गणित में अंतःसर्पी श्रेणी (telescoping series) एक श्रेणी है जिसके आंशिक योग निरसन के बाद केवल कुछ सीमित पदों तक सीमित हो जाते हैं।[ 1] [ 2] इस तरह की तकनीक को अन्तर विधि (method of differences) भी कहते हैं।
अन्तःसर्पण : 'टेलीस्कोप' को दबाने पर छोटी हो जाती है।
दूसरे शब्दों में, निम्नलिखित श्रेणी
∑
k
=
1
∞
a
k
{\displaystyle \sum _{k=1}^{\infty }a_{k}}
अंतःसर्पण का गुण प्रदर्शित करेगी यदि उसका k वाँ पद इस प्रकार से लिखा जा सके-
a
k
=
A
k
+
1
−
A
k
{\displaystyle a_{k}=A_{k+1}-A_{k}}
ऐसा होने पर श्रेणी के आंशिक योग को उस श्रेणी के अन्तिम पद और प्रथम पद के अन्तर के रूप में व्यक्त किया जा सकता है-
S
N
=
∑
k
=
1
N
(
A
k
+
1
−
A
k
)
=
A
N
+
1
−
A
N
+
A
N
−
A
N
−
1
+
.
.
.
+
A
3
−
A
2
+
A
2
−
A
1
=
A
N
+
1
−
A
1
{\displaystyle S_{N}=\sum _{k=1}^{N}(A_{k+1}-A_{k})=A_{N+1}-A_{N}+A_{N}-A_{N-1}+...+A_{3}-A_{2}+A_{2}-A_{1}=A_{N+1}-A_{1}}
अन्ततः उपर्युक्त अनन्त श्रेणी का योग सरल होकर अनुक्रम (sequence)
{
S
N
}
{\displaystyle \{S_{N}\}}
की सीमा की गणना के रूप में आ जाता है।
उदाहरण के लिए श्रेणी
∑
n
=
1
∞
1
n
(
n
+
1
)
{\displaystyle \sum _{n=1}^{\infty }{\frac {1}{n(n+1)}}}
निम्न प्रकार लिखी जा सकती है
∑
n
=
1
∞
1
n
(
n
+
1
)
=
∑
n
=
1
∞
(
1
n
−
1
n
+
1
)
=
lim
N
→
∞
∑
n
=
1
N
(
1
n
−
1
n
+
1
)
=
lim
N
→
∞
[
(
1
−
1
2
)
+
(
1
2
−
1
3
)
+
⋯
+
(
1
N
−
1
N
+
1
)
]
=
lim
N
→
∞
[
1
+
(
−
1
2
+
1
2
)
+
(
−
1
3
+
1
3
)
+
⋯
+
(
−
1
N
+
1
N
)
−
1
N
+
1
]
=
1.
{\displaystyle {\begin{aligned}\sum _{n=1}^{\infty }{\frac {1}{n(n+1)}}&{}=\sum _{n=1}^{\infty }\left({\frac {1}{n}}-{\frac {1}{n+1}}\right)\\{}&{}=\lim _{N\to \infty }\sum _{n=1}^{N}\left({\frac {1}{n}}-{\frac {1}{n+1}}\right)\\{}&{}=\lim _{N\to \infty }\left\lbrack {\left(1-{\frac {1}{2}}\right)+\left({\frac {1}{2}}-{\frac {1}{3}}\right)+\cdots +\left({\frac {1}{N}}-{\frac {1}{N+1}}\right)}\right\rbrack \\{}&{}=\lim _{N\to \infty }\left\lbrack {1+\left(-{\frac {1}{2}}+{\frac {1}{2}}\right)+\left(-{\frac {1}{3}}+{\frac {1}{3}}\right)+\cdots +\left(-{\frac {1}{N}}+{\frac {1}{N}}\right)-{\frac {1}{N+1}}}\right\rbrack =1.\end{aligned}}}
यद्यपि अंतर्वेधन एक उपयोगी तकनीक है लेकिन इसके अपवाद भी हैं:
0
=
∑
n
=
1
∞
0
=
∑
n
=
1
∞
(
1
−
1
)
=
1
+
∑
n
=
1
∞
(
−
1
+
1
)
=
1
{\displaystyle 0=\sum _{n=1}^{\infty }0=\sum _{n=1}^{\infty }(1-1)=1+\sum _{n=1}^{\infty }(-1+1)=1\,}
सही नहीं है क्योंकि यदि विशिष्ट पद शून्य को अभिसरित नहीं होते हैं तो पदों का पुनः समूह निर्माण नहीं किया जा सकता, ग्रांडी श्रेणी देखें। इस त्रुटि को दूर करने के लिए पहले प्रथम N पदों का योग ज्ञात करो और बाद में सीमा लागू करो जिसमें N अनन्त की ओर अग्रसर हो।:
∑
n
=
1
N
1
n
(
n
+
1
)
=
∑
n
=
1
N
(
1
n
−
1
n
+
1
)
=
(
1
−
1
2
)
+
(
1
2
−
1
3
)
+
⋯
+
(
1
N
−
1
N
+
1
)
=
1
+
(
−
1
2
+
1
2
)
+
(
−
1
3
+
1
3
)
+
⋯
+
(
−
1
N
+
1
N
)
−
1
N
+
1
=
1
−
1
N
+
1
→
1
a
s
N
→
∞
.
{\displaystyle {\begin{aligned}\sum _{n=1}^{N}{\frac {1}{n(n+1)}}&{}=\sum _{n=1}^{N}\left({\frac {1}{n}}-{\frac {1}{n+1}}\right)\\&{}=\left(1-{\frac {1}{2}}\right)+\left({\frac {1}{2}}-{\frac {1}{3}}\right)+\cdots +\left({\frac {1}{N}}-{\frac {1}{N+1}}\right)\\&{}=1+\left(-{\frac {1}{2}}+{\frac {1}{2}}\right)+\left(-{\frac {1}{3}}+{\frac {1}{3}}\right)+\cdots +\left(-{\frac {1}{N}}+{\frac {1}{N}}\right)-{\frac {1}{N+1}}\\&{}=1-{\frac {1}{N+1}}\to 1\ \mathrm {as} \ N\to \infty .\end{aligned}}}
विभिन्न त्रिकोणमितीय फलनों को अन्तर के रूप में निरुपित किया जा सकता है जिसमें क्रमागत पदों का अंतर्वेधन निरसन किया जा सकता है।
∑
n
=
1
N
sin
(
n
)
=
∑
n
=
1
N
1
2
csc
(
1
2
)
(
2
sin
(
1
2
)
sin
(
n
)
)
=
1
2
csc
(
1
2
)
∑
n
=
1
N
(
cos
(
2
n
−
1
2
)
−
cos
(
2
n
+
1
2
)
)
=
1
2
csc
(
1
2
)
(
cos
(
1
2
)
−
cos
(
2
N
+
1
2
)
)
.
{\displaystyle {\begin{aligned}\sum _{n=1}^{N}\sin \left(n\right)&{}=\sum _{n=1}^{N}{\frac {1}{2}}\csc \left({\frac {1}{2}}\right)\left(2\sin \left({\frac {1}{2}}\right)\sin \left(n\right)\right)\\&{}={\frac {1}{2}}\csc \left({\frac {1}{2}}\right)\sum _{n=1}^{N}\left(\cos \left({\frac {2n-1}{2}}\right)-\cos \left({\frac {2n+1}{2}}\right)\right)\\&{}={\frac {1}{2}}\csc \left({\frac {1}{2}}\right)\left(\cos \left({\frac {1}{2}}\right)-\cos \left({\frac {2N+1}{2}}\right)\right).\end{aligned}}}
∑
n
=
1
N
f
(
n
)
g
(
n
)
,
{\displaystyle \sum _{n=1}^{N}{f(n) \over g(n)},}
जहाँ f और g बहुपद फलन हैं जिनका भागफल आंशिक फलनों में विभाजित किया जा सकता है उनका इस विधि से संकलन नहीं किया जा सकता। विशेष रूप से
∑
n
=
0
∞
2
n
+
3
(
n
+
1
)
(
n
+
2
)
=
∑
n
=
0
∞
(
1
n
+
1
+
1
n
+
2
)
=
(
1
1
+
1
2
)
+
(
1
2
+
1
3
)
+
(
1
3
+
1
4
)
+
⋯
⋯
+
(
1
n
−
1
+
1
n
)
+
(
1
n
+
1
n
+
1
)
+
(
1
n
+
1
+
1
n
+
2
)
+
⋯
=
∞
.
{\displaystyle {\begin{aligned}\sum _{n=0}^{\infty }{\frac {2n+3}{(n+1)(n+2)}}&{}=\sum _{n=0}^{\infty }\left({\frac {1}{n+1}}+{\frac {1}{n+2}}\right)\\&{}=\left({\frac {1}{1}}+{\frac {1}{2}}\right)+\left({\frac {1}{2}}+{\frac {1}{3}}\right)+\left({\frac {1}{3}}+{\frac {1}{4}}\right)+\cdots \\&{}\cdots +\left({\frac {1}{n-1}}+{\frac {1}{n}}\right)+\left({\frac {1}{n}}+{\frac {1}{n+1}}\right)+\left({\frac {1}{n+1}}+{\frac {1}{n+2}}\right)+\cdots \\&{}=\infty .\end{aligned}}}
यहाँ समस्या यह है कि पद आपस में निरसित नहीं हो रहे।
माना k एक धनात्मक संख्या है। तब
∑
n
=
1
∞
1
n
(
n
+
k
)
=
H
k
k
{\displaystyle \sum _{n=1}^{\infty }{\frac {1}{n(n+k)}}={\frac {H_{k}}{k}}}
जहाँ H k , k वीं हरात्मक संख्या है। 1/(k − 1) के बाद के सभी पद निरसित होते हैं।
{{विस्तार} प्रायिकता का अनुप्रयोग ये है कि प्राचीनकाल में जब जुंआरी लोग अपनी प्रोब्लम को mathmetecian के पास ले गए तो उन्होंने इसका सिद्धाअंत दिया और इस प्रकार उनकी समस्याएं दूर की गई
श्रेणी के अन्य अनुप्रयोगों के लिए निम्न देखें:
↑ टॉम एम॰ अपोस्टॉल , Calculus, Volume 1, Blaisdell Publishing Company, 1962, पृष्ठ 422–3
↑ ब्रायन एस॰ थॉमसन और एंड्र्यू एम॰ ब्रुकनर, Elementary Real Analysis, Second Edition [मूलभूत वास्तविक विश्लेषण] , क्रियेटस्पेस, 2008, पृ॰ 85