपित बल के समानुपाती होता है।
इसका नियम का आधुनिक रूप इस प्रकार है:
- प्रतिबल (stress), विकृति (strain) के समानुपाती होता है।
यदि किसी प्रत्यास्थ पदार्थ की L लम्बाई एवं A अनुप्रस्थ क्षेत्रफल वाली छड़ पर F बल लगाने पर उसकी लम्बाई में की वृद्धि होती है तो इकाई लम्बाई में वृद्धि /L को विकृति (strain) तथा प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले बल F/A को प्रतिबल (stress) कहते हैं।
विकृति को ε से तथा प्रतिबल को σ से प्रदर्शित किया जाता है।
अत: हुक के नियमानुसार,
अथवा,
जहाँ E को पदार्थ की यंग प्रत्यास्थता गुणांक (Young's Modulus of Elasticity) कहते हैं। हुक का नियम एक सामान्य प्रेक्षण ही था किन्तु यांत्रिक प्रौद्योगिकी और सिविल प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में इसका अत्यधिक उपयोग होता है।
इन्हें भी देखें
संपादित करें- प्रत्यास्थता
- यंग प्रत्यास्थता गुणांक
- प्रत्यास्थ सीमा
- प्रत्यास्थ स्थितिज उर्जा
- ठोस यांत्रिकी
- कमानी (स्प्रिंग)
- कमानीदार तुला (स्प्रिंग बैलेन्स)