अध्यात्मवाद
अध्यात्मवाद आत्मा को जगत का मूल मानने वाला एक प्रत्ययवादी विचार है। अध्यात्मवाद के एक मत के अनुसार भौतिक जगत परमात्मा तथा उसके गुणों की अभिव्यक्ति का माध्यम है। जबकि अन्य अध्यात्मवादियों के लिए वह मानव चेतना का मायाजाल है। अध्यात्मवाद के प्रतिपादक यह मानते हैं कि आत्मा का शरीर से स्वतंत्र अस्तित्व होता है।[1] यजुर्वेद में आत्मा की अवधारणा को समझाने के लिए यह कहा गया है कि आत्मा (अहम् ब्रह्मास्मि) केवल एक दर्शक (साक्षी) है, जो हमारे विचारों, इंद्रियों और कर्मों के सभी क्रियाकलापों को देखती है, लेकिन खुद निष्क्रिय रहती है। [2]सुसंगत अध्यात्मवादी आधुनिक विज्ञान की उपलब्धियों का मिथ्याकरण करते हैं और विज्ञान के स्थान पर प्रेतात्माओं तथा दैवी विधान में अंधविश्वास की प्रतिष्ठापना करने का प्रयास करते हैं। अध्यात्म वह हकीकत है जो चर्मदृष्टि से दिखाई नहीं देती ,इसे समझने के लिये आत्मज्ञान की आवश्यकता होती है। बूर्जुआ दर्शन में अध्यात्मवाद का अर्थ बहुधा प्रत्ययवाद होता है।[3]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "प्रथम पाठ - आध्यात्म". 2024-10-21. अभिगमन तिथि 2024-12-10.
- ↑ "प्रथम पाठ - आध्यात्म". 2024-10-21. अभिगमन तिथि 2024-12-10.
- ↑ दर्शनकोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, १९८0, पृष्ठ-१५ ISBN: ५-0१000९0७-२
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