आगरी समाज
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आगरी समाज एक हिंदु-आर्य क्षत्रिय समाज है। विशेषत: यह महाराष्ट्रीय समूह है जो महाराष्ट्र के उत्तर कोंकण इलाके में मूल भुमिपुत्र है।[1] इनकी जो बोलीभाषा है, वह मराठी और कोंकणी की उपभाषा है जिसे आगरी बोली कहते हैं।
आगरी समाज महाराष्ट्र के मुंबई शहर, मुंबई उपनगर, ठाणे, पालघर, रायगड, नासिक इन जिलों में बहुतांश बस गया है। इसके अलावा रत्नागिरी, पुणे, अहमदनगर जिलों में भी बसा है। गोवा राज्य में इनको 'मिठगावडे' कहते हैं। श्री. विवेक पाटील पखावज वादक इस समाज के मशहूर कलाकार है. https://g.co/kgs/8BvSRA
इतिहास
संपादित करेंआगरी समाज मुलत: एक शुद्ध क्षत्रिय समाज है। भगवान् विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुरूरवा से आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष के छः पुत्रों याति ययाति सयाति अयाति वियाति तथा कृति उत्पन्न हुए। नहुष ने स्वर्ग पर भी राज किया था। राजा 'नहुष' के नाती ययाती के वंशज बलिभद्र और उनकी पत्नी आगलिका इन्हे एक पुत्र हुवा, उस पुत्र का नाम था 'आगला' ,वह बलिभद्र राजाके पश्चात मुंगी पैठण स्थानपर रेहने चला गया ,और उसके पश्चात उसका यह वंश वहीपे फुलने फलने लगा, वहांसे यह शुद्ध सोमवंशी क्षत्रिय समाज क्रमसे कोकण देश मे स्थापित हुआ , विशेषतः घारापुरी यह आगरी ज्ञाती कि प्राचिन राजधानी थी, आज भि देखा जाये यहांपे आगरी समाज कि वसाहत आधुनिक काल में भी अस्तित्व में हैं|
इ. स.१३ शतकमें पैठणके बिंबराजा के सैन्यदल मैं प्रमुखत: यह शुद्ध क्षत्रिय समाजके सैनिक थे। वह युद्ध करणे के लिए उत्तरी कोकण में चले गए , अलिबाग के सागरगढ दुर्ग में घमासान युद्ध हुवा, युद्ध में विजयी होणे के बाद राजा बिंम्बने राज्य को प्रबल बनाने हेतु इन्हे नमक का व्यापार एंव उत्पादन करणे के लिए नमक के आगर बनाने में प्रचंड सहायता कि , और इन्हे पुर्णत: यहाँ अधिकार दे दिया। सागर एंव नदी के खारे जलसें नमकका उत्पादन और खेती करणे के कारण तत्कालीन वहांके पुर्व रेहनेवाले समाज ने उन्हे 'आगरी' यह नया नाम दिया। संदर्भ [krishikosh.egranth.ac.in]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "आगरी बोली ह लय गोर बोली..." (मराठी में). ज़ी न्यूज़. मूल से 25 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ८ अगस्त २०१५.