अलैंगिक प्रजनन एक प्रकार का जनन है जिसमें युग्मकों का संलयन (निषेचन) या गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन अन्तर्गत नहीं होता है। एककोशिकीय या बहु-कोशिकीय जीवों से अलैंगिक प्रजनन द्वारा उत्पन्न होने वाली संतानें अपने एकल जनक के वंशाणुओं के पूरे समुह को प्राप्त करती हैं। अलैंगिक प्रजनन एकल-कोशिका वाले जीवों जैसे कि प्राच्य और जीवाणु के लिए जनन का प्राथमिक रूप है। पादपों, जन्तुओं और कवक सहित कई सुकेन्द्रिक जीव भी अलैंगिक प्रजनन कर सकते हैं। कशेरुकी प्राणियों में, अलैंगिक प्रजनन का सबसे सामान्य रूप अनिषेक जनन है, जिसे आमतौर पर ऐसे समय में यौन प्रजनन के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है जब प्रजनन के अवसर सीमित होते हैं।

जबकि सभी प्राक्केन्द्रकी युग्मकों के गठन और संलयन के बिना प्रजनन करते हैं, पार्श्व वंशाणु स्थानान्तरण के लिए तंत्र जैसे संयुग्मन, परिवर्तन और पारक्रमण की तुलना अर्धसूत्रण में आनुवंशिक पुनर्संयोजन के अर्थ में यौन प्रजनन से की जा सकती है।

अलैंगिक प्रजनन के प्रकार

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एककोशिकीय जीव में कोशिका विभाजन या खण्डन द्वारा नूतन जीवों की उत्पत्ति होती है। खंडन के कई विभिन्न प्रकार प्रेक्षित किए गए हैं। अनेक जीवाणु तथा प्रोटोज़ोआ के कोशिका साधारणतः दो समान भागों में विभक्त होते हैं।

अमीबा जैसे जीवों में कोशिका किसी भी तल से विभक्त हो सकता है। इस में केन्द्रक के दो भागों में विभाजन से जनन क्रिया आरम्भ होती है। इसके बाद एक अमीबा दो कोशिकाओं में विभक्त होता है। परिणामस्वरूप, एक जनक से दो सन्तति जन्म होते हैं।

परन्तु कुछ एककोशीय जीवों में शारीरिक संरचना अधिक संगठित होती है। उदाहरणतः कृष्ण ज्वर के रोगाणु, लीश्मेनिया के कोशिका के एक चाबुक के समान सूक्ष्म संरचना (कशाभिका) होती है। ऐसे जीवों में द्विखण्डन, एक निर्धारित तल से होता है।

मलेरिया परजीवी, प्लास्मोडियम एक साथ अनेक सन्तति कोशिकाओं में विभक्त हो जाता है, जिसे बहुखण्डन कहते हैं।

मुकुलन एक प्रकार का अलैंगिक प्रजनन है जिस में एक छोटे से मुकुल (कली) से एक सन्तति जीव बनती है। जैसे हाइड्रा पुनर्जनन की क्षमता रखने वाली कोशिकाओं का उपयोग मुकुंदन के लिए करता है। हाइड्रा के कोशिकाओं में नियमित विभाजन के कारण एक मुकुल विकसित होता है। यह मुकुल बहिर्वृद्धि करता हुआ नन्हे जीव में परिणत हो जाता है तथा पूर्ण विकसित होकर एक पृथक् रूप से स्वतंत्र जीव बन जाता है।

बीजाणु निर्माण

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अनेक सरल बहुकोशिकीय जीवों, जैसे कवक, में विशिष्ट जनन संरचनाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें बीजाणु कहते हैं। उदाहरणतः राइज़ोपस नामक कवक ऊर्ध्व तन्तुओं पर सूक्ष्म गुच्छ संरचनाओं से बना होता है। ये गुच्छ बीजाणुधानी हैं जिनमें बीजाणु पाए जाते हैं। बीजाणु मुक्त होते हैं जो वायु के साथ तैरते रहते हैं। बीजाणु के चतुर्दिक एक मोटी सुरक्षात्मक आवरण होती है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है। बीजाणु अनुकूल आर्द्र स्थान के सम्पर्क में आने से अंकुरित होकर नूतन जीव विकसित होते हैं।

प्रजनन की दृष्टि से अनिषेक जनन

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प्रजनन की दृष्टि से अनिषेक जनन का निम्नलिखित वर्गीकरण हो सकता है :

आकस्मिक अनिषेक जनन

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इसमें असंसिक्त अंडा कभी-कभी विकसित हो जाता है।

सामान्य अनिषेक जनन

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सामान्य अनिषेक जनन निम्नलिखित प्रकारों का होता है:

अनिवार्य अनिषेक जनन

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इसमें अंडा सर्वदा बिना संसेचन के विकसित होता है:

क. पूर्ण अनिषेक जनन में सब पीढ़ी के व्यक्तियों में अनिषेक जनन पाया जाता है।

ख. चक्रिक अनिषेक जनन में एक अथवा अधिक अनिषेक जनित पीढ़ियों के बाद एक द्विलिंग पीढ़ी आती रहती है।

वैकल्पिक अनिषेक जनन

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इसमें अंडा या तो संसिक्त होकर विकसित होता है या अनिषेक जनन द्वारा।

लिंगनिश्चय की दृष्टि से अनिषेक जनन

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लिंगनिश्चय के विचार से अनिषेक जनन तीन प्रकार के होते है:

क. पुंजनन (ऐरिनॉटोकी) में असंसिक्त अंडे अनिषेक जनन द्वारा विकसित होकर नर जंतु बनते हैं। संसिक्त अंडे मादा जंतु बनते हैं।

ख. स्त्रीजनन (थेलिओटोकी) में असंसिक्त अंडे विकसित होकर मादा जंतु बनते हैं।

ग. उभयजनन (डेंटरोटोकी, ऐंफ़िटोकी) में असंसिक्त अंडे विकसित होकर कुछ नर और कुछ मादा बनते हैं।

कोशिकाविज्ञान की दृष्टि से अनिषेक जनन

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कोशिकातत्व की दृष्टि से अनिषेक जनन कई प्रकार का होता है:

अर्धक अनिषेक जनन

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अर्धक अनिषेक जनन में अनिषेक जनन द्वारा उत्पन्न जंतु उन अंडों से विकसित होते हैं जिनमें केंद्रक सूत्रों (क्रोमोसोमों) का ह्रास होता है और केंद्रक सूत्रों की मात्रा आधी हो जाती है। यह दो विधि से होता है:

तनू अनिषेक जनन

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तनू अनिषेक जनन में अनिषेक जनन द्वारा उत्पन्न जंतुओं में केंद्रकसूत्रों की संख्या द्विगुण अथवा बहुगुण होती है। यह दो विधियों से होता है:

स्वतस्संसेचक (ऑटोमिक्टिक)

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स्वतस्संसेचक (ऑटोमिक्टिक) अनिषेक जनन में नियमित रूप से केंद्रक सूत्रों का युग्मानुबंध (सिनैप्सिस) तथा ह्रास होता है और केंद्रक सूत्रों की संख्या अंडों में आधी हो जाती है। परंतु केंद्रक सूत्रों की मात्रा, दो अर्धकेंद्रकों (न्यूक्लिआई) के सम्मेलन (फ़्यूज्हन) से पुन: स्थापित (रेस्टिट्यूटेड) केंद्रक के निर्माण अथवा अंतर्भाजन (एंडोमाइटोसिस) द्वारा पुन: बढ़ जाती है।

अमैथुनी (ऐपोमिक्टिक)

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अमैथुनी (ऐपोमिक्टिक) अनिषेक जनन में न तो केंद्रक सूत्रों की मात्रा में ह्रास होता है और न अर्धक अनिषेक जनन अंडों में केंद्रक सूत्रों का युग्मानुबंध और ह्रास होता है। ऐसे अंडों का यदि संसेचन होता है तो वे विकसित होकर मादा बन जाते हैं और यदि संसेचन नहीं होता तो वे नर बनते हैं। इस कारण एक ही मादा के अंडे विकसित होकर नर भी बन सकते हैं और मादा भी। अर्धक अनिषेक जनन का फल इस कारण सदा ही वैकल्पिक एवं पुंजनन (ऐरिनॉटोकस) होता है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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