आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली के वृज्जिसंघ की इतिहास प्रसिद्ध लिच्छवि राजनृत्यांगना थी।[1] इनका एक नाम 'अम्बपाली' या 'अम्बपालिका' भी है। आम्रपाली अत्यन्त सुन्दर थी और कहते हैं जो भी उसे एक बार देख लेता वह उसपर मुग्ध हो जाता था।[2] अजातशत्रु उसके प्रेमियों में था और उस समय के उपलब्ध सहित्य में अजातशत्रु के पिता बिंबसार को भी गुप्त रूप से उसका प्रणयार्थी बताया गया है। आम्रपाली को लेकर भारतीय भाषाओं में बहुत से काव्य, नाटक और उपन्यास लिखे गए हैं।

आम्रपाली

महात्मा बुद्ध का स्वागत करती हुई आम्रपाली
जन्म 600-500 BCE
वैशाली
मौत वैशाली
पेशा नृत्यांगना
प्रसिद्धि का कारण नगरवधू (राजनृत्यांगना) of the republic of वैशाली
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अंबपाली बुद्ध के प्रभाव से उनकी शिष्या हुई और उसने अनेक प्रकार के दान से बौद्ध संघ का महत् उपकार किया। उस युग में राजनर्तकी का पद बड़ा गौरवपूर्ण और सम्मानित माना जाता था। साधारण जन तो उस तक पहुँच भी नहीं सकते थे। समाज के उच्च वर्ग के लोग भी उसके कृपाकटाक्ष के लिए लालायित रहते थे। कहते हैं, भगवान तथागत ने भी उसे "आर्या अंबा" कहकर संबोधित किया था तथा उसका आतिथ्य ग्रहण किया था। धम्मसंघ में पहले भिक्षुणियाँ नहीं ली जाती थीं, यशोधरा को भी बुद्ध ने भिक्षुणी बनाने से मना कर दिया था, किंतु आम्रपाली की श्रद्धा, भक्ति और मन की विरक्ति से प्रभावित होकर नारियों को भी उन्होंने संघ में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया।

प्रारंभिक जीवन संपादित करें

आम्रपाली या अंबापली का जन्म लगभग 600-500 ईसा पूर्व अज्ञात अभिभावकों के लिए हुआ था, और उन्हें उसका नाम दिया गया था क्योंकि उनके जन्म के समय वे कहा गया था कि वे वैशाली में शाही उद्यान में से एक आम के पेड़ पर अनायास पैदा हुए थे।[3] व्युत्पत्ति के अनुसार, उनके नाम पर वेरिएंट दो संस्कृत शब्दों के संयोजन से प्राप्त हुए हैं: "अमरा", जिसका अर्थ है आम और "पल्लवा", जिसका अर्थ है युवा पत्ते या स्प्राउट्स। यहां तक कि एक युवा युवती के रूप में, वह असाधारण सुंदर थी ऐसा कहा जाता है कि महामनमैन के नाम से एक सामंती स्वामी इतनी लुभा रहा था कि वह अपने राज्य को छोड़कर अम्बारा गांव में चला गया, वैशाली में एक छोटे से गांव।

परिचय संपादित करें

भगवान बुद्ध राजगृह जाते या लौटते समय वैशाली में रुकते थे जहाँ एक बार उन्होंने अंबपाली का भी आतिथ्य ग्रहण किया था। बौद्ध ग्रंथों में बुद्ध के जीवनचरित पर प्रकाश डालने वाली घटनाओं का जो वर्णन मिलता है उन्हीं में से अंबपाली के संबंध की एक प्रसिद्ध और रूचिकर घटना है। कहते हैं, जब तथागत एक बार वैशाली में ठहरे थे तब जहाँ उन्होंने देवताओं की तरह दीप्यमान लिच्छवि राजपुत्रों की भोजन के लिए प्रार्थना अस्वीकार कर दी, वहीं उन्होंने गणिका अंबपाली की निष्ठा से प्रसन्न होकर उसका आतिथ्य स्वीकार किया। इससे गर्विणी अंबपाली ने उन राजपुत्रों को लज्जित करते हुए अपने रथ को उनके रथ के बराबर हाँका। उसने संघ को आमों का अपना बगीचा भी दान कर दिया था जिससे वह अपना चौमासा वहाँ बिता सके।

इसमें संदेह नहीं कि अंबपाली ऐतिहासिक व्यक्ति थी, यद्यपि कथा के चमत्कारों ने उसे असाधारण बना दिया है। संभवत वह अभिजात कुलीना थी और इतनी सुंदर थी कि लिच्छवियों की परंपरा के अनुसार उसके पिता को उसे सर्वभोग्या बनाना पड़ा। संभवत उसने गणिका जीवन भी बिताया था और उसके कृपापात्रों में शायद मगध का राजा बिंबिसार भी था। बिंबिसार का उससे एक पुत्र होना भी बताया जाता है।,जीबक इनका बेटॉ था जो भी हो, बाद में बुद्ध के उपदेश से प्रभवित हो आम्रपाली ने बुद्ध और उनके संघ की अनन्य उपासिका हो गई थी और उसने अपने पाप के जीवन से मुख मोड़कर अर्हत् का जीवन बिताना स्वीकार किया।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला को इसलिए बनना पड़ा था वेश्या, ये है कहानी / इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला को इसलिए बनना पड़ा था वेश्या, ये है कहानी". मूल से 6 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2019.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2019.
  3. "नगरवधू से साध्वी बन गई थी, सबसे खूबसूरत महिला आम्रपाली". मूल से 7 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2019.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें