जनजाति अथवा आदिवासी ऐसा मानव समूह है जो विकास के सोपान से सबसे निचले स्तर पर है । शब्दकोश के अनुसार जनजाति एक सामाजिक समूह है जो प्रायः निश्चित भूभाग पर निवास करती है ।जिसकी अपनी भाषा , सभ्यता तथा सामाजिक संगठन होता है । मध्य प्रदेश में कुल 47 जनजातियों पाई जाती है । राज्य में सर्वाधिक जनजाति संख्या अलीराजपुर जिले में तथा सबसे कम भिंड जिले में पाई जाती है ।

विश्व में अधिकांश जनजातियाँ अफ्रीका में पाई जाती हैं। उसके बाद भारत में भारत के मध्य प्रदेश में। 
अनुसूचित जनजातियाँ ST - वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश की जनसंख्या 1, 53, 16, 784 है। यह प्रदेश की कुल जनसंख्या का 21.09 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश में कुल 43 अनुसूचित जनजातियों समूह है। 
Total Population of MP  -7,26,26,809
Total Population of ST in MP- 1,53,16,784
Percentage of ST population in MP- 21.1%
मध्यप्रदेश की 3 जनजातियों में विशेष पिछड़ी जनजाति ( बैगा,  भारिया और सहरिया) है। 
मध्य प्रदेश की 3 सबसे बड़ी जनजातियां क्र. भील,  गोंड, और कोल है जबकि मध्य प्रदेश की सबसे छोटी जनजाति कमार है। 
जनसंख्या के आधार पर भारत की सबसे बड़ी जनजातियां भील, गोंड, तथा संथाल है। 


गोंड जनजाति -

गोंड जनजाति विश्व के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक है । गोंड यकीनन एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी समूह है, जिसकी आबादी तीन मिलियन के पार है। यह भारत की सबसे बड़ी जनजाति है इसका संबंध प्राक - द्रविड़ प्रजाति से है । कुल भारत की जनसंख्या में 42% गोंडवाना जनजाति है।

गोंड मध्य प्रदेश की एक प्रमुख जनजाति है तथा मध्य प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है । ये ज़्यादातर मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश , गुजरात , झारखंड , कर्नाटक , तेलंगाना , उत्तर प्रदेश , पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पाए जाते हैं ।Madhya Pradesh मे लगभग 4 crore गोंड हैं। यह जनजाति मध्य प्रदेश के सभी जिलों में फैली हुई है लेकिन नर्मदा के दोनों और विंध्य और सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में इसका अधिक घनत्व है राज्य के बैतूल , छिंदवाड़ा , होशंगाबाद बालाघाट , मंडला , शहडोल जिलों में गोंड जनजाति पाई जाती है । इनकी त्वचा का रंग काला , बाल काले , होंठ मोटे , नाक बड़ी व फैली हुई होती है ।

ये अलिखित भाषा गोंडी बोली बोलते हैं जिसका संबंध द्रविड़ भाषा से है ।  


गोंड जनजाति की उत्पत्ति- 

प्रसिद्ध नृतत्वशास्त्री हिस्लोप के अनुसार गोंड शब्द की उत्पत्ति तेलुगु भाषा के कोड़ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है पर्वत अर्थात यह जनजाति पहले पर्वतों का निवास करती थी इसलिए गोंड कहलाए ।कुछ लोक कथाओं में गोंडो की उत्पत्ति बूढ़ादेव अर्थात महादेव से हुई बताई जाती है ।



गोंड जनजाति के लोगों की शारीरिक बनावट -

इस जनजाति में स्त्रियों का कद पुरुषों की अपेक्षाकृत छोटा होता है । इन की त्वचा का रंग काला , केस काले तथा खड़े होने वाले नासिका भारी व बड़ी , गोलाकार सिर , छोटे ओंठ , सुगठित शरीर तथा मुंह चौड़ा होता है । इनके चेहरे पर बाल कम होते हैं आते हैं पुरुष दाढ़ी मूछ नहीं रखते ।स्त्री और पुरुष दोनों शरीर सुगठित होता है यह अत्यधिक परिश्रमी होते हैं ।

सामाजिक व्यवस्था- 

गोंड समाज पितृवंशीय, पितृसत्तामत्क एवं पितृस्थानीय होता है परिवार का वृद्ध पुरुष मुखिया होता है।

 विवाह संबंध-

विवाह के लिये लड़के द्वारा लड़की को भगाए जाने की प्रथा है। गोड़ जनजाति में भगेली-विवाह प्रथा में विवाह लड़के और लड़की रजामंदी से होता है। इस प्रथा में कन्या अपने प्रेमी के घर भाग कर आ जाती हैं और एक निश्चित सामाजिक रूझान के तहत यह विवाह संपन्न होता है। जनजाति में प्रचलित अपहरण विवाह को गोंड़ी जनजाति में ’पायसोतुर’ कहते हैं। गोंड़ जनजाति में विवाह के अवसर पर अब लड़की वाले बारात लेकर लड़के वाले के घर आते है तब ऐसे विवाह को पठौनी-विवाह कहते है। चड़ विवाह- चड़ विवाह प्रथा में दुलहा बारात लेकर दुल्हन के घर जाता है। मध्य प्रदेश की गोंड जनजाति में भाई का लड़का और बहन की लड़की अथवा भाई की लड़की और बहन का लड़का में विवाह का प्रचलन है जिसे यह लोग दूध लौटावा कहते हैं । • गोंड जनजाति में वर द्वारा वधू मूल्य नहीं चुकाने की स्थिति में वह भावी ससुर के यहां सेवा करता है , जिससे खुश होकर उसे कन्या दे दी जाती है । इस सेवा विवाह कहा जाता है तथा वह व्यक्ति लामानाईं कहलाता है । विवाह - दूध लौटाआना, चढ़ विवाह, लमसेना विवाह, पठौनी व विधवा विवाह भी प्रचलित है। गोंड सामान्यता एक विवाही होते हैं किंतु बहु विवाह को भी मान्यता प्राप्त है

( इन के देवता - दूल्हा देव, बूढ़ादेव आदि) 
त्योहार व नृत्य-
बकपंथी, जबरा, मडई, बिंदकी, नवा खानी आदि प्रमुख त्योहार।  ( नृत्य - करमा, सेला, भडोनी, बिरहा, कहरवा सुआ प्रमुख नृत्य ) करमा- यह विश्व का प्रथम लोक नृत्य है, जिसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया।सैला नृत्य, करमा नृत्य, दीवानी नृत्य, सजनी नृत्य, विरसा नृत्य, सुआ नृत्य, बड़ौनी नृत्य ,कहरवा नृत्य प्रमुख हैं 



 संस्कृती व धार्मिक मान्यताएं-

गोंडों का मानना है कि पृथ्वी , जल और वायु देवताओं द्वारा शासित हैं । अधिकांश गोंड हिंदू धर्म को मानते हैं और बारादेव ( जिनके अन्य नाम भगवान , श्री शंभु महादेव और पर्सा पेन हैं ) की पूजा करते हैं । - भारत के संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है । गोंड जनजाति के धार्मिक विश्वास में टोटम का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्षेत्र अपने विशेष टोटम की पूजा करता है इसके अलावा प्राचीन देवी-देवताओं और आत्मा की पूजा का भी प्रचलन इस प्रकार की है आत्मावाद को मानने वाली जनजाति बूढ़ादेव इन के प्रमुख देवता हैं इसके अतिरिक्त दूल्हादेव,सूरजदेव नारायणदेव आदि भी हैं इनमें जादू टोना एवं टोटके का भी प्रचलन देखा गया है ।

बड़ादेव (सृजन करने वाली शक्ति), दुल्हा देव (शादी विवाह सूत्र में बाँधने वाला देव), पंडा पंडिन (रोग दोष का निवारण करने वाला देव), बूड़ादेव (बूढाल पेन) कुलदेवता या पुरखा, जिसमे उनके माता पिता को भी सम्मिलित किया जाता है, नारायण देव (सूर्य) और भीवासू गोंडों के मुख्य देवता हैं।

देवताओं को बकरे और मुर्गे आदि की बलि देकर प्रसन्न किया जाता है। गोंडों का भूत प्रेत और जादू टोने में अत्यधिक विश्वास है और इनके जीवन में जादू टोने की भरमार है। किंतु बाहरी जगत्‌ के सम्पर्क के प्रभावस्वरूप इधर इसमें कुछ कमी हुई है। अनेक गोंड लंबे समय से हिन्दू धर्म तथा संस्कृति के प्रभाव में हैं और कितनी ही जातियों तथा कबीलों ने बहुत से हिन्दू विश्वासों, देवी देवताओं, रीति रिवाजों तथा वेशभूषा को अपना लिया है। पुरानी प्रथा के अनुसार मृतकों को दफनाया जाता है, किंतु बड़े और धनी लोगों के शव को जलाया जाने लगा है। स्त्रियाँ तथा बच्चे दफनाए जाते हैं।


 मनोरंजन एवं व्यवसाय-

वर्तमान में गोंड स्थाई कृषि करने लगे इसके अतिरिक्त लघु वनोपज संग्रह, पशुपालन ,मुर्गी पालन मजदूरी भी इनके आजीविका के साधन है । गोंड जनजाति का प्रधान व्यवसाय कृषि है किंतु ये कृषि के साथ - साथ पशु पालन भी करते हैं । इनका मुख्य भोजन बाजरा है जिसे ये लोग दो प्रकार ( कोदो और कुटकी ) से ग्रहण करते हैं । इनकी कृषि प्रथा डिप्पा कहलाती है। गोंड खेतिहर हैं और परंपरा से दहिया खेती करते हैं जो जंगल को जलाकर उसकी राख में की जाती है और जब एक स्थान की उर्वरता तथा जंगल समाप्त हो जाता है तब वहाँ से हटकर दूसरे स्थान को चुन लेते हैं। किंतु सरकारी निषेध के कारण यह प्रथा बहुत कम हो गई है। उनके पारंपरिक नृत्य को मडई कहा जाता है, जो एक उत्सव का नृत्य है, जो खुशी के अवसरों पर अभ्यास और प्रदर्शन किया जाता है। पौराणिक घटनाओं को व्यक्त करने के लिए डंडारी नामक एक और नृत्य कला का अभ्यास किया जाता है। उनके प्रमुख त्योहार कृषि से निकटता से जुड़े हैं। गोंडों के आम तौर पर ज्ञात त्योहार पोला, और नाग पंचमी, जब सांपों की पूजा की जाती है, का पशु उत्सव है।


निवास-

गोंड अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में निवास करते आए हैं पहाड़ी क्षेत्रों और घने जंगलों में इनके निवासी पाए जाते हैं मैदानी क्षेत्रों में इनके गांव कृषि योग्य भूमि जल प्राप्ति और सुरक्षा को ध्यान मे रख कर बनाए जाते हैं उनके घर घास फूस बा मिट्टी के बने होते हैं ! निवास के आधार पर गोंड जनजाति के 2 वर्ग हैं- राजगोंड- यह लोग भूस्वामी होते हैं धुर गोंड- यह गोंड जनजाति का साधारण वर्ग है


रहन सहन- 

गोंड ज्यादातर कमर के नीचे वस्त्र पहनते हैं अब वे आधुनिक वस्त्रों का भी प्रयोग करने लगे हैं स्त्रियों में आभूषण एवं गोदना का प्रचलन अत्यधिक प्रचलित है पीतल मोती और मूंगा आदि के आभूषण अधिक प्रचलित होते हैं गोंड शाकाहारी व मांसाहारी दोनों होते हैं उनके भोजन में सामान्यता मोटे अनाज एवं कंदमूल शामिल होते हैं मोटे अनाज में बन्ना पेय पदार्थ अत्यधिक प्रिय होता है गोंड में अतिथि सत्कार का विशेष महत्व होता है प्रत्येक मकान में अतिथि के लिए साफ-सुथरा और छोटा कमरा बनाया जाता है !


गोंड जनजाति के संबंध में अन्य तथ्य -

गोंड चार जातियों में विभाजित हैं : राज गोंड , माड़िया गोंड , धुर्वे गोंड , खतुलवार गोंड । मध्य प्रदेश गोंड जनजाति व्यवसाय के आधार पर कई उप जातियों में विभाजित है जैसे लोहे का काम करने वाला वर्ग अगरिया मंदिर में पूजा पाठ करने वाले प्रधान तथा पंडिताई या तांत्रिक क्रिया करने वाले ओझा कहे जाते हैं । परधान , अगरिया , ओझा , नगरची , सोलहास गोंड जनजाति की उपजाति है । गोंड़ों की कुल 30 शाखाएं है। जिनमें प्रमुख रूप से अमात गोंड़ शामिल है। इसके सर्वाधिक प्रचलित गोत्र नेताम, मरकाम, कोमर्रा, कुंजाम, मंडावी, मांझी, टेकाम इत्यादि है।