अनुच्छेद 61 (भारत का संविधान)
अनुच्छेद 61 भारत के संविधान का एक अनुच्छेद है। यह संविधान के भाग 5 में शामिल है और राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने का वर्णन करता है।
अनुच्छेद 61 (भारत का संविधान) | |
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मूल पुस्तक | भारत का संविधान |
लेखक | भारतीय संविधान सभा |
देश | भारत |
भाग | भाग 5 |
प्रकाशन तिथि | 1949 |
पूर्ववर्ती | अनुच्छेद 60 (भारत का संविधान) |
उत्तरवर्ती | अनुच्छेद 62 (भारत का संविधान) |
पृष्ठभूमि
संपादित करेंमूल पाठ
संपादित करें“ | (1) जब संविधान के ओंतक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो, तब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा।
(2) ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि---
(क) ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना किसी ऐसे संकल्प में अंतर्विष्ट नहीं है, जो कम से कम चौदह दिन की ऐसी लिखित सूचना के दिए जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया है जिस पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का अपना आशय प्रकट किया है; और
(ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया है।
(3) जब आरोप संसद के किसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दूसरा सदन उस आरोप का अन्वेषण करेगा या कराएगा और ऐसे अन्वेषण में उपस्थित होने का तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का राष्ट्रपति को अधिकार होगा।
(4) यदि अन्वेषण के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है, आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाना होगा।
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” |
“ | (1) When a President is to be impeached for violation of the Constitution, the charge shall be preferred by either House of Parliament.
(2) No such charge shall be preferred unless— (a) the proposal to prefer such charge is contained in a resolution which has been moved after at least fourteen days’ notice in writing signed by not less than one-fourth of the total number of members of the House has been given of their intention to move the resolution, and (b) such resolution has been passed by a majority of not less than two-thirds of the total membership of the House. (3) When a charge has been so preferred by either House of Parliament, the other House shall investigate the charge or cause the charge to be investigated and the President shall have the right to appear and to be represented at such investigation. (4) If as a result of the investigation a resolution is passed by a majority of not less than two-thirds of the total membership of the House by which the charge was investigated or caused to be investigated, declaring that the charge preferred against the President has been sustained, such resolution shall have the effect of removing the President from his office as from the date on which the resolution is so passed. [2] |
” |
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ (संपा॰) प्रसाद, राजेन्द्र (1957). भारत का संविधान. पृ॰ 24 – वाया विकिस्रोत. [स्कैन ]
- ↑ (संपा॰) प्रसाद, राजेन्द्र (1957). भारत का संविधान. पृ॰ # – वाया विकिस्रोत. [स्कैन ]
टिप्पणी
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