अंधा बगुला[2] अथवा अन्धबक (अंग्रेजी: Indian pond heron अथवा paddybird, वैज्ञानिक नाम: Ardeola grayii) बगुला परिवार का एक पक्षी है। यह पुरानी दुनिया का एक पक्षी है जो प्रमुख रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। यह पश्चिम में ईरान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, बांग्लादेश एवं म्यांमार तथा श्रीलंका के उत्तरी भागों में पाया जाता है; ईरान में यह समुद्र तट के सहारे एक पतली पट्टीनुमा क्षेत्र में पाया जाता है[1] और पाकिस्तान में यह सुदूर पश्चिमी हिस्सों में नहीं पाया जाता।

अंधा बगुला
Indian pond heron
गैर-प्रजनन काल के दौरान (श्रीलंका में)
प्रजनन काल के रंगों में (भारत में)
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: जंतु
संघ: रज्जुकी (Chordata)
वर्ग: पक्षी (Aves)
उपवर्ग: नेओर्निथीस (Neornithes)
अध:वर्ग: नेओनाथाए (Neognathae)
अधिगण: नेओआवीज़ (Neoaves)
गण: पेलेकेनिफ़ोर्मीज़ (Pelecaniformes)
कुल: आर्डेइडाए (Ardeidae)
उपकुल: बोटौरिनाए (Botaurinae)
वंश: ऐर्डियोला (Ardeola)
जाति: ए. ग्रेयी
द्विपद नाम
आर्डियोला ग्रेयी
(साइक्स. 1932)
आर्डियोला वंश के बगुलों का वैश्विक वितरण
लाल रंग से अंधबक का विस्तार-क्षेत्र

मटमैले-भूरे अथवा खाकी-भूरे रंग का यह बगुला भारत में बहुत आम पक्षी है[2] और अक्सर तालाबों, नालों एवं अन्य जलस्रोतों के पास दलदली हिस्सों में बैठा रहता है; हालाँकि, इसे इसके रंग के कारण आसानी देखा नहीं जा सकता जबकि उड़ते समय इसके पंख और पूँछ चटक सफ़ेद रंग का ख़ूबसूरत नज़ारा प्रस्तुत करते हैं। चूँकि इसका रंग कुछ ऐसा होता है कि यह आसपास के माहौल में छिप जाता है, मनुष्यों द्वारा काफ़ी पास जाने पर भी जल्दी उड़ता नहीं है।

वैश्विक स्तर पर जीव प्रजातियों के ऊपर संकट की स्थिति का विवरण देने वाली, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा प्रकाशित की जाने वाली आईयूसीएन लाल सूची, हेतु 2016 के मूल्यांकन अनुसार अनुसार इसे संकट मुक्त प्रजाति श्रेणी में रखा गया है।[1]

संस्कृत भाषा में इस पक्षी को अन्धबक[3][4] एवं कारण्डव[5] कहते हैं और हिंदी में अंधा बगुला तथा मराठी भाषा में इसका प्रचलित नाम वंचक है[5] (अर्थात झूठा या धोखा देने वाला)।

इसे अंधा बगुला अथवा ऐसे अन्य नामों से पुकारने का कारण इसका व्यवहार है; यह तबतक नहीं उड़कर भागता जबतक कोई व्यक्ति इसके बहुत पास तक न पहुँच जाय। हालाँकि, ऐसा नहीं कि इसका यह व्यवहार इस कारण है कि इसे कम दिखाई पड़ता, इसके विपरीत इसका रंग इसे आसानी से आसपास के परिदृश्य में छुपा लेता है और जबतक इसके पास तक न पहुँच जायें तब तक इसे देखना मुश्किल होता है। अतः इसके परिवेश के साथ इसका बेहतरीन छद्मावरण इसके इस तरह के व्यवहार का कारण है, और इसके नाम का भी।

अंग्रेजी में इसे इंडियन पोंड हेरन के नाम से जाना जाता है और साथ ही एक अन्य नाम पैडीबर्ड[4][5] (paddybird; पैडी अर्थात: धान के खेत और बर्ड: पक्षी) भी है।

 
तमिलनाडु के तिरुनेलवेळी के वेंथा तालाब में शिकार की प्रतीक्षा में बैठा एक अंधा बगुला।

ये मोटे और नाटे आकार का प्रतीत होने वाला छोटी गर्दन वाला बगुला है जिसकी चोंच मोटी होती है और खाकी-भूरे रंग की पीठ होती है। गर्मियों में, प्रौढ़ सदस्यों के गले पर लंबे पंख दिखलाई पड़ते हैं। समागम एवं प्रजनन का में इनका रंग (ब्रीडिंग प्लूमेज) सामान्य से अधिक चटक हो जाता है और कुछ महरून रंग का हो जाता है; बाक़ी समय ये मटमैले और खाकी भूरे रंग के दिखते हैं जब अपने शिकार की प्रतीक्षा में स्थिर बैठे हों। उड़ते समय इनके पंख और पूँछ चटक सफ़ेद रंग के दीखते हैं।

प्रजननकाल के दौरान कुछ सदस्यों में टांगों का लाल रंग का हो जाना भी दर्ज किया गया है हालाँकि, इसे आम नहीं माना जाता।

साधारणतया ये बहुत शांत होते हैं, जबकि पास जाने पर तेज़ "क्वाक" की आवाज़ करते हुए उड़ते हैं।

अंधे बगुले का वैज्ञानिक विवरण सर्वप्रथम डब्ल्यू. एच. साइक्स द्वारा 1932 में प्रस्तुत किया गया था और उन्होंने इसका वैज्ञानिक नाम ब्रिटिश जंतुविज्ञानी जॉन एडवर्ड ग्रे के सम्मान में रखा था।

व्यवहार एवं पारिस्थितिकी

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उड़ान के समय इसका सफ़ेद रंग प्रबलता से दिखता है।
 
कोलकाता के समीप एक सूखते हुए तालाब में अंधे बगुलों का एक झुंड

भारत में ये आम पक्षी है[2], अक्सर तालाबों, दलदली कीचड़ वाले जलस्रोतों, धान के खेतों के आसपास दिख जाता है। नगरीय क्षेत्रों में भी यह नालों के पास देखा जा सकता है। स्थिर होकर शिकार की प्रतीक्षा करते समय परिवेश के साथ इसका छद्मावरण बेहतरीन होता है।

छोटे मेंढक, टेडपोल, छोटी मछलियाँ और पानी में पाए जाने वाले कीट इनके आम भोजन में शामिल हैं।[2] सामान्यतया ये कीचड़ वाले किनारों पर खड़े होकर अपने शिकार की प्रतीक्षा करते हैं हालाँकि, पानी में तैरने वाली वनस्पतियों जैसे जलकुंभी इत्यादि का इस्तेमाल भी खड़े होकर शिकार का इंतजार करने में सुगमता से करते हैं। कभी-कभार इन्हें पानी की सतह पर कुछ समय के लिए तैरते हुए अथवा शिकार पर झपट्टा मारते समय पानी के अंदर गोता लगाते हुए भी देखा गया है।

इनका समागम एवं प्रजनन काल (ब्रीडिंग सीज़न) मानसून के आगमन के साथ शुरू होता है। इस दौरान इनके रंग कुछ चटक अथवा खाकी से मैरून हो जाते हैं। ये छोटे पेड़ों पर अपना छोटे झुंडों (कोलोनी) में घोंसला बनाते हैं। एक बार में ये 3 से 5 अंडे देते हैं और बच्चे निकलने में 18 से 24 दिनों की अवधि लगती है।[2] नर एवं मादा दोनों ही मिलकर बच्चों को खिलाते हैं जिनके भोजन में छोटी मछलियाँ मुख्य आहार होती हैं।

संस्कृति में

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शांत खड़े होकर शिकार की स्थिर होकर प्रतीक्षा करना और बहुत पास जाने पर ही तेज़ आवाज करते हुए उड़ना इनका आम व्यवहार है जिसके कारण लोक में इन्हें अपना नाम मिला है।

हिंदी में इनपर एक लोकोक्ति है - अंधा बगुला कीचड़ खाय जिसका अर्थ बताया जाता है, "संसाधन की कमी से अयोग्य बनना"।[6]


फोटो गैलरी

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इन्हें भी देखें

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  1. "इंडियन पोंड हेरन" [भारतीय तालाब-बगुला (आर्डियोला ग्रेयी)]. बर्डलाइफ़ इंटरनेशनल (अंग्रेज़ी में). 1 अक्टूबर 2016. डीओआइ:10.2305/IUCN.UK.2016-3.RLTS.T22697128A93600400.en. अभिगमन तिथि 1 अप्रैल 2022.
  2. सालिम अली, दि बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स, 13वाँ संस्क., बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस), ऑक्सफ़ोर्ड प्रेस. 2003 ISBN 9780195665239 ISBN 0195665236, (पृप. 70)
  3. वीर, रघु; के. एन., दवे (1949). इंडियन साइंटिफिक नोमेनक्लेचर ऑव बर्ड ऑव इंडिया, बर्मा एंड सीलोन [भारत, बर्मा और सीलोन के पक्षियों की भारतीय वैज्ञानिक नामकरण-पद्धति]. श्री एल चंद्र. पृ॰ 430. अभिगमन तिथि 1 अप्रैल 2022.
  4. विलियम थॉमस, ब्लैनफ़ोर्ड (1898). दि फ़ौना ऑव ब्रिटिश इंडिया: इनक्लूडिंग सीलोन एंड बर्मा (अंग्रेज़ी में). टेलर & फ़्रैंसिस. पपृ॰ 393–394. अभिगमन तिथि 1 अप्रैल 2022.
  5. "इंडियन पोंड हेरन" [भारतीय तालाब बगुला]. नेचरवेब(डॉट)नेट (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 1 अप्रैल 2022.
  6. के. के., गोस्वामी (2008). आलेख आधुनिक हिंदी: विविध आयाम. आलेख प्रकाशन. पृ॰ 542. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8187-123-7. अभिगमन तिथि 1 अप्रैल 2022.

बाहरी कड़ियाँ

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