अंटार्कटिका

अंटार्कटिका; दुनिया के सात महाद्वीपों में से एक बर्फीला महाद्वीप है।

अंटार्कटिका


अंतरिक्ष से अंटार्कटिका का दृश्य।
लाम्बर्ट अजिमुथाल प्रोजेक्शन पर आधारित मानचित्र।
दक्षिणी ध्रुव मध्य में है।

क्षेत्र (कुल)


(बर्फ रहित)
(बर्फ सहित)

14,000,000 किमी2 (5,000,000 वर्ग मील)
280,000 किमी2 (100,000 वर्ग मील)
13,720,000 किमी2 (5,300,000 वर्ग मील)
जनसंख्या
(स्थाई)
(अस्थाई)
7वां
शून्य
≈1,000
निर्भर
आधिकारिक क्षेत्रीय दावें अंटार्कटिक संधि व्यवस्था
अनाधिकृत क्षेत्रीय दावें
दावों पर अधिकार के लिए सुरक्षित
टाइम जोन नहीं
UTC-3 (केवल ग्राहम लैंड)
इंटरनेट टाप लेवल डामिन .aq
कालिंग कोड प्रत्येक बेस के पैतृक देश पर निर्भर

अंटार्कटिका (या अन्टार्टिका) पृथ्वी का दक्षिणतम महाद्वीप है, जिसमें दक्षिणी ध्रुव अंतर्निहित है। यह दक्षिणी गोलार्द्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र और लगभग पूरी तरह से अंटार्कटिक वृत के दक्षिण में स्थित है। यह चारों ओर से दक्षिणी महासागर से घिरा हुआ है। अपने 140 लाख वर्ग किलोमीटर (54 लाख वर्ग मील) क्षेत्रफल के साथ यह, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के बाद, पृथ्वी का पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है, अंटार्कटिका का 98% भाग औसतन 1.6 किलोमीटर मोटी बर्फ से आच्छादित है।

अंटार्कटिका


(प्राचीन काल में ही अंटार्कटिका को महा क्रान्ति धाम के नाम से जाना जाता था।। जहां अठावन महान सम्राज्ञियो ने शासन किया था,, जिनका किड्डी धर्म था।। जिनका समाज मातृसत्तात्मक व्यवस्था के अनुसार चलता था।।)


औसत रूप से अंटार्कटिका, विश्व का सबसे ठंडा, शुष्क और तेज हवाओं वाला महाद्वीप है और सभी महाद्वीपों की तुलना में इसका औसत उन्नयन सर्वाधिक है।[1] अंटार्कटिका को एक रेगिस्तान माना जाता है, क्योंकि यहाँ का वार्षिक वर्षण केवल 200 मिमी (8 इंच) है और उसमे भी ज्यादातर तटीय क्षेत्रों में ही होता है।[2] यहाँ का कोई स्थायी निवासी नहीं है लेकिन साल भर लगभग 1,000 से 5,000 लोग विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों जो कि पूरे महाद्वीप पर फैले हैं, पर उपस्थित रहते हैं। यहाँ सिर्फ शीतानुकूलित पौधे और जीव ही जीवित, रह सकते हैं, जिनमें पेंगुइन, सील, निमेटोड, टार्डीग्रेड, पिस्सू, विभिन्न प्रकार के शैवाल और सूक्ष्मजीव के अलावा टुंड्रा वनस्पति भी शामिल हैं

हालांकि पूरे यूरोप में टेरा ऑस्ट्रेलिस (दक्षिणी भूमि) के बारे में विभिन्न मिथक और अटकलें सदियों से प्रचलित थे पर इस भूमि से पूरे विश्व का 1820 में परिचय कराने का श्रेय रूसी अभियान कर्ता मिखाइल पेट्रोविच लाज़ारेव और फैबियन गॉटलिएब वॉन बेलिंगशौसेन को जाता है। यह महाद्वीप अपनी विषम जलवायु परिस्थितियों, संसाधनों की कमी और मुख्य भूमियों से अलगाव के चलते 19 वीं शताब्दी में कमोबेश उपेक्षित रहा। महाद्वीप के लिए अंटार्कटिका नाम का पहले पहल औपचारिक प्रयोग 1890 में स्कॉटिश नक्शानवीस जॉन जॉर्ज बार्थोलोम्यू ने किया था। अंटार्कटिका नाम यूनानी यौगिक शब्द ανταρκτική एंटार्कटिके से आता है जो ανταρκτικός एंटार्कटिकोस का स्त्रीलिंग रूप है और जिसका[3] अर्थ "उत्तर का विपरीत" है।"[4]

1959 में बारह देशों ने अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किए, आज तक छियालीस देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। संधि महाद्वीप पर सैन्य और खनिज खनन गतिविधियों को प्रतिबन्धित करने के साथ वैज्ञानिक अनुसंधान का समर्थन करती है और इस महाद्वीप के पारिस्थितिक क्षेत्र को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है। विभिन्न अनुसंधान उद्देश्यों के साथ वर्तमान में कई देशों के लगभग 4,000 से अधिक वैज्ञानिक विभिन्न प्रयोग कर रहे हैं।[5]

 
महाद्वीप की बर्फीली सतह।

टॉलेमी के समय (1 शताब्दी ईस्वी) से पूरे यूरोप में यह विश्वास फैला था कि दुनिया के विशाल महाद्वीपों एशिया, यूरोप और उत्तरी अफ्रीका की भूमियों के संतुलन के लिए पृथ्वी के दक्षिणतम सिरे पर एक विशाल महाद्वीप अस्तित्व में है, जिसे वो टेरा ऑस्ट्रेलिस कह कर पुकारते थे। टॉलेमी के अनुसार विश्व की सभी ज्ञात भूमियों की सममिति के लिए एक विशाल महाद्वीप का दक्षिण में अस्तित्व अवश्यंभावी था। 16 वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में पृथ्वी के दक्षिण में एक विशाल महाद्वीप को दर्शाने वाले मानचित्र आम थे जैसे तुर्की का पीरी रीस नक्शा। यहां तक कि 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, जब खोजकर्ता यह जान चुके थे कि दक्षिणी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया कथित 'अंटार्कटिका " का भाग नहीं है, फिर भी वो यह मानते थे कि यह दक्षिणी महाद्वीप उनके अनुमानों से कहीं विशाल था।

यूरोपीय नक्शों में इस काल्पनिक भूमि का दर्शाना लगातार तब तक जारी रहा जब तक कि, एचएमएस रिज़ोल्यूशन और एडवेंचर जैसे पोतों के कप्तान जेम्स कुक ने 17 जनवरी 1773, दिसम्बर 1773 और जनवरी 1774 में अंटार्कटिक वृत को पार नहीं किया। कुक को वास्तव में अंटार्कटिक तट से 121 किलोमीटर (75 मील) की दूरी से जमी हुई बर्फ के चलते वापस लौटना पड़ा था। अंटार्कटिका को सबसे पहले देखने वाले तीन पोतों के कर्मीदल थे जिनकी कप्तानी तीन अलग अलग व्यक्ति कर रहे थे। विभिन्न संगठनों जैसे कि के अनुसार नैशनल साइंस फाउंडेशन,[6] नासा,[7] कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो[8] (और अन्य स्रोत),[9][10] के अनुसार 1820 में अंटार्कटिका को सबसे पहले तीन पोतों ने देखा था, जिनकी कप्तानी तीन अलग अलग व्यक्ति कर रहे थे जो थे, फैबियन गॉटलिएब वॉन बेलिंगशौसेन (रूसी शाही नौसेना का एक कप्तान), एडवर्ड ब्रांसफील्ड (ब्रिटिश शाही नौसेना का एक कप्तान) और नैथानियल पामर (स्टोनिंगटन, कनेक्टिकट का एक सील शिकारी)। फैबियन गॉटलिएब वॉन बेलिंगशौसेन ने अंटार्कटिका को 27 जनवरी 1820 को, एडवर्ड ब्रांसफील्ड से तीन दिन बाद और नैथानियल पामर से दस महीने (नवम्बर 1820) पहले देखा था। 27 जनवरी 1820 को वॉन बेलिंगशौसेन और मिखाइल पेट्रोविच लाज़ारेव जो एक दो-पोत अभियान की कप्तानी कर रहे थे, अंटार्कटिका की मुख्य भूमि के अन्दर 32 किलोमीटर तक गये थे और उन्होने वहाँ बर्फीले मैदान देखे थे। प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार अंटार्कटिका की मुख्य भूमि पर पहली बार पश्चिम अंटार्कटिका में अमेरिकी सील शिकारी जॉन डेविस 7 फ़रवरी 1821 में आया था, हालांकि कुछ इतिहासकार इस दावे को सही नहीं मानते।

दिसम्बर 1839 में, संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेना द्वारा संचालित, संयुक्त राज्य अमेरिका अन्वेषण अभियान 1838-42 के एक भाग के तौर पर एक अभियान सिडनी, ऑस्ट्रेलिया से अंटार्कटिक महासागर (जैसा कि इसे उस समय जाना जाता था) के लिए रवाना हुआ था और इसने बलेनी द्वीपसमूह के पश्चिम में ‘अंटार्कटिक महाद्वीप’ की खोज का दावा किया था। अभियान ने अंटार्कटिका के इस भाग को विल्कीज़ भूमि नाम दिया गया जो नाम आज तक प्रयोग में आता है।

1841 में खोजकर्ता जेम्स क्लार्क रॉस उस स्थान से गुजरे जिसे अब रॉस सागर के नाम से जाना जाता है और रॉस द्वीप की खोज की (सागर और द्वीप दोनों को उनके नाम पर नामित किया गया है)। उन्होने बर्फ की एक बड़ी दीवार पार की जिसे रॉस आइस शेल्फ के नाम से जाना जाता है। एरेबेस पर्वत और टेरर पर्वत का नाम उनके अभियान में प्रयुक्त दो पोतों: एचएमएस एरेबेस और टेरर के नाम पर रखा गया है।[11] मर्काटॉर कूपर 26 जनवरी 1853 को पूर्वी अंटार्कटिका पर पहुँचा था।[12]

 
निमरोद अभियान के सदस्य
 
1914 के एक अभियान के दौरान बर्फ में फंसा अर्नेस्ट शैक्लटन का पोत एन्ड्यूरेंस

निमरोद अभियान जिसका नेतृत्व अर्नेस्ट शैक्लटन कर रहे थे, के दौरान 1907 में टी. डब्ल्यू एजवर्थ डेविड के नेतृत्व वाले दल ने एरेबेस पर्वत पर चढ़ने और दक्षिण चुंबकीय ध्रुव तक पहँचने में सफलता प्राप्त की। डगलस मॉसन, जो दक्षिण चुंबकीय ध्रुव से मुश्किल वापसी के समय दल का नेतृत्व कर रहा थे, ने 1931 में अपने संन्यास लेने से पहले कई अभियानो का नेतृत्व किया।[13] शैक्लटन और उसके तीन सहयोगी दिसंबर 1908 से फ़रवरी 1909 के बीच कई अभियानों का हिस्सा रहे और वे रॉस आइस शेल्फ, ट्रांसांटार्कटिक पर्वतमाला (बरास्ता बियर्डमोर हिमनद) को पार करने और वाले दक्षिण ध्रुवीय पठार पर पहुँचने वाले पहले मनुष्य बने। नॉर्वे के खोजी रोआल्ड एमुंडसेन जो फ्राम नामक पोत से एक अभियान का नेतृत्व कर रहे थे, 14 दिसम्बर 1911 को भौगोलिक दक्षिण ध्रुव पर पहँचने वाले पहले व्यक्ति बने। रोआल्ड एमुंडसेन ने इसके लिए व्हेल की खाड़ी और एक्सल हाइबर्ग हिमनद के रास्ते का प्रयोग किया।[14] इसके एक महीने के बाद दुर्भाग्यशाली स्कॉट अभियान भी ध्रुव पर पहुंचने में सफल रहा।

1930 और 1940 के दशक में रिचर्ड एवलिन बायर्ड ने हवाई जहाज से अंटार्कटिक के लिए कई यात्राओं का नेतृत्व किया था। महाद्वीप पर यांत्रिक स्थल परिवहन की शुरुआत का श्रेय भी बायर्ड को ही जाता है, इसके अलावा वो महाद्वीप पर गहन भूवैज्ञानिक और जैविक अनुसंधानों से भी जुड़ा रहा था।[15] 31 अक्टूबर 1956 के दिन रियर एडमिरल जॉर्ज जे डुफेक के नेतृत्व में एक अमेरिकी नौसेना दल ने सफलतापूर्वक एक विमान यहां उतरा था। अंटार्कटिका तक अकेला पहुँचने वाला पहला व्यक्ति न्यूजीलैंड का डेविड हेनरी लुईस था जिसने यहाँ पहुँचने के लिए 10 मीटर लम्बी इस्पात की छोटी नाव आइस बर्ड का प्रयोग किया था।

भारत का अंटार्कटि‍क कार्यक्रम

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अंटार्कटि‍क में पहला भारतीय अभियान दल जनवरी 1982 में उतरा और तब से भारत ध्रुवीय विज्ञान में अग्रिम मोर्चे पर रहा है। दक्षिण गंगोत्री और मैत्री अनुसंधान केन्द्र स्थित भारतीय अनुसंधान केन्द्र में उपलब्ध मूलभूत आधार में वैज्ञानिकों को विभिन्न वि‍षयों यथा वातावरणीय विज्ञान, जैविक विज्ञान और पर्यावरणीय विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी अनुसंधान करने में सक्षम बनाया। इनमे से कई अनुसंधान कार्यक्रमों में अंटार्कटि‍क अनुसंधान संबंधी वैज्ञानिक समिति (एससीएआर) के तत्वावधान में सीधे वैश्विक परिक्षणों में योगदान किया है।

अंटार्कटि‍क वातावरणीय विज्ञान कार्यक्रम में अनेक वैज्ञानिक संगठनों ने भाग लिया। इनमें उल्लेखनीय है भारतीय मौसम विज्ञान, राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, भारतीय भू-चुम्बकत्व संस्था, कोलकाता विश्वविद्यालय, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला और बर्कततुल्ला विश्वविद्यालय आदि। इन वैज्ञानिक संगठनों में विशेष रूप से सार्वभौमिक भौतिकी (उपरी वातावरण और भू-चुम्बकत्व) मध्यवर्ती वातावरणीय अध्‍ययन और निम्न वातावरणीय अध्ययन (मौसम, जलवायु और सीमावर्ती परत)। कुल वैश्विक सौर विकीरण और वितरित सौर विकीरण को समझने के लिए विकीरण संतुलन अध्ययन किये जा रहे हैं। इस उपाय से ऊर्जा हस्तांतरण को समझने में सहायता मिलती है जिसके कारण वैश्विक वातावरणीय इंजन आंकड़े संग्रह का काम जारी रख पाता है।

मैत्री में नियमित रूप से ओजोन के मापन का काम ओजोनसॉन्‍डे के इस्तेमाल से किया जाता है जो अंटार्कटि‍क पर ओजोन -छिद्र तथ्य और वैश्विक जलवायु परिवर्तन में ओजोन की कमी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को गति प्रदान करता है। आयनमंडलीय अध्ययन ने एंटार्कटिक वैज्ञानिक प्रयोगों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाया है। 2008-09 अभियान के दौरान कनाडाई अग्रिम अंकीय आयनोसॉन्‍डे (सीएडीआई) नामक अंकीय आयनोसॉन्‍डे स्थापित किया गया। यह हमें अंतरिक्ष की मौसम संबंधी घटनाओं का ब्यौरा देते हैं। मैत्री में वैश्विक आयनमंडलीय चमक और पूर्ण इलैक्ट्रोन अवयव अनुश्रवण प्रणाली (जीआईएसटीएम) स्थापित की गयी है जो पूर्ण इलैक्ट्रोन अवयव (आईटीसीई) और ध्रुवीय आयनमंडलीय चमक और उसकी अंतरिक्ष संबंधी घटनाओं पर निर्भरता के अभिलक्षणों की उपस्थिति की जानकारी देते हैं। जीआईएसटीएम के आंकड़े बृहत और मैसो स्तर के प्लाजामा ढांचे और उसकी गतिविधि को समझने में हमारी सहायता करते हैं। ध्रुवीय क्षेत्र और उसकी सुकमार पर्यावरणीय प्रणाली विभिन्न वैश्विक व्यवस्थाओं के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस प्रकार की पर्यावरणीय व्यवस्थाएं आंतरिक रूप से स्थिर होती हैं। क्योंकि पर्यावरण में मामूली सा परिवर्तन उन्हें अत्यधिक क्षति पहुंचा सकता है। यह याद है कि ध्रुवीय रचनाओं की विकास दर धीमी है और उसे क्षति से उबरने में अच्छा खासा समय लगता है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अंटार्कटि‍क में जैविक अध्ययन समुद्री हिमानी सूक्ष्‍म रचनाओं, सजीव उपजातियों, ताजे पानी और पृथ्‍वी संबंधी पर्यावरणीय प्रणालियों जैव विविधता और अन्य संबद्ध तथ्यों पर विशेष ध्यान देते हैं।

क्रायो-जैव विज्ञान अध्ययन

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क्रायो जैव विज्ञान प्रयोगशाला का 15 फ़रवरी 2010 को उद्घाटन किया गया था ताकि जैव विज्ञान और रसायन विज्ञान के क्षेत्र के उन अनुसंधानकर्ताओं को एक स्थान पर लाया जा सके। जिनकी निम्न तापमान वाली जैव- वैज्ञानिक प्रणालियों के क्षेत्र में एक सामान रूचि हो। इस प्रयोगशाला में इस समय ध्रुवीय निवासियों के जीवाणुओं का अध्ययन किया जा रहा है। जैव वैज्ञानिक कार्यक्रमों की कुछ उपलब्धियों में शीतल आबादियों से बैक्‍टरि‍या की कुछ नई उपजातियों का पता लगाया गया है। अंटार्कटि‍क में अब तक पता लगाई गयी 240 नई उपजातियों में से 30 भारत से हैं। 2008-11 के दौरान ध्रुवीय क्षेत्रों से बैक्‍टरि‍या की 12 नई प्रजातियों का पता चला है। दो जीन का भी पता लगा है जो निम्न तापमान पर बैक्‍टरि‍या को जीवित रखते हैं। जैव प्रौद्योगिकी उद्योग के लिए कम उपयोगी तापमान पर सक्रिय कई लिपासे और प्रोटीज का भी पता लगाया है।

अंटार्कटि‍क संबंधी पर्यावरणी संरक्षण समिति द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार मैत्री में पर्यावरणीय मापदंडों का अनुश्रवण किया जाता है। भारत ने अपने नये अनुसंधान केन्द्रित लार्जेमन्न पहाड़ियों पर पर्यावरणीय पहलुओं पर आधार रेखा आंकड़ें संग्रह संबंधी अध्ययन भी शुरू कर दिये हैं। इसकी प्रमुख उपलब्धियों में पर्यावरणीय मूल्यांकन संबंधी विस्तृत रिपोर्ट की तैयारी है। यह रिपोर्ट लार्जसन्न पर्वतीय क्षेत्र से पर्यावरणीय मानदंडों पर एकत्र किये गये आधार रेखा आंकड़े और पर्यावरणीय प्रयोगशालाओं में किये गये कार्य पर आधारित है। भारत एंटार्कटिक समझौता व्यवस्था की परिधि में दक्षिण गोदावरी हिमनदी के निकट संरक्षित क्षेत्र स्थापित करने में भी सफल रहा।

 
The blue ice covering Lake Fryxell, in the Transantarctic Mountains, comes from glacial meltwater from the Canada Glacier and other smaller glaciers.

अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे ठंडा स्थान है। पृथ्वी पर सबसे ठंडा प्राकृतिक तापमान कभी २१ जुलाई १९८३ में अंटार्कटिका में रूसी वोस्तोक स्टेशन में -८९.२ डिग्री सेल्सियस (-१२८.६ °F) दर्ज था। अन्टार्कटिका विशाल वीरान बर्फीले रेगिस्तान है। जाड़ो में इसके आतंरिक भागों का कम से कम तापमान −८० °C (−११२ °F) और −९० °C (−१३० °F) के बीच तथा गर्मियों में इनके तटों का अधिकतम तापमान ५ °C (४१ °F) और १५ °C (५९ °F) के बीच होता है। बर्फीली सतह पर गिरने वाली पराबैंगनी प्रकाश की किरणें साधारणतया पूरी तरह से परावर्तित हो जाती है इस कारण अन्टार्कटिका में सनबर्न अक्सर एक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में है।

अंटार्कटिका का पूर्वी भाग, पश्चिमी भाग की अपेक्षा अधिक उंचाई में स्थित होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक ठंडा है। इस दूरस्थ महाद्वीप में मौसम शायद ही कभी प्रवेश करता है इसीलिए इसका केंद्रीय भाग हमेशा ठंडा और शुष्क रहता है। महाद्वीप के मध्य भाग में वर्षा की कमी के बावजूद वहाँ बर्फ बढ़ी हुई समय अवधि के लिए रहती है। महाद्वीप के तटीय भागों में भारी हिमपात सामान्य बात है जहां ४८ घंटे में १.२२ मीटर हिमपात दर्ज किया गया है। यह दक्षिण गोलार्ध में स्थिति बनाये हुए हैं।

 
Amundsen-Scott marsstation ray h edit
  1. "National Geophysical Data Center". National Satellite, Data, and Information Service. Archived from the original on 13 जून 2006. Retrieved 9 जून 2006.
  2. C. Alan Joyce (2007-01-18). "The World at a Glance: Surprising Facts". The World Almanac. Archived from the original on 4 मार्च 2009. Retrieved 2009-02-07.
  3. Antarktikos Archived 2008-04-30 at the वेबैक मशीन, Henry George Liddell, Robert Scott, A Greek-English Lexicon, at Perseus
  4. Hince, Bernadette (2000). The Antarctic Dictionary. CSIRO Publishing. p. 6. ISBN 9780957747111. Retrieved 2009-04-26.
  5. "Antarctica - The World Factbook". United States Central Intelligence Agency. 2007-03-08. Archived from the original on 12 अप्रैल 2020. Retrieved 2007-03-14.
  6. U.S. Antarctic Program External Panel of the National Science Foundation. "Antarctica—Past and Present" (PDF). Archived (PDF) from the original on 17 फ़रवरी 2006. Retrieved 6 फ़रवरी 2006.
  7. Guy G. Guthridge. "Nathaniel Brown Palmer, 1799-1877". NASA, U.S. Government. Archived from the original on 2 फ़रवरी 2006. Retrieved 2006-02-06.
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  9. "An Antarctic Time Line: 1519–1959". south-pole.com. Archived from the original on 10 फ़रवरी 2006. Retrieved 2006-02-12.
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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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