‍कारख़ाना अधिनियम १९४८

(‍फैक्टरी अधिनियम, 1948 से अनुप्रेषित)

फैक्‍टरी अधिनियम, 1948 मुख्‍य विधान है जिसका अधिनियम फैक्‍टरियों में कार्य परिस्थितियों को विनियमित करने के लिए किया गया है।[1]

अधिनियम के अनुसार फैक्‍टरी का अर्थ है कोई भी परिसर उसका अहाता सहित :- 

(i) जहां दस या अधिक कामगार कार्य कर रहे हैं या पहले बारह माह के किसी भी दिन से कार्य कर रहे थे और जिसके किसी भी भाग में विद्युत की सहायता से विनिर्माण का कार्य किया जा रहा है या साधारणत: किया जाता है; अथवा (ii) जहां बीस या अधिक कामगार कार्य कर रहे हैं या पहले बारह माहों के किसी भी दिन कार्य कर रहे थे और उसके किसी भाग में विद्युत की सहायता के बगैर विनिर्माण की प्रक्रिया की जा रही है या साधारण रूप से ऐसी प्रक्रिया की जाती है परन्‍तु इसमें खान शामिल नहीं है यह खान अधिनियम‍, 1952 के संचालन के अंतर्गत आता है; या चल यूनिट जो केन्‍द्र के सशस्‍त्र बलों, रेलवे द्वारा संचालित शेड या होटल रेस्‍तरां या खाने की जगह।

अधिनियम श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा इसके फैक्‍टरी परामर्श सेवा एवं श्रम संस्‍थान महानिदेशालय (डी जी एफ ए एस एल आई) के जरिए प्रशासित होता है और राज्‍य सरकारों के द्वारा अपने फैक्‍टरी निरीक्षणालय के माध्‍यम से प्रशासित होता है। डी जी एफ ए एस एल आई फैक्‍टरियों और गोदी में व्‍यावसायिक सुरक्षा एवं स्‍वास्‍थ्‍य राष्‍ट्रीय नीतियां तैयार करने में मंत्रालय के लिए तकनीकी कार्य करता है।

सन्दर्भ सामग्री

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  1. "मोदी सरकार का एजेण्डा नम्बर 1– रहे-सहे श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाना!". २ अगस्त २०१४. मूल से 20 जनवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २० जनवरी २०१५.

बाहरी कड़ियाँ

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https://web.archive.org/web/20090728051659/http://indiacode.nic.in/rspaging.asp?tfnm=194863