काफल (वैज्ञानिक नाम: मिरिका एस्कुलेंटा myrica esculata), उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यत: हिमालय के तलहटी क्षेत्र मैं पाया जाने वाला एक वृक्ष या विशाल झाड़ी है। ग्रीष्मकाल में इस पर लगने वाले फल पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। इसकी छाल का प्रयोग चर्मशोधन (टैंनिंग) के लिए किया जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाती है एवं हृदय रोग, मधुमय रोग उच्च एंव निम्न रक्त चाप नियान्त्रित होता है।[उद्धरण चाहिए]

काफल

काफल फल के आयुर्वेदिक उपयोग संपादित करें

वैसे तो ग्रीष्म ऋतू में यह फल हमारें दैनिक जीवन में बहुमूल्य कार्य तो करता ही  है।  लेकिन एक स्वादिष्ट फल होने के साथ साथ इसका उपयोग आयुर्वेद में बहुत से उत्पाद में दवाई बनाने में भी किया जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर यह फल चटनी के रूप में भी उपयोग किया जाता है।  प्यारे से दिखने वाले इसके फल का उपयोग ग्रीष्म ऋतू में शरीर को ठंडक पहुंचाने का कार्य करता है।

इस फल में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होने के कारण, काफल अल्सर, दस्त, एनीमिया, गले में खराश, बुखार आदि जैसी कई बीमारियों के इलाज का एक प्राकृतिक तरीका है। यहां तक कि पेड़ की छाल के भी उपयोग दिखाए गए हैं। छाल का उपयोग कई एलर्जी के इलाज के लिए किया जाता है और यह एक उत्कृष्ट एंटी-एलर्जी दवा हो सकती है। एक अच्छा एंटीहिस्टामाइन होने के अलावा, काफल के पेड़ की छाल को दांतों के बीच रखकर दो से तीन मिनट तक चबाने से दांतों के दर्द में मदद मिल सकती है। काफल के मिश्रण से गरारे करने से गले की खराश या घेंघा भी ठीक हो सकता है।

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