अहिलावती भीम के पुत्र घटोत्कच की पत्नी तथा बर्बरीक ,अंजनपर्व और मेघवर्ण की माता थी जिन्हें मोरवी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वे राजा मूर की पुत्री थी ।[1]

कामकटंककटा (मोरवी), द्वापरयुग के प्रागज्योतिषपुर (वर्तमान असाम) के राजा दैत्यराज मूर की पुत्री थी, एवं यह देवी कामख्या की परम भक्त थी।.. दैत्यराज मूर की पुत्री होने के कारण उन्हें "मोरवी" नाम से भी जाना जाता है।..

ऋषि वेदव्यास द्वारा रचित स्कन्द पुराण के कौमारिका खंड में एक कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने दैत्यराज मूर का वध किया था, (ततपश्चात श्रीकृष्ण को मुरारी नाम से पुकारे जाने लगा) उसी समय मोरवी ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिये श्रीकृष्ण को रणभूमि में युद्ध के लिये ललकारा... एवं उनसे युद्ध करने लगी, एवं श्रीकृष्ण के प्रत्येक अस्त्र को विफल करने लगी। .. अन्तत: श्रीकृष्ण ने मोरवी का वध करने हेतु सुदर्शन चक्र धारण कर लिया, श्रीकृष्ण के ऐसा करते ही, देवी कामाख्या प्रकट होकर श्रीकृष्ण से मोरवी का वध ना करने के लिये कहा और मोरवी को कहा कि - "हे मोरवी, यह तुम्हारे भावी श्वसुर है, अतः इनसे क्षमा याचना करके, इनका आशीर्वाद प्राप्त करो..." तत्पश्चात मोरवी ने ऐसा ही किया।..

कालांतर में श्रीकृष्ण के आदेशानुसार महाबली भीमसेन-हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच के मोरवी द्वारा नियोजित शास्त्रार्थ की प्रतियोगिता जीतने पर मोरवी का विवाह घटोत्कच से करवा दिया गया।.. कुछ समय पश्चात घटोत्कच और मोरवी को तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई, जिनके नाम बर्बरीक , अंजनपर्व और मेघवर्ण रखे गए।


सन्दर्भ संपादित करें

  1. "महाभारत के वो 10 पात्र जिन्हें जानते हैं बहुत कम लोग!". दैनिक भास्कर. २७ दिसम्बर २०१३. मूल से 28 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २८ दिसम्बर २०१३.