आल्फ़्रेद नोबेल एक स्वीडिश रसायनज्ञ, अभियन्ता, आविष्कारक, व्यापारी और लोकोपकारी व्यक्ति थे। उन्हें नोबेल पुरस्कार की स्थापना के लिए अपने भाग्य को वसीयत करने के लिए जाना जाता है, चूंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में 355 पेटेंट धारण करते हुए विज्ञान में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए। नोबेल का सबसे प्रसिद्ध आविष्कार डायनामाइट था, जो नाइट्रोग्लिसरीन की विस्फोटक शक्ति का उपयोग करने का एक सुरक्षित और आसान साधन था; इसे 1867 में पेटेंट कराया गया था और जल्द ही इसे दुनिया भर में खनन और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए उपयुक्त किया गया था।

आल्फ़्रेद नोबेल
जन्म आल्फ़्रेद बर्नार्ड नोबेल
21 अक्टूबर 1833
स्टॉकहॉल्म, स्वीडन
मौत 10 दिसम्बर 1896(1896-12-10) (उम्र 63 वर्ष)
सैनरेमो, इटली
समाधि उत्तरी कब्रिस्तान, स्टॉकहोल्म, स्वीडन
59°21′24.52″N 18°1′9.43″E / 59.3568111°N 18.0192861°E / 59.3568111; 18.0192861
पेशा केमिस्ट, इंजीनियर, आविष्कारक, व्यापारी, परोपकारी
प्रसिद्धि का कारण डायनामाइट का आविष्कार, नोबेल पुरस्कार के दानकर्ता
उत्तरी कब्रिस्तान, स्टॉकहोल्म, स्वीडन
59°21′24.52″N 18°1′9.43″E / 59.3568111°N 18.0192861°E / 59.3568111; 18.0192861
हस्ताक्षर

नोबेल को शाही स्वीडिश वैज्ञानिक अकादमी का सदस्य चुना गया, जो उनकी इच्छा के अनुसार, भौतिकी और रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार विजेताओं को चुनने के लिए दायी होगा।

ऐल्फ्रेड बर्नार्ड नोबेल का जन्म बाल्टिक सागर के किनारे बसे स्टॉकहोम नामक नगर में हुआ था इनके पिता सन् 1842 से सेंट पीटर्सबर्ग में परिवार सहित रहने लगे। यहाँ वे रूस की सरकार के लिए खेती के औजारों के सिवाय अग्न्यास्त्र, सुरंगें (mines) और तारपीडो के निर्माण में लगे रहे।

बालक ऐल्फ्रेड को सन् 1850 में अध्ययन के लिए संयुक्त राष्ट्र अमरीका, भेजा गया, किंतु वहां ये केवल एक वर्ष ही रह सके। रूस से स्वीडन वापस आने पर वे अपने पिता के कारखाने में विस्फोटकों के, विशेषकर नाइट्रोग्लिसरिन के, अध्ययन में लग गए। 3 सितंबर 1864 को भयानक विस्फोट के कारण यह संपूर्ण कारखाना नष्ट हो गया और इनके छोटे भाई की उसी में मृत्यु हो गई। फिर भी ये नाइट्रोग्लिसरिन ऐसे अप्रत्याशित रूप से विस्फोट करनेवाले द्रव्य को वश में करने के पायों की खोज में लगे रहे। सन् 1867 में इन्होंने धूमरहित बारूद का भी, जिसने आगे चलकर कॉर्डाइट (cordite) का रूप ले लिया, आविष्कार किया। इन दोनों ही पदार्थों का उद्योग में तथा युद्ध में भी विस्तृत रूप से उपयोग होने लगा। इससे तथा रूस स्थित बाकू के तैलक्षेत्रों में धनविनियोजन से इन्होंने विशाल धनराशि एकत्र कर ली।

इनका जीवन रोगों से युद्ध करते बीता। इन्होंने जीवन पर्यंत विवाह नहीं किया तथा एकाकी जीवन बिताया। मानव हित की आकांक्षा से प्रेरित होकर इन्होंने अपने धन का उपयोग एक न्यास (trust) स्थापित करने में किया, जिससे प्रति वर्ष (1) भौतिकी, (2) रसायन, (3) शरीर-क्रिया-विज्ञान वा चिकित्सा, (4) आदर्शवादी साहित्य तथा (5) विश्वशांति के क्षेत्रों में सर्वोत्तम कार्य करनेवालों को पुरस्कार दिया जाता है। ये पुरस्कार नोबेल पुरस्कार कहलाते हैं। सन् 1901 से नोबेल पुरस्कार का देना आरंभ हुआ है।

बाहरी कड़ियाँ

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