अग्न्याशय

कशेरुकी जीवों की पाचन व अंतःस्रावी प्रणाली का एक ग्रंथि अंग
(अग्नाशय से अनुप्रेषित)

अग्न्याशय कशेरुकी जीवों की पाचनअंतःस्रावी प्रणाली का एक ग्रंथि अंग है। ये इंसुलिन, ग्लुकागोन, व सोमाटोस्टाटिन जैसे कई ज़रूरी हार्मोन बनाने वाली अंतःस्रावी ग्रंथि है और साथ ही यह अग्न्याशयी रस निकालने वाली एक बहिःस्रावी ग्रंथि भी है, इस रस में पाचक किण्वक होते हैं जो लघ्वांत्र में जाते हैं। ये किण्वक अम्लान्न में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, व वसा का और भंजन करते हैं।

अग्न्याशय
1: अग्न्याशय का शिर
2: अग्न्याशय की उंसिनेट प्रक्रिया
3: अग्न्याशय का कंठ
4: अग्न्याशय का धड़
5: अग्न्याशय की अग्रगामी सतह
6: अग्न्याशय की अवर सतह
7: अग्न्याशय का उच्चतर किनारा
8: अग्न्याशय का अग्रिम किनारा
9: अग्न्याशय का अवर किनारा
10: ओमेंटी गाँठ
11: अग्न्याशय की पुच्छ
12: लघ्वांत्राग्र
ग्रे की शरी‍रिकी subject #251 1199
धमनी अवर अग्न्याशयलघ्वांत्राग्री धमनी, अग्रगामी अग्न्याशयलघ्वांत्राग्री धमनी, प्लैहिक धमनी
शिरा अग्न्याशयलघ्वांत्राग्री शिराएँ, अग्न्याशयी शिराएँ
तंत्रिका अग्न्याशयी तंतुजाल, औदरीय गैंग्लिया, वेगस[1]
पूर्वगामी अग्न्याशयी कलियाँ
एमईएसएच अग्न्याशय
डोर्लैंड्स/एल्सीवियर अग्न्याशय

सूक्ष्मदर्शी के नीचे, अग्न्याशय के दगे हुए काट में दो अलग तरह के मृदूतक (पैरेंकाइमा) ऊतक दिखते हैं।[2] हल्के दाग वाली कोषिकाओं के झुंडों को आइलेट्स ऑफ़ लेंगर्हंस कहते हैं, ये वह हार्मोन बनाते है जो अग्न्याशय के अंतःस्रावी क्रियाकलापों को करते हैं। गाढ़े दाग वाली कोशिकाएँ गुच्छिक होती हैं जो बहिःस्रावी नलिकाओं से जुड़ती हैं। गुच्छिक कोषिकाएँ बहिःस्रावी अग्न्याशय का हिस्सा हैं और वे नलिकाओं की प्रणाली के जरिए आँतड़ियों में पाचक किण्वक रिसाती हैं।

बनावट शक्लोसूरत कार्यसमूह
आईलेट्स ऑफ़ लेंगर्हंस हल्के दाग, बड़े, वृत्तीय झुंड हार्मोन उत्पादन व रिसाव (अंतःस्रावी अग्न्याशय)
अग्नयाशयी गुच्छिक गाढ़े दाग, छोटे, बेर-जैसे झुंढ पाचक किण्वक उत्पादन व रिसाव (बहिःस्रावी अग्न्याशय)

कार्यकलाप

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अग्न्याशय एक द्वि-कार्यीय ग्रंथि है, इसमें अंतःस्रावी ग्रंथिबहिःस्रावी ग्रंथियों - दोनों के कार्य होते हैं।

अंतःस्रावी

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अंतःस्रावी क्रियाकलापों वाला अग्न्याशय में कुछ १० लाख[3] कोशिका झुंड हैं जिन्हें आइलेट्स ऑफ़ लेंगर्हांस कहते हैं। आइलेटों में चार मुख्य प्रकार की कोषिकाएँ हैं। मानक दागीकरण विधियों से इन्हें भिन्नित करना थोड़ा कठिन है, लेकिन इन्हें रिसाव के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है: α - अल्फ़ा कोषिकाएँ ग्लूकागोन, β बीटा कोषिकाएँ इंसुलिन, δ डेल्टा कोषिकाएँ सोमाटोस्टेटिन और पीपी कोषिकाएँ अग्न्याशयी पौलीपेप्टाइड का रिसाव करती हैं।[4]

आइलेट अंतःस्रावी कोषिकाओं का एक सघन समुच्चय है जो कि झुंडों और डोरियों में आयोजित होते हैं और इनके आसपास आड़ी तिरछी केशिकाओं का एक घना जाल होता है। आइलेटों की केशिकाओं में अंतःस्रावी कोशिकाओं की परतों का अस्तर होता है जो वाहिनियों से सीधे संपर्क में रहने के लिए साइटोप्लास्मी प्रक्रियाओं या सीधे एकान्वयन का प्रयोग करता है। एलन ई. नोर्स की शरीर नामक पुस्तक के अनुसार,[5] ये आइलेट "अथक रूप से अपने हार्मोन बनाने में लगे रहते है और आमतौर पर आसपास की अग्न्याशयी कोषिकाओं को नज़रंदाज़ करते हैं, मानो वे शरीर के बिल्कुल अलग ही अंग में हों।"

बहिःस्रावी

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अंतःस्रावी अग्न्याशय रक्त में हार्मोनों का रिसाव करता है तो बहिःस्रावी अग्न्याशय, लघ्वांत्र के हार्मोनों सिक्रेटिनकोलिसिस्टोकाइनिन की प्रतिक्रियास्वरूप, पाचक किण्वक और एक क्षारीय तरल अग्न्याशयी रस उत्पन्न करता है और बहिःस्रावी वाहिनियों के जरिए उनका लघ्वांत्र में रिसाव कर देता है। पाचक किण्वकों में ट्रिप्सिन, किमोट्रिप्सिन, अग्न्याशयी लाइपेसअग्न्याशयी एमिलेस शामिल हैं और इनका उत्पादन और रिसाव बहिःस्रावी अग्न्याशय की गुच्छिक कोशिकाओं द्वारा होता है। अग्न्याशयी वाहिनियों के अस्तर कुछ खास कोषिकाओं के बने होते हैं, इन्हें सेंट्रोएसिनार कोशिकाएँ कहते हैं और ये बाइकार्बनेटलवण में धनी घोल का लघ्वांत्र में रिसाव करती हैं। [6]

नियंत्रण

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अग्न्याशय नियमित रूप से रक्त में हार्मोनों के जरिए व स्वचालित स्नायुतंत्र के जरिए नियमित रूप से तंत्रिका भरण प्राप्त करता रहता है। ये दोनो निविष्टियाँ अग्न्याशय की रिसाव गतिविधियों को नियंत्रित करती है।

सहानुभूतिक (एड्रिनर्जिक) असहानुभूतिक (मुस्कारिनिक)
अल्फ़ा २: बीटा कोशिकाओं से रिसाव कम करता है, अल्फ़ा कोषिकाओं से रिसाव बढ़ाता है एम ३[7] अल्फ़ा कोषिकाओंबीटा कोषिका से उत्तेजना बढ़ाता है।

अग्न्याशय के रोग

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अग्न्याशय बहुत से पाचक किण्वकों का भंडार है अतः अंग्न्याशय में क्षति बहुत हानिकारक हो सकती है। अग्न्याशय में छेद होने पर तुरंत औपचारिक हस्तक्षेप की ज़रूरत होती है।

अग्न्याशय में चीरा लगाने को पैन्क्रिएटोटोमी कहते हैं।

अग्न्याशय की पहचान सबसे पहले हीरोफ़िलस (३३५-२८० ई.पू.), ने की थी, जो कि एक यूनानी शरीर रचना विज्ञानी शल्यचिकित्सक थे। कुछ सौ साल बाद एक और यूनानी शरीर रचना विज्ञानी रुफ़ोस, ने इस अंग को यूनानी नाम पैन्क्रियास दिया यह शब्द यूनानी πᾶν पैन अर्थात् "सब", "पूर्ण", व κρέας क्रेआस्, अर्थात् "माँस" से बना है[8]

भ्रूणविज्ञानीय विकास

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योजना विषय चित्र, जो अग्न्याशय का पृष्ठीयउदरीय कली से विकास दर्शाता है। परिपक्वता के समय उदरीय कली पेट की नाली (तीर) के दूसरी तरफ़ पलट जाती है जहाँ वह आमतौर पर पृष्ठीय पालि से सम्मिश्रित हो जाती है। एक अतिरिक्त उदरीय लोब, जो विकास के समय प्रत्यावर्तित होता है, मिट जाता है।

अग्न्याशय भ्रूणीय अग्रांत्र से बनता है अतः यह अंतस्तत्वक मूल का है। अग्न्याशयी विकास की शुरुआत से उदरीय व पृष्ठीय मूलरूप (या कलियों) का निर्माण होता है। हर संरचना अंग्रांत्र से एक वाहिनी के जरिए संचार करती है। उदरीय अग्नयाशयी कली शिर व घुमावदार प्रक्रिया बनती है और यकृतीय छिद्र से निकलती है।

उदरीय व पृष्ठीय अग्न्याशयी कलियों का विभेदी घूर्णन व सम्मश्रण होने से स्पष्ट रूप से अग्न्याशय का निर्माण होता है।[9] जैसे जैसे लघ्वांत्राग्र दाईं तरफ़ घूमता है, वह अपने साथ पृष्ठीय अग्न्याशयी कली व आम पित्त वाहिनी को साथ ले जाता है। अपने अंतिम गंतव्य तक पहुँचने के बाद उदरीय अग्न्याशयी कली अधिक बड़ी पृष्ठीय अग्न्याशयी कली के साथ सम्मिश्रित हो जाती है। सम्मिश्रण के समय उदरीय व पृष्ठीय अग्न्याशय की मुख्य वाहिनियाँ सम्मिश्रित हो जाती हैं और इससे विर्संग की वाहिनी बनती है जो कि मुख्य अग्न्याशयी वाहिनी है।

अग्न्याशय की कोशिकाओं का भिन्नीकरण दो अलग पथों से होता है, ये अग्न्याशय की दोहरे कार्यों - अंतःस्रावी व बहिःस्रावी के अनुरूप है। बहिःस्रावी अग्न्याशय की जनक कोषिकाओं में भिन्नीकरण करने वाले महत्त्वपूर्ण योगिक हैं फ़ोलिस्टेनिन, फ़िब्रोब्लास्ट विकास कारकनॉच प्रापक प्रणाली।[9] बहिःस्रावी गुच्छिकाओं का विकास तीन अवस्थाओं से गुज़रता है। ये हैं भिन्नीकरण-पूर्व, प्रारंभिक भिन्नीकृत, व भिन्नीकृत अवस्थाएँ, जो कि क्रमशः अनभिज्ञेय, कम व अधिक पाचन किण्वक गतिविधि दर्शाती हैं।

अंतःस्रावी अग्न्याशय की जनक कोशिकाएँ बहिःस्रावी अग्न्याशय की प्रारंभिक भिन्नीकृत अवस्था की कोशिकाएँ हैं।[9] न्यूरोजेनिन-३आईएसएल-१ के प्रभाव में पर नॉच प्रापक संकेतन की अनुपस्थिति में, ये कोषिकाएँ भिन्नित हो के समर्पित अंतःस्रावी कोषिकाओं के जनकों की दो पंक्तियाँ बनाती हैं। पहली पंक्ति, पैक्स-० के निर्देश में अल्फ़ा व गामा कोषिकाएँ बनाती हैं, जो क्रमशः ग्लूकागोनअग्न्याशयी पौलीपेप्टाइड नामक पेप्टाइड बनाती हैं। दूसरी पंक्ति पैक्स-६ से प्रभावित हो के बीटा व डेल्टा कोषिकाएँ बनाती हैं, जो क्रमशः इंसुलिनसोमाटोस्टेटिन बनाती हैं।

भ्रूण के विकास के चौथे या पाँचवें मास में भ्रूण के परिसंचरण में इंसुलिन व ग्लूकागोन पाया जा सकता है।[9]

अतिरिक्त छवियाँ

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  1. एमसीजी में शरीर रचना विज्ञान 6/6ch2/s6ch2_30
  2. बी.यू पर ऊतक विज्ञान 10404loa
  3. हेलमैन बी, गिल्फ़ ई, ग्रेपेन्गिएस्सर ई, डैंस्क एच, सलेही ए (२००७). "[इंसुलिन का डोलना--लाक्षणिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण लय। मधुमेह अवरोधियों को इंसुलिन छोड़ने के स्पंदनीय भाग को बढ़ाना चाहिए]". लकार्ट्निंगेन (स्वीडिश में). १०४ (३२-३३): २२३६-९. PMID १७८२२२०१ |pmid= के मान की जाँच करें (मदद).सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  4. बीआरएस शरीर क्रिया विज्ञान ४था संस्करण, पृष्ठ २५५-२५६, लिंडा एस कोंस्टेंज़ो, लिपिनकौट प्रकाशन
  5. शरीर, लेखक एलन ई. नोर्स, टाइम-लाइफ़ विज्ञान पुस्तकालय शृंखला (पृ. १७१) में।
  6. मेट्रन, एंथिया; जीन होप्किंस, चार्ल्स विलियम मेकलाफ़्लिन, सूज़न जांसन, मार्याना क्वोन वार्नर, डेविड लाहार्ट, जिल डी. राइट (१९९३). मानव जीव विज्ञान व स्वास्थ्य. एंगलवुड क्लिफ़्स, न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमरीका: प्रेंटिस हाल. OCLC ३२३०८३३७ |oclc= के मान की जाँच करें (मदद). आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ ०-१३-९८११७६-१ |isbn= के मान की जाँच करें: invalid character (मदद).सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  7. वेर्स्पोह्ल ईजे, टेके आर, मुट्श्लेर ई, लेंब्रेख्त जी (१९९०). "मूषक अग्न्याशयी आइलेटों में मुस्कारीय प्रापक उपप्रकार: बंधन वा कार्यसंबंधी अध्ययन". यूरो. ज. फ़ार्माकोल. १७८ (३): ३०३-११. PMID २१८७७०४ |pmid= के मान की जाँच करें (मदद). डीओआइ:१०.१०१६/००१४-२९९९(९०)९०१०९-जे+ |doi= के मान की जाँच करें (मदद).सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  8. हार्पर, डगलस. "पैन्क्रियास". ऑन्लाइन नामकरण शब्दकोश. मूल से 22 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २००७-०४-०४.
  9. कार्ल्सन, ब्रूस एम. (२००४). मानवीय भ्रूम विज्ञान व विकासीय जीव विज्ञान. सेंट लुइस: मोस्बी. पपृ॰ ३७२-४. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ ०-३२३-०१४८७-९ |isbn= के मान की जाँच करें: invalid character (मदद).

बाहरी कड़ियाँ

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