अभयदेवसूरि
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अभयदेवसूरि एक जैन विद्वान थे जिन्होंने स्थानांगसूत्र सहित नौ जैन आगमों पर टीका लिखी है। 'तत्त्वबोधविधायिनी' उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध टीकाग्रन्थ है जिसमें २५ हजार श्लोक हैं।[1] आपका जीवन वृतान्त “प्रभावक चरित्र” नामक ग्रन्थ से प्राप्त होता है। आपके पिता का नाम श्रेष्ठी महीधर तथा माता का नाम धनदेवी था। धारा नगरी (आधुनिक धार) में संवत 1071 में आपका जन्म हुआ। संवत 1080 में 8 वर्ष की आयु में आपने दीक्षा ग्रहण की और 'अभयदेव मुनि' नाम प्राप्त किया।
गुरु के पास आपने स्व-पर शास्त्र का विधिवत अध्ययन किया। अल्प काल में ही आपने ज्ञान ध्यान योग आदि क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की। ज्ञानार्जन के साथ वे उग्र तपस्या भी करने लगे। आपकी योग्यता को देखकर जिनेश्वरसूरि ने आपको संवत 1088 में 16 वर्ष की आयु में आचार्य पद प्रदान किया।
अभयदेवसूरि का महान योगदान रहा है। आचार्य श्री ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का उपयोग आगमों पर 60,000 श्लोक प्रमाण टीकाएं बनाने के लिए किया। यह टीकाएं बहुत ही उपयोगी हैं और मंदिरमार्गी, स्थानकवासी, तेरापंथी सभी सम्प्रदायों में मान्य है। स्थानांग सूत्र आदि नवांग ग्रंथो की टीका का रचना काल विक्रम संवत 1120 से 1128 के मध्य का है। टीकाओं का प्रारम्भ पाटण में हुआ था और पूर्णता भी पाटण में हुई थी।
अभयदेवसूरि के विद्वान् शिष्यों में प्रसन्नचंद्रसूरि, वर्धमानसूरि, हरिभद्रसूरि, देवभद्रसूरि, जिनवल्लभसूरि आदि का नाम उल्लेखनीय है। आपके उपदेश से अनेक जैनेतर लोग जैन बने। उनमें से पगारिया, खेतसी, मेड़तवाल आदि गोत्रों का नाम उल्लेखनीय है।
आपका स्वर्गवास कपडवंज में संवत 1138 के आस पास हुआ। श्वेताम्बर के पिछले सभी गच्छ एवं पक्ष के विद्वानों ने अत्यंत आदर एवं सत्यनिष्ठा के साथ अभयदेवसूरि का स्मरण किया है। और इनके वचनो को पूर्णतया आप्तवचन की कोटि में रखा है।