प्रसिद्ध इतिहासकार और अर्नाल्ड ट्वानबी के भतीजे के लिये देखें - जोज़फ अर्नाल्ड ट्वानबी


अर्नाल्ड ट्वानबी

अर्नाल्ड ट्वानबी (1852-1883) इंग्लैंड के आर्थिक इतिहासकार और सहृदय समाजसेवी थे।[1] वे प्रसिद्ध शल्यचिकित्सक जोजफ ट्वानबी के द्वितीय पुत्र थे।

आरंभ में उनकी अभिलाषा सेना में भर्ती होने की थी, किंतु रुग्ण एवं निर्बल शरीर के करण उन्होंने वकालत की तैयारी प्रारंभ की। परंतु इस जीविका के लिये भी अपेक्षित शारीरिक श्रम उनके बूते का न था। अतएव उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की उच्च शिक्षा ग्रहण की और वहीं 1878 ई. में बैलियेंल काॅलेज में शिक्षक पद पर नियुक्त हुए। यहाँ पर उन्होंने भारतीय लोकसेवा में भर्ती के इच्छुक छात्रों का अध्यापन बड़ी लगन और कुशलता के साथ किया। साथ ही वे आर्थिक इतिहास और इंग्लैंड की आर्थिक समस्याओं का गहन अध्ययन कर समाजसेवा का कार्य भी करने लगे। ट्वानबी ने व्याख्यानों द्वारा मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिये सहकारी संस्थाओं के निर्माण, औद्योगिक संघों की स्थापना और राजकीय सहायता की आवश्यकता पर बल दिया। गरबों की उन्नति के लिये उन्होंने निर्धन कानून में सुधार की माँग की।

त्वानबी सच्चे समाजसुधारक और व्यावहारिक सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। गरीबों की वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिये उन्होंने लंदन के ह्वाइट चैपेल से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित किया और वहाँ के पादरी कैनाँट बार्नेट के सहकार से दीन दु:खियों के कष्टनिवारण हेतु अनेक ठोस कदम उठाए। उनका कहना था कि चर्च को समाजसुधारक और जनसेवा-व्रत द्वारा ईसा मसीह के जनकल्याणकारी संदेश को व्यावहारिक रूप देकर ईसाई धर्म को सार्थक बनाना चाहिए। सार्वजनिक सेवा के उद्देश्य से उन्होंने घूम घूमकर भाषण दिए और उसमें अपने रुग्ण शरीर की परवाह न की। फलत: जनवरी 1884 में उनका स्वास्थ्य एकाएक गिर गया और 9 मार्च को विंबलडन में उनकी असामयिक मृत्यु हो गई। उनके अर्थशास्त्र पर दिए गए व्याख्यानों का प्रकाशन "दि इंडस्ट्रियल रिवोलूशन" (औद्योगिक क्रांति) नामक पुस्तक के रूप में 1884 में हुआ। उसी वर्ष उनकी पुण्य स्मृति में समाजसेवी संस्थाओं में अग्रणी "ट्वानबी हाल" की स्थापना भी हुई।

  1. [F. C. Montague, "Arnold Toynbee", in Social Science, Municipal and Federal Government, Baltimore, Johns Hopkins University (1889), pp. 5–53.]

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