अमृता बेनीवाल
खेजड़ली गाँव का बलिदान सन 1730 के राजस्थान के मारवाड़ (आज का जेसलमेर और जोधपुर) में राणा अभयसिंह का राज था, वो अपने मेहरान गढ़ किले में फुल महल नाम से एक महल बनवा रहे थे तो उनको चुना पकाने के लिए लकड़ियों की जरूरत पड़ी उन्होंने अपने मंत्री गिरधारी दास भंडारी से लकड़ी की व्यवस्था करने के लिए कहा।[1] तो मंत्री गिरधारी दास की नज़र किले से 24 किलोमीटर दूर खेजड़ली गाँव पर पड़ी और वो अपने सिपाहियों के साथ खेजडली गाँव पहुँच गया। उनके सिपाहियों ने रामो जी खोड बिश्नोई के घर के पास का वृक्ष काटने को कुल्हाड़ी चलाई तो कुल्हाड़ी की आवाज सुनकर रामो जी खोड की पत्नी अमृता बिश्नोई ने उन्हें अपने समाज के नियमो का हवाला देकर रोका तो वे नहीं रुके।[2] तो फिर अमृता देवी उस खेजड़ी वृक्ष से लिपट गई और बोली “सर साठे रुख रहे तो भी सस्तो जाण”। इस तरह अमृता देवी बिश्नोई की 3 पुत्रियों ने भी माँ का बलिदान देख कर खुद ने भी बलिदान दे दिया। इसी प्रकार खेजड़ली गाँव सहित आस पास के चोरासी गाँवो के 363 लोगो ने अपना बलिदान खेजड़ी से लिपट के दे दिया उन सभी 363 लोगो की सूची निचे दी गई।[3] [4]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ A Glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province: A.-K. Atlantic Publishers & Dist. 1997. पपृ॰ 114–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85297-69-9. मूल से 7 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 अप्रैल 2020.
- ↑ Banavārī Lāla Sahū (2002). Paryāvaraṇa saṃrakshaṇa evaṃ Khejaṛalī balidāna. Bodhi Prakāśana.
- ↑ श्रीकृष्ण बिश्नोई (1991). Biśnoī dharma-saṃskāra. Dhoka Dhorā Prakāśana. पृ॰ 36.
- ↑ चोरासी गांव की सूची,सामाजिक न्यायिक मुख्यालय।