अंग्रेजी विधि

(आंग्ल विधि से अनुप्रेषित)

इंग्लैण्ड और वेल्स की कानून प्रणाली को अंग्रेजी विधि (English law) कहा जाता है। अधिकांश राष्ट्रकुल देशों एवं संयुक्त राज्य अमेरिका की 'समान विधि' (common law) इसी प्रणाली पर आधारित है। जब वर्तमान राष्ट्रकुल देशों में ब्रितानी साम्राज्य था, उस समय ये कानून इन देशों में लागू किये गये और अब तक चल रहे हैं।

विश्व के वे क्षेत्र जहाँ पूर्णतः या आंशिक रूप से अंग्रेजी विधि चलती है

प्राचीनतम अंग्रेजी कानून केंट के राजा एथेलबर्ट के हैं जो सन् 600 ई. के लगभग प्रकाशित हुए। ऐसा अनुमान है कि एथेलबर्ट के कानून केवल अंग्रेजी में ही नहीं वरन् समस्त ट्यूटनी भाषाओं में लिपिबद्ध किए जाने वाले सर्वप्रथम कानून थे। बेडा के मतानुसार एथेलबर्ट ने अपने कानूनों को रोग के आदर्शों पर ही लिपिबद्ध किया था। धर्म संबंधी प्रनियम ही संभवत: उपर्युक्त कानून के आधार थे। सन् 680 ई. में ह्वोथर और ईड्रिक ने तथा सन् 700 ई. के लगभग विदरोड ने उनमें वृद्धि की। सन् 690 ई. में राजा आइन ने विज्ञजनों की मंत्रणा से कुछ कानून प्रकाशित किए। तदुपरांत दो शताब्दियों तक कोई नया कानून नहीं बना। इस दीर्घ अंतराल के पश्चात् सन् 890 ई. में अलफ्रेड के कानून का सृजन हुआ। इस समय से कानून को अविच्छिन्न शृंखला का प्रारंभ हुआ जो 11वीं शताब्दी तक बनी रही तथा जिसमें एडवर्ड दि एल्डर, ऐवेल्स्टन, एडमंड, एडगर और एथेलरेड ने योग दिया। कानून की इस परंपरा की इति डेनो राजा कैन्यूट के काल में हुई जिसकी कानून का विशद एवं विस्तृत संग्रह प्रस्तुत करने का श्रेय प्राप्त है।

ऐंग्लो-सैक्सन कानून निरंतर कई शताब्दियों तक पांडुलिपि के आँचल में छिपे पड़े रहे। 16वीं शताब्दी में उनकी खोज निकाला गया और सन् 1568 ई. में लैंबर्ड ने उनकी आरकायोनोमिया नाम से प्रकाशित किया। सन् 1840 में उनका आधुनिक अंग्रेजी भाषा में अनुवाद एशेंट लाज ऐंड़ इंस्चीट्यूट्स ऑव इंग्लैंड शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

नार्मन विजय अंग्रेजी कानून के इतिहास में सर्वोपरि महत्त्व की घटना है। 12वीं शताब्दी में अंग्रेजी कानून तीन विभिन्न शाखाओं में विभाजित हो गया-वेस्ट-सैक्सन, अमरीकी तथा डेनी। नार्मन लोगों के पास अपनी कोई सुव्यवस्थित विधि प्रणाली नहीं थी और जो कुछ उनका अपना कहने को था भी वह अंग्रेजी विधि प्रणाली के समक्ष नगण्य था। अतएव नार्मन कानून अंग्रेजी कानून को अथकमित न कर सका। फलस्वरूप अंग्रेजी विधि प्रणाली के स्वरूप एवं क्रियाशीलता में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। विजयी विलियम ने अंग्रेजी कानून की पुष्टि की; यही सन् 1100 ई. में हेनरो प्रथम ने किया। विधिज्ञों ने एडवर्ड के कानूनों की समालोचना को जिसके फलस्वरूप कानून के तीन संकलन प्रकाशित हुए। इनमें लेंगिस ह्यूरिसाइ प्राइमि अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। दूसरी महत्त्व की बात यह थी कि नार्मल विजेताओं ने भूमि के संबंध में उन्हीं विधि-नियमों को अपनाया जिनका प्रयोग अंग्रेज भूस्वामी किया करते थे। इसका प्रमाण प्रसिद्ध ग्रंथ डूम्सडे बुक तथा नार्मन सम्राटों के घोषणापत्रों में मिलता है। फिर भी नार्मन विचारधारा का समुचित प्रभाव अंग्रेजी कानून पर पड़ा। न्यायालयों में फ्रेंच भाषा का प्रयोग होने लगा। कानूनी पुस्तकों की रचना तथा विधि प्रतिवेदन भी कई शताब्दियों तक फ्रेंच में ही होता रहा। हेनरी द्वितीय को अंग्रेजी कानून के इतिहास में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। वह महान शासक और विधान निर्माता था। उसके कई विधि नियम तथा समयादेश प्राप्त हुए हैं।

ऐंग्लो-सैक्सन कानून में धर्म संबंधी मामलों को छोड़कर अन्य किसी दिशा में रोमन न्याय शास्त्र का प्रभाव देखने में नहीं आता। निस्संदेह रोम न्याय प्रणाली ब्रिटेन में जड़ नहीं पकड़ सकी परंतु रोमन परंपराओं का समुचित प्रभाव उस पर पड़ा। कानून के विकास में जिस प्रमुख शक्ति ने कार्य किया वह चर्च (धर्म) कैथोलिक मतावलंबी होने के नाते रोमन प्रभाव से आच्छादित था। उहाहरणार्थ इच्छा पत्र रोम की देन था जिसका प्रचलन चर्च (धर्म) के प्रभाव से हुआ। इसके अतिरिक्त, धर्म संबंधी न्यायालय केवल धार्मिक मामलों में ही हस्तक्षेप नहीं करते थे वरन् उनका क्षेत्राधिकार विवाह, रिक्थपत्र आदि जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों पर भी था।

11वीं शताब्दी में लोगों का ध्यान एक बार पुन: विधि ग्रंथों की ओर आकृष्ट हुआ। सन् 1143 ई. में आर्त्तबिशप थियोबाल्ड की छत्रछाया में वर्करियस नाम के एक वकील ने इंग्लैंड में रोमन विधिप्रणाली पर व्याख्यान दिए जिनका प्रत्यय प्रभाव हेनरी के सुधारों में मिलता है। हेनरी के शासनकाल से न्यायाधिकरण का महत्त्व उत्तरोत्तर क्षीण होता गया और सम्राट का निजी न्यायालय सभी व्यक्तियों एवं वादों के लिए प्रथम न्यायालय बन गया। इसके परिणामस्वरूप साम्राज्य विधि प्रणाली का विकास हुआ।

सन् 1164 ई. में क्लैंरेंडम के निषेधादेश द्वारा, जो कुछ समय बाद संशोधनों सहित पुन: प्रकाशित हुआ, हेनरी ने दंड-प्रक्रिया-प्रणाली में अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए तथा न्याय सभ्य द्वारा अन्वेषण प्रणाली का सूत्रपात किया। सन् 1181 ई. में आयुध निषेधादेश द्वारा प्राचीन सैनिक शक्ति को मान्यता दी गई। सन् 1184 ई. में एक अन्य निषेधादेश द्वारा राजा के वन संबंधी अधिकारों की परिभाषा की गई। तदनंतर एक व्यवस्थित कर प्रणाली चालू की गई।

हेनरी के काल की विधि क्रियाशीलता के दृष्टांत दो प्रमुख ग्रंथों में मिलते हैं। प्रथम ग्रंथ का नाम है दायोलोगस दि स्कैकेरियो जिसकी रचना रिचर्ड फिट्ज़ नील द्वारा हुई। दूसरा ग्रंथ, जिसकी रचना रैनल्फ ग्लानबिल ने की, अंग्रेजी न्याय प्रणाली का प्रथम प्राचीन ग्रंथ है जिसमें राजकीय न्यायालय की कार्यवाही का सही चित्रण किया गया।

हेनरी के पश्चात्, रिचर्ड के काल में भी न्याय प्रशासन का कार्य मुख्यतया राजा के निजी न्यायालय द्वारा होता रहा। परंतु राजा की अनुपस्थिति में प्रशासन कार्य न्यायाधीशों द्वारा संपन्न होने लगा और समस्त कार्यवाही के शासकीय अभिलेख रखे जाने लगे। हेनरी तृतीय के सआ। सन