100 दिन
100 दिन (अंग्रेज़ी: 100 Days) हिन्दी भाषा की 1991 में बनी फ़िल्म है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में माधुरी दीक्षित, जैकी श्रॉफ और जावेद जाफ़री हैं। फ़िल्म एक रहस्य रोमांचक है जिसकी पटकथा अतिरिक्त संवेदी बोध वाली महिला के इर्दगिर्द घूमती है। यह ऐसी फ़िल्म है जिसमें रहस्य जैसी कोई चीज नहीं थी, लेकिन फ़िर भी उसमें एक ऐसा सस्पेंस था जिसने क्लाइमेक्स पर दर्शकों को हैरान कर दिया था। फिल्म सुपरहिट थी और दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया था।
100 दिन | |
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डीवीडी कवर | |
निर्देशक | पार्थो घोष |
लेखक |
भूषण बनमाली (संवाद) |
पटकथा | देवज्योति रॉय |
निर्माता | जय मेहता |
अभिनेता |
जैकी श्रॉफ, माधुरी दीक्षित, जावेद जाफ़री, लक्ष्मीकांत बेर्डे, मुनमुन सेन |
छायाकार | अरविंद लाड |
संपादक | ए॰आर॰ राजेंद्रन |
संगीतकार | राम लक्ष्मण |
वितरक | जयविजय इंटरप्राइजेज |
प्रदर्शन तिथियाँ |
31 मई, 1991 |
लम्बाई |
161 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
पटकथा
संपादित करेंफ़िल्म की कहानी एक युवती, देवी (माधुरी दीक्षित) से आरम्भ होती है जो कुछ ऐसे आकस्मिक दृश्य देखती है जो कुछ ही पल पश्चात् घटित होने वाले हैं।[1] फिल्म की शुरुआत उस दृश्य से होती है जिसमें देवी टेनिस खेलते हुए अचानक एक आकस्मिक दृश्य देखती है और इसमें वह अपनी बड़ी बहन रमा (मुनमुन सेन) की हत्या होते हुए देखती है। उसकी कॉलेज की दोस्त सुधा (सबीहा) और सुनील (जावेद जाफ़री) उसी की दृष्टि से कुछ लाभ के लिए उसकी सहायता करने की कोशिश करते हैं।
देवी को तब राहत मिली जब उसने अपनी बहन से बात की और पता चला की वो सकुशल है। यद्दपि उसके तुरंत बाद देवी की बहन की हत्या उसी तरह होती है जैसे देवी ने देखी थी। हत्यारे ने रमा के शव को हवेली की दीवारों में छुपा दिया। रमा को लापता घोषित कर दिया गया। देवी को पूर्ण विश्वास हो गया था कि उसकी बहन की हत्या हो चुकी है। पाँच वर्ष बाद, देवी अपने चाचा (अजीत वाच्छानी) के यहाँ रहने लगती है जहाँ वह करोड़पति व्यापारी राम कुमार (जैकी श्रॉफ) से मिलती है और उसके साथ प्रणय सूत्र में बँध जाती है। सुनील जो देवी से अप्रकट रूप में प्यार करता था बहुत निराश हुआ। देवी और राम का विवाह हो गया और राम की पारिवारिक हवेली में प्रवेश करते हैं, जिसे एक कानूनी लड़ाई के बाद फिर से अर्जित किया था। यह बहुत कम लोग जानते थे कि रमा को यहां दफन किया गया था। जब देवी ने आकस्मिक दृश्य देखना पुनः आरम्भ किया, रमा का कंकाल वाली दीवार ढह जाती है।
देवी देखती है कि हवेली की एक दीवार ढह गई है। देवी वहाँ दीवार के नीचे कंकाल को यहाँ स्व निकाल देती है। देवी यह जानती है कि यह कंकाल किसका है: यह रमा है, चूँकि उसके पास भी एक गले का हार वैसा ही था जैसा देवी के पास था। इंस्पेक्टर (शिवाजी सतम) तुरन्त यह बताता है कि जब रमा लापता हुई तब हवेली बन्द थी, अतः कोई भी उसके शव को यहाँ छुपा सकता है और कोई भी सच्चाई को नहीं जानता। तथापि वह संदेह करता है कि यह युवती रमा ही है क्या : ऐसे अनेक हार उपलब्द्ध हैं।
इस समय देवी एक और आकस्मिक दृश्य देखती है जिसमें वह एक अन्य महिला की हत्या होते हुए देखती है। यहाँ वह दो बिन्दु विवरण के साथ देखती है: एक पत्रिका जिसके आवरण पृष्ठ पर एक घोड़े का चित्र है और एक विडियो कैसेट जिसका नाम 100 दिन है। सुनील और देवी पत्रिका के कार्यालय जाते हैं। सम्पादक ने उन्हें बहुत ही विनम्रता के साथ बताया कि अगले छः माह तक आवरण पृष्ठ पर घुड़सवारी से सम्बंधित कोई चित्र नहीं लगाया जाएगा। कैसेट वाला सुराग भी निरर्थक साबित हुआ : क्योंकि बोम्बे के किसी भी विडियो की दुकान पर ऐसा शीर्षक का सामान नहीं रखता। देवी रमा के जीवन के बारे में छानबीन करने में जूट जाती है। रमा एक शोध छात्रा थी; वह भारत में प्राचीन मूर्तियों और मंदिरों पर अपना शोध पत्र (थिसिस) तैयार कर रही थी। देवी की एक त्वरित जाँच से पता चलता है कि रमा द्वारा सूचीबद्ध कई कलाकृतियाँ या तो रहस्यमय ढंग से गायब हो गयी, चोरी हो गयी या नकली वस्तुओं द्वारा प्रतिस्थापित कर दी गई। उसने यह भी पता लगा लिया कि दो जगमोहन और पार्वती नामक व्यक्ति संग्रहालय में काम करते हैं संदेह के कारण नौकरी से निकाले जा चुके हैं। पार्वती, देवी के इस दृश्य में नये शिकार के रूप में उभरी।
जगमोहन समाज का एक नामी आदमी है जबकि पार्वती रमा के कातिल को जानती है। पार्वती ने कातिल का विडियो टेप कर लिया था। उसने हत्यारे को भेद खोलने की धमकी देने लगती है लेकिन हत्यारे ने उसे मारने की कोशिश करता है। वह एक वीडियो संग्रहालय में जाकर छुप जाती है जहाँ वह उस टेप विडियो को छुपा देती है और याद रखने के लिए कैसेट पर एक पर्चा चिपका देती है जिस पर 100 दिन लिखा है और वहाँ से भाग निकलने की कोशिश करती है। लेकिन जगमोहन उसे मारने में सफल हो जाता है जैसा देवी देखती है। बाद में आखिरी क्षणों में हुए घटनाक्रम के कारण, पत्रिका अपने आवरण पृष्ठ पर घोड़े के साथ प्रकाशित हो जाती है। देवी को शीघ्र ही पता चलता है कि पार्वती की हत्या हो गयी है। वह वीडियो संग्रहालय में जाती है और टेप को प्राप्त करती है। जगमोहन उसे भी मारने की कोशिश करता है परन्तु उसका भाग्य प्रबल होता है और वह बच जाती है। वह पुनः हवेली आती है और वहाँ एक अपना ही दृश्य देखती है जिसमें वह घायल अवस्था में है और हवेली में टुटा हुआ दर्पण देखती है। वह सम्पूर्ण घटनाक्रम के बारे में राम को बताती है और उसके साथ ही कैसेट देखने लग जाती है। राम को कैसेट की अंतर्वस्तु के बारे में कोई अनुमान नहीं था।
मगर, जैसा कैसेट पर देखा गया, देवी को एक और झटका लगा : वह देखती है कि रमा राम का सामना कर रही है। कैसेट में पाये गए साक्ष्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि राम ने ही रमा की हत्या की। देवी उसे बताती है कि वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली है। राम स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश करता है। राम उसे बताता है कि उसके सभी सम्बंधी इन सब वर्षों में धन के लिए कैसे लड़े और उसे अकेला कर दिया। शीघ्र ही उसने धन कमाने का गैरकानूनी तरीका अपनाया। वह जगमोहन और पार्वती का भागीदार बना। उसके बाद उन तीनों ने कलाकृतियों की तस्करी आरम्भ कर दी। रमा को इस पर संदेह हो गया था और उसने उन्हें बेनकाब करने का फैसला किया। उस रात राम, रमा से बात करने गया। लेकिन जगमोहन जो अपना आपा खो दिया था और हत्या कर दी। पार्वती गुप्त रूप से घटना को टेप कर रही थी, लेकिन उसके कैमरे के कोण की वजह से, इसमें यह इस तरह से दिखाई देता है जैसे राम ने ही रमा का खून किया। राम अपने आप को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने को तैयार हो जाता है और उन्हें फोन करता है। वह अपना अपराध कबूल करता है और उन्हें अपने आप को गिरफ्तारी करने को कहता है।
जैसे ही वह अपनी बात पूरी करता है, जगमोहन उसके सिर पर शंख से हमला करता है। राम बेहोश हो जाता है, तब देवी जगमोहन का सामना करती है। इस विषम लड़ाई में पराजित हो जाती है और वह भी बेहोश हो जाती है। जगमोहन उसी दीवार में उन्हें भी जिन्दा चुनने लगता है जहाँ उसने रमा को चुना था। वह लगभग भागने ही वाला था कि उसने देखा कि सुनील वहाँ अन्दर आ रहा है। जगमोहन छुपता है जबकि सुनील आश्चर्यचकित होता है क्योंकि हवेली खुली पड़ी थी और अन्दर कोई नहीं था। उसी समय देवी की हाथ घड़ी खनखनाने (मधुर आवाज में बजने लगती है) लगती है। सुनील को आश्चर्य हुआ क्योंकि यह आवाज दीवार से आ रही थी। उसने दीवार को तोड़ना आरम्भ कर दिया, जिससे वह उन्हें बचा सके। जगमोहन अचानक उस पर हमला कर देता है। तथापि सुनील शत्रु के साथ बिना किसी लाभ के अच्छे से लड़ाई करता है। इसी समय राम में फिर से चेतना आ जाती है और सुनील की सहायता से जगमोहन पर भारी पड़ता है।
इस दृश्य के समय पुलिस आ जाती है। सुनील को आश्चर्य होता है जब राम को भी गिरफ्तार किया जाता है। देवी क्लांतिपूर्वक देखती है पुलिस वैन दूर जा रही है।
पात्र
संपादित करें- जैकी श्रॉफ - राम कुमार
- माधुरी दीक्षित - देवी
- जावेद जाफरी - सुनील
- सबीहा - सुधा माथुर
- लक्ष्मीकांत बेर्डे - बलम
- मुनमुन सेन - रमा
- जय काल्गुटकार - जगमोहन
- नीलम मेहरा - पार्वती
- अजीत वाच्छानी - देवी के चाचा
- शशि किरन - प्रिया का सम्पादक
- शिवाजी सतम - पुलिस इन्सपेक्टर
- महावीर शाह - मि॰ माथुर
- राजा दुग्गल - महदेव
- रमाकान्त बर्मन
शैलियाँ
संपादित करें- डरावनी
- फिल्म डरावनी है क्यों कि इसमें इन्सानों की हत्या जैसे दृश्य फिलमाये गये हैं। कंकाल का मिलना। देवी को दिखने वाले डरावणे दृश्य।
- रोमांस
- इसमें देवी और राम का प्रेम विवाह दिखाया गया है को रोमांस जिससे रोमांस के दृश्य भी है।
- रोमांचक
- इसमें कुछ हास्य दृश्य भी हैं जैसे देवी से मिलने से पहले राम एक शादी में जाता है वहाँ उससे पुछा जाता है कि वह किसका अतिथि है? लड़की वालों का अथवा लड़के वालो का। वहाँ जब वह अपना उपहार का डिब्बा यह कहते हुए खोलता है कि देखो हम कितने महंगे उपहार लाते हैं और उसमें पुराने टुटे हुए जुते निकलते हैं। ऐसे और भी अनेक दृश्य हैं।
संगीत
संपादित करें# | शीर्षक | गायक | बोल |
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1 | "सुन बलिये" | एस॰ पी॰ बालासुब्रमण्यम, लता मंगेशकर | दिलीप ताहिर |
2 | "गबर सिंह यह क्या" | अमित कुमार, अलका याज्ञनिक | रविन्दर रावल |
3 | "ले ले दिल दे दे दिल" | अमित कुमार, लता मंगेशकर | रविन्दर रावल |
4 | "प्यार तेरा प्यार" | लता मंगेशकर | देव कोहली |
5 | "ताना देरे ना ताना ना दे" | एस॰ पी॰ बालासुब्रमण्यम, लता मंगेशकर | रविन्दर रावल |
6 | "सुन सुन सुन दिलरुबा" | एस॰ पी॰ बालासुब्रमण्यम, लता मंगेशकर | देव कोहली |